प्रकृति श्रंगार का द्योतक वसंत
सत्येन्द्र कुमार पाठक
संस्कृत और हिंदी साहित्य में वसंत की व्यापक वर्णन किया गया है । वसंतोत्सव का आरंभ माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी से है । वसंत ऋतु के आगमन पर गुलाल उड़ाने , होली और धमार का गाने , वासंती वस्त्र धारण कर गायन, वाद्य एवं नृत्य में विभोर हो जाते हैं। वसंत को दोलोउत्सव , वसन्तोत्सव , कामदेवोत्सव , मदनोत्सव , सुवसंतक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण तथा कामदेव वसन्तोत्सव उत्सव के अधिदेवता हैं। कामशास्त्र में ‘सुवसंतक’नामक उत्सव , सरस्वती कंठाभरण’ सुवसंतक वसंतावतार का उल्लेख हैं। वसंतावतार अर्थात जिस दिन बसंत पृथ्वी पर अवतरित , ‘मात्स्यसूक्त’ और ‘हरी भक्ति विलास’ ग्रंथों मे बसंत का प्रादुर्भाव दिवस को मदन देवता की उपासना दिवस है। कामदेव के पंचशर (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) प्रकृति संसार में अभिसार को आमंत्रित करते हैं। वसंत का आगमन माघ शुक्ल पंचमी ( वसंत पंचमी ) एवं समापन चैत्र कृष्ण पंचमी को ( रंगपंचमी ) मनाया जाता है। वैष्णव संप्रदाय के मंदिरों में मनाया जानेवाला प्रमुख दोलोउत्सव में श्रीकृष्ण की मूर्ति हिंडोले में रखकर उपवनादि में उत्सवार्थ ले जाते हैं। वृंदावन तथा बंगाल में 'दोलयात्रा' कहते हैं। श्री गोपालभट्ट गोस्वामी विरचित 'श्री हरिभक्ति विलास ग्रंथ के अनुसार चैत्र शुक्ला द्वादशी को वैष्णवों को आमंत्रित कर गीत-वाद्य-संकीर्तन-सहित विविध उपचारों से भगवान श्री कृष्ण या विष्णु की उपासना की जाती है । चैत्र शुक्ला तृतीया तथा उत्तराफाल्गुनी से युक्त फाल्गुनी पूर्णिमा को उत्सव मानते है ।पद्मपुराण के पाताल खंड में दोलोउत्सव फाल्गुन तथा चैत्र मास में अनेक दिनों तक होता था ।फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा तथा चैत्र शुक्ला द्वादशी में मनाने का उल्लेख मिलता है । पद्मपुराण (पाताल खंड), गरुड़ पुराण, दोलयात्रातत्व तथा श्रीहरिभक्तिविलास में दोलोउत्सव के विशद विवेचन उपलब्ध हैं। तिरुमला में दोलोत्सव , 'दोलसेवा' की जाती है। विक्रम संवत के अनुसार वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला होली फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा एवं चैत्र कृष्ण प्रतिपदा का महत्वपूर्ण रंगों का पर्व भारतीय और नेपाली लोगों के लिए है। प्रथम दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन एवं दूसरे दिन धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन , रंग, अबीर-गुलाल , ढोल बजा कर होली के गीत और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाए जाते है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक बन कर राग अर्थात संगीत और रंग उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर लाता है। वसंत में खेतों में सरसों खिल उठना , बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छाना , आम्र मंजरी की महक, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने और बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। आचार्य चाणक्य आर्यावर्त पर आने वाले संकट का हल खोजने लगे और मगध की संकट से बे खबर मगध साम्राज्य का राजा घनानन्द नन्द की विलासी प्रवृति एवं राज महल में सिर्फ और परिचारिकाएं , सैनिक स्त्रियां मगध साम्राज्य का सम्राट घनानंद का अधिकांश समय अपनी रंगमहल में वसंत मनाने में थी । मगध साम्राज्य