बेटी का घर
बापू मेरा घर है कहाँ
पूछ रही तुझे बेटियाँ
पहले जन्म हुई मेरी
मुन्ना भाई तब आया
आवभगत हुई भाई की
मुझे क्यों समझाई गई
क्या मैं करमजली हूँ ?
ऐसा माथे पर है लिखा
मुन्ना कहता घर है मेरा
घर नहीं है यहाँ तेरा
सजाती रही प्यार से मैं
सींचती श्रम से घर को
क्या मैं पराई हूँ, वो क्यूँ
ससुराल गई बलम घर
वह मानुष में उत्तम नर
जीवन साथी नाम पर
उनका भी हड्डी बेईमान
दहेज के खातिर वो भी
शैतान का रूप लिया धर
यहाँ क्या जा बाप के घर
मारता है ताना दे देकर
बापू कहाँ है मेरा घर।
डॉ. इन्दु कुमारी
मधेपुरा बिहार
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