अपर्णा का भाजपा में जाने का संदेश
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राजनेता सिर्फ जनता को ही बेवकूफ नहीं बनाते, बल्कि आपस में भी यही खेल खेलते हैं। बात चाहे उत्तराखंड के हरक सिंह रावत की करें अथवा भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य की। मजे की बात तो यह है कि सपा के साथ लोगों के जुटने के बाद सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने लोगों से अपील भी की थी कि अखिलेश के हाथ मजबूत करें लेकिन अपनी छोटी बहू अपर्णा यादव को भाजपा का पटका ओढ़ने को भेज दिया। मुलायम सिंह यादव का अपने परिवार पर भरपूर नियंत्रण है और अनुकूल परिस्थितियों को देखकर उन्होंने शिवपाल यादव और अखिलेश यादव को एक मंच पर खड़ा कर दिया। इसलिए अपर्णा यादव का भाजपा में जाना सोची समझी रणनीति है। प्रदेश की सत्ता चाहे सपा और उससे गठबंधन करने वाले राजनीतिक दलों के पास रहे अथवा भाजपा ही दोबारा सरकार बनाए, मुलायम सिंह के परिवार को सत्ता का संरक्षण प्राप्त होता रहेगा। भाजपा और दूसरे दलों को छोड़कर सपा में शामिल हुए नेता और सपा से गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे छोटे-छोटे दलों को भी अखिलेश यादव से यह सवाल पूछना चाहिए कि अपर्णा यादव भाजपा में क्यों शामिल हुईं। विजय राजे सिंधिया और माधव राव सिंधिया की राजनीति का उदाहरण देना भी यहां ठीक नहीं है। पहली बात तो यह कि विजय राजे पहले कांग्रेस की ही नेता हुआ करती थीं। माधवराव सिंधिया कांग्रेस की नीतियों में निष्ठा रखते थे। दोनों ने मरते दम तक अपनी अपनी निष्ठा का पालन किया लेकिन अपर्णा यादव तो 2017 में ही सपा के चुनाव चिन्ह पर लखनऊ में विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं। इसलिए अपर्णा यादव की भाजपा की नीतियों के प्रति कोई निष्ठा है, यह बात गले से नहीं उतरती और न यह बात ही हजम होती है कि अपर्णा यादव ने मुलायम सिंह यादव की बात काटकर भाजपा ज्वाइन की है। अपर्णा यादव को लेकर अखिलेश यादव से पहले भी सवाल उठाए गये थे, तब उन्होंने कहा था कि अपर्णा की बात अपर्णा ही जानें। इस जवाब के बाद बसपा प्रमुख मायावती की बात याद आती है जो उन्होंने 2019 में सपा से नाता तोड़ते समय कही थी। बसपा प्रमुख ने कहा था कि भाजपा का मुकाबला करने के लिए सपा यदि अपना प्रमुख वोटबैंक ही मजबूत नहीं रख पायी तो उसके साथ गठबंधन करने से क्या फायदा? इसलिए अपर्णा यादव का भाजपा में जाना एक महत्वपूर्ण संदेश जनता के लिए भी है और उन नेताओं के लिए भी जो अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले रोज नये कारनामे देखने को मिल रहे हैं । गत 19 जनवरी को भी यूपी की सियासत में बड़ी हलचल हुई है। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव भाजपा में शामिल हो गईं। भाजपा में अपर्णा यादव की एंट्री से न केवल भाजपा ने सपा में सेंधमारी की है, बल्कि मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू ने सपा मुखिया अखिलेश यादव को बड़ा झटका दिया है। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले बीजेपी में शामिल होने के बाद अपर्णा यादव ने कहा कि मैं भाजपा की बहुत आभारी हूं। मेरे लिए देश हमेशा सबसे पहले आता है। मैं पीएम मोदी के काम की प्रशंसा करती हूं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हो गईं। मुलायम सिंह यादव के बेटे प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव लखनऊ कैंट विधानसभा से सपा पार्टी के टिकट पर 2017 में चुनाव हार चुकी हैं। भाजपा का दामन थामने के बाद अपर्णा यादव ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री मोदी जी का और राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का धन्यवाद करती हूं। उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और अनिल बलूनी जी का धन्यवाद करती हूं। मैं प्रधानमंत्री जी से पहले से ही प्रभावित रहती थी, मेरे लिए सर्वप्रथम राष्ट्र है। अब मैं राष्ट्र की आराधना के लिए निकली हूं। आपका सहयोग अनिवार्य है। यही कहूंगी कि जो भी कर सकूंगी अपनी क्षमता से करूंगी।