बेटियां
मेरे घर में लक्ष्मी बनाकर
आती है जब बेटियां,
रून-झून, रून'-झून पायल को
झनकाती है तब बेटियां ।
भैया- भैया कह-कहकर
शोर मचाती है जब बेटियां,
भाई के मन मंदिर में खुशियां
जगाती है तब बेटियां ।
थोडी-थोडी और बडी
हो जाती है जब बेटियां,
अपने पिता की लाडली
बन जाती है तब बेटियां।
माँ- माँ कह के आँचल में
छिप जाती है जब बेटियां,
मा के संजोए सपनों को
खूब सजाती तब बेटियां ।
दादा- दादी के लाढ प्यार को
पाती है जब बेटियां,
जीवन के हर क्षेत्र में आगे
बढ जाती है तब बेटियां ।
दोनों कुल के मर्यादा को
हृदय बसाती है जब बेटियां,
सबको खूब रूलाती है
पराई हो जाती है तब बेटियां।
उषा किरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर, बिहार
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