जे न मित्र दुख होहिं दुखारी....
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के अनुयायी हैं। भगवान राम ने सुग्रीव का दुख देखकर कहा था- जेन मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी। हमारे देश का मित्र और समुद्री पड़ोसी श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट में घिर गया था। यह आर्थिक संकट भी एक पड़ोसी देश चीन के कारण पैदा हुआ था। श्रीलंका में महंगाई इतनी बढ़ गयी थी कि देश लगभग दीवालिया होने की कगार पर आ गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने मित्र देश का दुख देखा नहीं गया और उन्होंने श्रीलंका को तत्काल 90 करोड़ डालर कर्ज देने की घोषणा कर दी है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खानी हो चुका था, अब उसे राहत मिली है। इसके साथ ही 150 करोड़ डालर की भारतीय क्रेडिट लाइन की मदद से श्रींका उन वस्तुओं का भारत से आयात कर सकेगा, जिनकी वहां कमी है।
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इसी बीच भारत ने उसे मदद के रूप में 90 करोड़ डॉलर का कर्ज देने का ऐलान किया है। श्रीलंका के प्रमुख अर्थशास्त्री और श्रीलंकाई सेंट्रल बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर डब्ल्यूए विजेवर्धने ने भारत की इस मदद की तारीफ की है और कहा है कि भारत की तरफ से इस आर्थिक मदद ने अभी के लिए श्रीलंका की डूबती नैया को बचा लिया है। साथ ही उन्होंने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को लेकर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को भी चेतावनी दी। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है, ऐसे में उसके दिवालिया होने की नौबत आ गई थी।
अर्थशास्त्री विजेवर्धने ने राष्ट्रपति को चेतावनी देते हुए कहा कि विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहे श्रीलंका को तत्काल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेने की आवश्यकता होगी। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है और सभी जरूरी वस्तुओं की कमी हो रही है। देश में महंगाई अपने चरम पर है। इसी स्थिति से निपटने के लिए भारत ने 90 करोड़ डॉलर का ऋण श्रीलंका को देने की घोषणा की है। श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने सेंट्रल बैंक के गवर्नर अजीत निवार्ड काबराल से मुलाकात की और उन्हें आर्थिक रूप से समर्थन देने की बात की। भारतीय उच्चायोग की तरफ से एक ट्वीट भी किया गया जिसमें कहा गया, इस आर्थिक मदद में 50.9 करोड़ डॉलर से अधिक की राशि एशियन क्लियरिंग यूनियन समझौते को स्थगित करने और 40 करोड़ डॉलर की करेंसी अदला-बदली शामिल है। विजेवर्धने ने कहा, भारत के आर्थिक पैकेज ने 18 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बांड के निपटान के बाद आनेवाले एक तत्काल आर्थिक संकट को टाल दिया है। 40 करोड़ डॉलर की अदला-बदली ने एक हद तक सकल भंडार में सुधार करने में मदद की है। 150 करोड़ डॉलर की भारतीय क्रेडिट लाइन की मदद से श्रीलंका उन वस्तुओं को भारत से आयात करेगा जिनकी देश में कमी है। विजेवर्धने ने कहा कि भारत की समय पर सहायता ने श्रीलंकाई सरकार को दो महीने की राहत दी है। उन्होंने कहा कि ये एक ऐसा समय है जिसमें कठिन आर्थिक सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है और स्थायी समाधान के लिए आईएमएफ से कर्ज लेने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, भारत के हस्तक्षेप से श्रीलंका को मदद मिली है, लेकिन वे हमें स्थायी राहत नहीं दे सकते। हमें इस मदद के लिए भारत से किए गए वादों का सम्मान करने की आवश्यकता है। इस बीच, हमें आईएमएफ से मदद लेने की जरूरत है।
