Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

नगालैण्ड: हंगामा नहीं विचार की जरूरत

नगालैण्ड: हंगामा नहीं विचार की जरूरत

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
पूर्वोत्तर भारत के संवेदनशील राज्य नगालैण्ड मंे उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए सेना व अर्द्धसैनिक बल को लगाया गया है। सेना एक अनुशासित बल है लेकिन सामान्य नागरिक और उग्रवादी मंे फर्क करना कभी-कभी उसके लिए भी मुश्किल हो जाता है। यही शिकायत कश्मीर मंे भी सुनने को मिलती है। सेना से जब कभी ऐसी भूल हो जाती है तो उसे भी पछतावा होता है। नगालैण्ड मंे गत 4 दिसम्बर को ऐसी ही भूल हुई है। खनिक मजदूरों की लारी पर सेना ने गोली चला दी। इस पर ग्रामीणों ने सेना की टुकड़ी पर हमला कर दिया। सेना को आत्म रक्षा मंे फिर गोली चलानी पड़ी। इस दुखद हादसे मंे 15 लोगों की मौत हो गयी। यह मामला संसद के शीतकालीन सत्र मंे हंगामें का कारण बना है। विपक्ष का काम सरकार की आलोचना करना है लेकिन सेना की भूमिका पर विपक्ष को भी समझदारी से काम करना होगा। संसद मंे भी इस मामले पर हंगामा नहीं विचार करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री और नगालैण्ड के मुख्यमंत्री ने भी मृतकों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट की है। उनके आश्रितों को मदद भी दी जाएगी। इसलिए मामले को भड़काने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। यह दुखद हादसा नगालैण्ड के मोन जिले मंे हुआ है।
नगालैंड में राज्य की पुलिस और सेना के जवानों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। दरअसल, 4 दिसम्बर की शाम पैरा फोर्सेज के एक ऑपरेशन में गलत पहचान की वजह से 13 ग्रामीणों की गोली लगने से मौत हो गई थी। इसके बाद ग्रामीणों ने असम राइफल के कैम्प पर धावा बोल दिया। इस झड़प में सेना का एक जवान घायल हो गया था जिसकी बाद में मौत हो गई। नगालैंड पुलिस  ने नागरिकों पर गोलीबारी के सिलसिले में भारतीय सेना के 21 पैरा विशेष बलों के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज की है। इस घटना में 13 लोगों की मौत हो गई थी। नगालैंड पुलिस ने साफ तौर पर कहा है कि पैरा स्पेशल बलों ने स्थानीय पुलिस को सूचित नहीं किया था, न ही कोई पुलिस गाइड लिया था। सेना का कहना है कि यह गलत पहचान थी। पुलिस ने श्सुरक्षा बलों की मंशा नागरिकों की हत्या और घायल करना बताया है।
म्यांमार की सीमा से सटे नगालैंड का जिला मोन है, इसलिए जब तक केंद्र सरकार अनुमति नहीं देती, तब तक सेना पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है लेकिन यह एक दुर्लभ मामला है, जिसमें पुलिस ने नागरिकों पर गोलीबारी के आरोप में सेना के  विशेष बलों के खिलाफ स्वतरू हत्या के आरोप दायर किए हैं। नगालैंड सरकार ने मोन जिले में सुरक्षा बलों की कथित गोलीबारी में मारे गए 13 लोगों के परिवारों को पांच-पांच लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की रविवार को घोषणा की। राज्य के मुख्यमंत्री नेफियू रियो भी घटना स्थल पर पहुंचे। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, राज्य सरकार ने इस घटना की जांच के लिए पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) स्तर के एक अधिकारी की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का भी फैसला किया। नगालैंड के मुख्य सचिव जे. आलम ने एक बयान में कहा, ‘‘राज्य सरकार ने मोन जिले के ओटिंग गांव इलाके में हुई घटना की निंदा की है जिसमें 13 आम नागरिकों की मौत हो गयी। उन्होंने कहा कि 13 मृतकों में से प्रत्येक के परिजनों को पांच लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जाएगी जबकि घायल लोगों के इलाज का खर्च राज्य सरकार उठाएगी। आलम ने बताया कि वरिष्ठ मंत्री पी. पाइवांग कोन्याक के नेतृत्व में अधिकारियों का एक दल स्थिति पर नजर रखने के लिए ओटिंग गांव गया। उन्होंने बताया कि इस दल में पुलिस महानिदेशक भी शामिल थे। इस बीच, नगा राजनीतिक मुद्दे पर केंद्र के साथ शांति वार्ता कर रहे एनएससीएन (आईएम) ने सुरक्षा बलों की कथित गोलीबारी में आम नागरिकों की मौत की निंदा की और कहा कि यह नगा लोगों के लिए काला दिन है।  
