खेल
खेल खिलौने हम हरि के वो ही पालनहार है रचता नए नए प्रतिमान दुनिया का करतार है
उसकी मर्जी यहां पे चलती वो ही डोर हिलाता है
माटी के पुतलों को प्रभु क्या-क्या खेल दिखाता है
अंधकार छा जाए जब ज्योति नयन में भर देता
नैनो का सुख देकर वो घट उजियारा कर देता
खेल खेल में करतब कितने जगत को दिखा देता
गर्व चकनाचूर करके जीवन क्या है वो सीखा देता
मूसलाधार बरसता पानी कल कल झरना बहता
सरिताओ की धाराओं में गंगाजल पावन रहता
नीला अंबर चांद तारे पर्वत घटाएं सब मनभावन
कहीं गर्म थार मरुस्थल कहीं घुमड़ बरसे सावन
उसके खेल निराले हैं वो सबका रखवाला है
हम कठपुतली प्यारे वो बाजीगर मतवाला है
रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान
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