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भारतीय संस्कृति के अनुसार गुडीपड़वा पर मनाएं नया साल ! भारत में पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता प्रभाव


भारतीय संस्कृति के अनुसार गुडीपड़वा पर मनाएं नया साल !
भारत में पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता प्रभाव

भारत जैसे-जैसे आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा हैवैसे वैसे भारतीयों पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है । पूर्व में स्कूलों और कॉलेजों में हल्दी-कुमकुम की रस्में मनाई जाती थीं । समाज और राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले समाज सुधारकों और क्रांतिकारियों की जयंती और वर्षगांठ मनाई जा रही थीकिंतु इस समय वैलेंटाइन डेरोज डेरिबन डेसाड़ी डे और फ्रेंडशिप डे हर जगह मनाया जा रहा है । कॉलेज के छात्राएं 'जीन्सऔर 'टी-शर्टमें महाविद्यालय में विद्यार्जन करते नजर आ रहे हैं । 'मिडी-मिनीपोशाक में लड़कियांजो पहले की फिल्मों में बिरले ही कभी देखी जाती थींआज हर महाविद्यालय परिसर में घूमती नजर आती हैं । पाश्चात्य संस्कृति के व्यवहार के कारण आज के युवा पीढ़ी की हानि हो रही हैं । इस प्रथा के कारण हमारी मूल हिन्दू संस्कृति लुप्त होती जा रही है । मनोरंजन के रूप में अथवा रूचि के रूप मेंहम 31 दिसंबर की रात को नए वर्ष की पूर्व संध्या के लिए तैयारी करने लगते हैं और मध्यरात्रि उत्सव में स्वागत करते हैंकिंतु ऐसा करना हमारी संस्कृति में नहीं है । भारतीय संस्कृति के अनुसार नया वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात गुड़ीपड़वा के दिन होता है । इस दिन को नए वर्ष के रूप में मनाएं और आनंद लें।


भारतीय संस्कृति का महत्व भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन और महान संस्कृति है । मनुष्य को जन्म से मृत्यु तक कैसे व्यवहार करना चाहिए और अपने जन्म को कैसे सार्थक बनायें यह हमारे ऋषियों ने वेद उपनिषदों में लिखा है । इसका पालन करके आज कई लोगों ने अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है । आज पाश्चात्य लोग भी भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं । वे भारतीय शास्त्रों में शाश्वत आनंद को ढूंढ रहे हैं क्योंकि वे भोगवादी संस्कृति से त्रस्त हैं । तथा साधना करके अपना कल्याण कर रहे हैं।


जनवरी ईसाई नव वर्ष की आरंभ - 1 जनवरी वास्तव में ईसाई नव वर्ष की आरंभ है । आज जब ईसाई राष्ट्र विश्व में बहुसंख्यक हैं और उन्होंने विश्व के अधिकांश देशों पर राज किया हैंइसलिए उनकी संस्कृति का प्रभाव पूरी दुनिया में देखा जा सकता है । इससे यह भ्रांति पैदा हो गई है कि '1 जनवरी विश्व नव वर्ष है'; किंतु आज दुनिया के नक्शे पर ऐसे कई देश हैंजिन्होंने इस पश्चिमी संस्कृति को नष्ट कर स्वराष्ट्र की संस्कृति को बचाया हैं । उनका नया वर्ष जनवरी से आरंभ नहीं होता है । भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन है । भारतीय संस्कृति के अनुसार नए वर्ष की आरंभ गुडीपड़वा के दिन से होती है । यह पृथ्वी के निर्माण का दिन है । इसलिए सभी भारतीयों को चाहिए कि नए वर्ष की आरंभ गुडीपड़वा से करें । किंतु देश की स्वतंत्रता के उपरांत भी कुछ विषय में हमने अंग्रेजों की परतंत्रता को नहीं छोड़ा है । यह उनमें से एक है । हमें इसे छोड़ना होगा ।


भारतीय संस्कृति की महानता को पहचानना और हमारी महान संस्कृति को नष्ट न करने का प्रयास करना आवश्यक है ! - चूँकि हिंदू धर्म/संस्कृति शाश्वत हैयह हर वस्तु ईश्वर के विभिन्न रूपों से संबंधित हैउदाजब ब्रह्मांड में गणेश तत्व प्रचुर मात्रा में हैतो ज्ञानवर्धक और विघ्नहर्ता श्री गणेश चतुर्थीजब शक्ति तत्त्व अधिक होतब नवरात्रिशिवरात्रि तब होती है जब ज्ञानभक्ति और वैराग्यदायी शिवतत्व प्रचुर मात्रा में होता है । इसके विपरीतअन्य संप्रदायों में महत्वपूर्ण दिन पृथ्वी पर हुई घटनाओं से जुड़े होते हैं।


हिंदू धर्म की महानता और भारतीयों की अंग्रेजों की मानसिक गुलामी की क्षुद्रता और उनके विचारों की क्षुद्रता को निम्नलिखित कुछ उदाहरणों से देखा जा सकता है :-


1. भारतीय संस्कृति पर आधारित शालिवाहन शक आदि शक का उपयोग वर्ष गणना के लिए न करते हुए अंग्रेजों की मानसिक गुलामी के कारण काल से किसी भी प्रकार का संबंध न रखने वाली यह पद्धति वर्ष गणना के लिए उपयोग में लाना आरंभ हुआ ।

2. गुड़ी पड़वा को निर्मिति के संबंधित प्रजापति तरंगें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैइसे वर्ष का आरंभ दिन के रूप में न मनाते हुएअंग्रेजों की मानसिक गुलामी के रूप में, 1 जनवरी को वर्षारंभ के दिन के रूप मनाने लगे ।

3. धनत्रयोदशी को आरोग्य के देवता धन्वंतरि के दिन के रूप में मानने की अपेक्षापश्चिमी लोगों का 'विश्व आरोग्य दिवसमनाने की प्रथा बन गई है और इसका पालन होते हुए दिखाई देता है ।

4. श्री लक्ष्मी पूजा के दिनजब श्री लक्ष्मी की तरंगें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैइसे वित्तीय वर्ष की आरंभ के दिन के रूप में नहीं मनातेअपितु अंग्रेजों द्वारा आरंभ किया गया अप्रैल का दिन जो किसी भी तत्व पर आधारित नहीं है उसे वित्तीय वर्ष के प्रथम दिन के रूप में मनाना आरंभ हुआ।


ऐसे कई उदाहरण बताते हैं कि पाश्चात्य संस्कृति का कोई आधार नहीं है । केवल उनके जैसे कृति करने की अपेक्षा भारतीय संस्कृति को अपनाना और उसके अनुसार कार्य करना अधिक उपयुक्त है । इसके लिए भारतीय संस्कृति के अनुसार गुड़ी पड़वा को नववर्ष मनाएं !
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