का राजा घनानंद द्वारा कुसुमपुर में वसंतोत्सव के लिए वसन्तोत्सव महल का निर्माण कराया गया था । वसंत उत्सव के लिए कुसुमपुर में विशाल मंडप का निर्माण कराया गया । महामंत्री राक्षस उस कार्यक्रम की देख रेख कर रहे थे । बडे खुले वन प्रदेश में बडा पंडाल लगाया गया जिसके ऊपर झालरों से सुसज्जित की गई थी सातवीं-आठवीं शताब्दी में मगध साम्राज्य का राजा हर्षवर्द्धन द्वारा वसन्त ऋतु के महीने वसंतोत्सव के लिए समर्पित किया गया था । वसन्तोत्सव में विवाह योग्य युवक-युवतियाँ अपनी इच्छा से जीवनसाथी चुनती थीं और समाज पूरी प्रतिष्ठा के साथ मान्यता देता था। वसंत ऋतु में वसंत पंचमी , माह शिवरात्रि , होली , गुप्त नवरात्र , रतिउत्सव , कामोउत्सव और प्रकृति उत्सव मनाया जाता है । भारतीय ग्रंथों में, वेद, सरस्वती के लिए प्रार्थना एक सफेद कपड़े और सफेद मोती के साथ अलंकृत एक सफेद पोशाक में एक प्राचीन महिला के रूप में दर्शाया गया है। वह पानी (नेलुहिनी) के एक विस्तृत खंड में खिलते हुए एक सफेद कमल पर बैठती है। माता सरस्वती वीणा की तान से प्रकृति को विकास करती है । ओह, माँ सरस्वती, मेरे मन के अंधकार (अज्ञान) को दूर करें और मुझे अनन्त ज्ञान प्रदान करें।"वर्ष में बारह महीनों के छः ऋतुएँ में बसंत का मौसम बड़ा ही सुहावना होने के कारण वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती हैं । वसंत ऋतु में नयें नयें पत्ते और फूल , फूलों पर भौरों का गुंजन , खेतों में हरियाली , मंद मंद पवन बहती , अजीब सी खुशबु का एहसास , सम्पूर्ण आसमा स्वच्छ व नीले रंग , आम के वृक्ष पर मंजर आने से कोयल का मीठी वाणी में कुहू कुहू का मधुर संगीत मन विभोर करता हैं । वसंत ऋतु में सैर करने से स्वास्थ्य अच्छा तथा शरीर में नयें रक्त का जन्म एवं शरीर का अंग अंग प्रफुल्लित होता है ।भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि मैं सभी ऋतुओं में वसंत हूँ । वसंत में शीतल, मंद, सुगन्धित पवन चलती है. वह शरीर को सुखदायी लगती है । ऋतु में प्रकृति की सुंदरता , पेड़ों पर नयें पत्ते उगने पाए प्रकृति ने हरियाली एवं खूबसूरत फूलों की चादर ओढ़कर अपना श्रृंगार करती है । सरसों के पीले फूल जहाँ प्रकृति की स्वर्णमयी होने का आभास , महुए एवं आम्रमंजरी की मादक गंध से प्रकृति अंगड़ाई लेती नजर आती हैं । ऋतुराज वसंत को कवियों एवं लेखकों का दिल स्पंदन से उपजे शब्द में वसंटी हवा हूँ , वासंती हवा , जिध जलती हुन उधर मस्त मौला । ऋतु को केंद्र में रखकर रचनाएं की हैं वसंत की सरस घड़ी है जी करता मैं भी कुछ गाऊ , कवि हूँ आज प्रकृति पूजन में निज कविता के दीप जलाऊं । वसंत ऋतु मानव को संदेश देती हैं कि दुःख के बाद सुख का आगमन होता है । परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है उसी प्रकार जीवन में भी परिवर्तनशीलता का नियम लागू होता है । सामाजिक चेतना, भौगोलिक सुषमा एवं पर्यावरणीय विकास की दृष्टि से वंसत ऋतु का अपना विशिष्ट सौन्दर्य सभी को आनन्ददायी लगता है । भगवान सूर्य का विषुवत रेखा पर आगमन होने पर वसंत ऋतु प्रारम्भ होने से समस्त प्रकृति में सौन्दर्य एवं उन्माद , धरती का नया रूप , प्रकृति श्रृंगार करती तथा समस्त प्राणियों के ह्रदय में उमंग, उत्साह एवं मादकता से भर जाते हैं । नयें संवत्सर का आरम्भ होते है । वंसत का सौन्दर्य सर्वोपरि रहता है । प्रकृति का श्रृंगार का द्योतक वसंत है ।
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