प्राथमिकी में नगालैंड पुलिस ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पैरा स्पेशल बलों ने स्थानीय पुलिस को सूचित नहीं किया था, न ही कोई पुलिस गाइड लिया था, जबकि सेना का कहना है कि यह गलत पहचान के चलते हुआ। 
इस तरह के हालात नहीं आने चाहिए। पैरा फोर्सेज के एक ऑपरेशन में गलत पहचान की वजह से 13 ग्रामीणों की गोली लगने से मौत हो गई। इसके बाद ग्रामीणों ने असम राइफल के कैम्प पर धावा बोल दिया। इस झड़प में सेना का एक जवान घायल हो गया था जिसकी रविवार को मौत हो गई। बाद में एक और घायल ग्रामीण की मौत हो जाने से इस घटना में कुल 15 लोगों की मौत हुई। नगालैंड के मोन जिले में एक समय में पांच से अधिक लोगों की सार्वजनिक सभा पर प्रतिबंध लगा दिया गया और वाणिज्यिक वाहनों सहित गैर-आवश्यक प्रकृति के सभी वाहनों की आवाजाही को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया। राज्य सरकार ने इस घटना की जांच के लिए पांच सदस्यों की एक टीम का गठन किया है। उधर, सेना ने भी कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी के आदेश दिए हैं। बीजेपी की नगालैंड इकाई के अध्यक्ष तेमजेन इम्ला एलोंग ने कहा कि मोन जिले में हुई फायरिंग की घटना, शांतिकाल में युद्ध अपराध के बराबर है। यह नरसंहार और मृत्युदंड देने जैसा है। एलोंग नगालैंड बीजेपी सरकार में मंत्री भी हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से मृतकों के परिवारों के लिए तुरंत ही मुआवजा देने की मांग की। साथ ही पीड़ित परिवारों को अन्य तरह की सहायता देने की गुहार लगाई। आतंकवाद विरोधी अभियान को लेकर उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया दी है। एलोंग ने कहा कि वो इस घटना से बेहद व्यथित हैं और उनका दिल बुरी तरह टूट गया है। उन्होंने एक सार्वजनिक पत्र में हस्ताक्षर किया है। इसमें लिखा है, इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सिर्फ इसे खुफिया विफलता बताकर पल्ला झाड़ लेना सबसे लाचारी भरा बयान है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय अत्यधिक सावधानी और संयम बरतना चाहिए था, जब भारत सरकार और नगा राजनीतिक समूहों के बीच शांति वार्ता चल रही हो। यह नगा मुद्दे के राजनीतिक समाधान के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। उन्होंने कहा, ये निर्दोष पीड़ित मजदूर थे और दिन भर की कठिन मेहनत के बाद लौट रहे थे। उनके पास किसी तरह का कोई हथियार नहीं था। लिहाजा यह शांतिकाल में युद्ध अपराध जैसा ही है। यह मृत्युदंड देने और नरसंहार की तरह है।
असम रायफल्स ने भी एक आधिकारिक बयान जारी किया और इसमें इस घटना पर खेद जताया है। उसने यह भी कहा है कि हिंसक भीड़ ने उनके कैंप पर धावा बोला। इसमें कहा गया है, असम रायफल्स की एक पोस्ट पर 300 से ज्यादा लोगों की आक्रोशित भीड़ ने हमला बोला लेकिन असम रायफल्स के जवानों ने अत्यधिक संयम बरती और हवा में गोलियां चलाकर भीड़ को तितर बितर करने की कोशिश की। संसद मंेू इस मामले पर चर्चा करते हुए विपक्षी दलों को सयम बरतने की जरूरत है। असमरायफल्स का मनोबल भी बनाए रखना है और जनता को शांत भी करना है। (हिफी)

हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