विजेवर्धने की टिप्पणी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे द्वारा श्रीलंका को भारतीय आर्थिक सहायता पर एक लंबी वर्चुअल बैठक के बाद आई है। बैठक के दौरान, जयशंकर ने कहा कि भारत हमेशा श्रीलंका के साथ खड़ा रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक और अन्य चुनौतियों पर काबू पाने के लिए हर संभव तरीके से भारत श्रीलंका का समर्थन करना जारी रखेगा। जयशंकर ने श्रीलंका के वित्त मंत्री से बातचीत के दौरान कहा, करीबी दोस्त और समुद्री पड़ोसियों के रूप में, भारत और श्रीलंका दोनों घनिष्ठ आर्थिक संबंधों से लाभ उठाने के लिए तैयार हैं।
भारत से मिली आर्थिक मदद की सराहना श्रीलंका के लोग भी कर रहे हैं। ट्विटर पर थिनुस्का सोयसा नाम की एक यूजर ने लिखा, 2022 की प्रेरणादायी शुरुआत। चरिथ नाम के एक यूजर ने लिखा, चीन ने कहा कि वो कर्ज से निपटने में हमारी मदद का इरादा रखता है, लेकिन मदद को सामने आया भारत। इसी से शत्रु और मित्र की पहचान भी हो जाती है।
आईएमएफ से कर्ज लेने का मुद्दा श्रीलंका में विवादास्पद रहा है। इस मुद्दे पर श्रीलंका के मंत्रियों की राय गंभीर रूप से बंटी हुई है। श्रीलंका के सकल घरेलू उत्पाद में 2020 में रिकॉर्ड 3.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी और जुलाई के दौरान एक साल में इसका विदेशी मुद्रा भंडार आधे से अधिक गिरकर केवल 280 करोड़ डॉलर हो गया था। पिछले 12 महीनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई रुपये में 9 प्रतिशत से अधिक का मूल्यह्रास हुआ है। इस कारण आयात अधिक महंगा हो गया है। इस प्रकार भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया। खाने-पीने के सामानों की कीमत आसमान छू रही हैं। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है। खाद्यान्न वस्तुओं की कीमत में एक महीने में ही 15 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस इजाफे की सबसे बड़ी वजह सब्जियों की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी बताई गई है। श्रीलंका में 100 ग्राम मिर्च की कीमत जहां 18 (श्रीलंकाई) रुपए थी वहीं, अब ये बढ़कर 71 (श्रीलंकाई) रुपए हो गई है। यानी एक किलो मिर्च की कीमत 710 रुपए हो गई है। एक ही महीने में मिर्च की कीमत में 287 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह बैंगन की कीमतों में 51 प्रतिशत, लाल प्याज की कीमत में 40 प्रतिशत और बींस, टमाटर की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लोगों को एक किलो आलू के लिए 200 रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है। श्रीलंका में आयात ना हो पाने की वजह से मिल्क पाउडर की भी कमी हो गई है। कुल मिलाकर, 2019 के बाद से कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं और दिसंबर 2020 की तुलना में कीमतों में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मतलब ये है कि चार लोगों के औसत परिवार, जिन्होंने दिसंबर 2020 में खाद्य पदार्थों पर साप्ताहिक रूप से 1165 रुपए खर्च किए थे, उन्हें अब उतने ही सामान के लिए 1593 रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है। बढ़ती महंगाई के कारण आम जनता बेहद परेशान है और लोगों को भर पेट खाना तक नसीब नहीं हो रहा है। एक टैक्सी ड्राइवर अनुरुद्दा परांगमा ने ब्रिटिश अखबार द गार्डियन से बताया कि उनका परिवार एक अब तीन के बजाए दो वक्त का खाना ही खा पा रहा है। उन्होंने बताया, मेरे लिए गाड़ी का लोन चुकाना बहुत मुश्किल है। बिजली, पानी और खाने-पीने के खर्चों के बाद कुछ बचता नहीं है कि गाड़ी का लोन अदा कर सकूं। मेरा परिवार तीन बार के बजाए दो बार ही खाना खा पा रहा है। खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश में आर्थिक आपातकाल लागू कर दिया है। इसके तहत सेना को अधिकार दिया गया है कि वो ये सुनिश्चित करे कि खाने-पीने का सामान आम लोगों को उसी कीमत पर मिले, जो सरकार ने तय किया है। ऐसे में भारत से मिली आर्थिक मदद से श्रीलंका सरकार जनता की जरूरतें पूरी कर सकेगी। (हिफी)
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