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 की तिथियां जारी होते ही नेताओं का पाला बदलना शुरू हो गया है। योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी जैसे वरिष्ठ नेता समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं। इसके अलावा भाजपा के कई विधायक भी सपा में शामिल हो चुके हैं। अन्य छोटे दलों के प्रभावी नेताओं का भी पाला बदलने का सिलसिला जारी है। सियासी उथल-पुथल का दौर भी शुरू हो गया है। इसी क्रम में हरदोई सदर से समाजवादी पार्टी के विधायक नितिन अग्रवाल ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया है। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपना इस्तीफा भेज दिया है। नितिन अग्रवाल ने 18 जनवरी को ही विधानसभा उपाध्घ्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इस बाबत उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। नितिन अग्रवाल भी भाजपा का ही दामन थामेंगे क्योंकि विधानसभा में उपाध्यक्ष की कुर्सी भाजपा की मेहरबानी से ही मिली थी। उनके पिता नरेश अग्रवाल पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके हैं।
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए सात चरणों में मतदान 10 फरवरी से शुरू होगा। उत्तर प्रदेश में अन्य चरणों में मतदान 14, 20, 23, 27 फरवरी, 3 और 7 मार्च को होगा। वहीं यूपी चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे। ध्यान रहे कि 2017 के चुनाव में बीजेपी ने यहां की 403 में से 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी। सपा और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा ने 47 और कांग्रेस ने 7 सीटें ही जीती थीं। मायावती की बसपा 19 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वहीं 4 सीटों पर अन्य का कब्जा हुआ था।
इस बार भी चुनाव आयोग ने दिशा-निर्देश जारी किया है, जिसमें चुनावों में हिस्सा ले रहीं सभी राजनीतिक पार्टियों को क्रिमिनल केस वाले नेताओं को टिकट देने को लेकर सार्वजनिक तौर पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है। यह बताने को कहा गया है कि आखिर आपराधिक मुकदमें वाले लोगों को क्यों टिकट दिया जा रहा है? साथ ही यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि साफ छवि वाले लोगों को उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया जा सकता है? ऐसे में संबंधित राजनीतिक दलों की ओर से दिलचस्प खुलासे किए गए हैं। भाजपा ने अभी तक 109 उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिनमें से 37 पर क्रिमिनल केस है। वहीं, सपा ने अभी तक 20 ऐसे नेताओं को टिकट दिया है, जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमें लंबित हैं। समाजवादी पार्टी के एक उम्मीदवार पर तो 38 मामले दर्ज हैं। चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देश के बाद भाजपा की ओर से दिलचस्प खुलासे किए गए हैं. दरअसल, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर 4 आपराधिक मामले दर्ज हैं। मौर्य सिराथू से भाजपा उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। केशव प्रसाद मौर्य को टिकट क्यों दिया गया, इसको लेकर बीजेपी ने दलील भी दी है। भाजपा का कहना है कि केशव प्रसाद मौर्य न केवल अपने विधानसभा क्षेत्र में, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय हैं। भाजपा का कहना है कि पार्टी की स्थानीय इकाई ने मेरिट के आधार पर उनका नाम आगे बढ़ाया। बीजेपी के चुनाव आयोग संपर्क विभाग के अनुसार, केशव प्रसाद मौर्य को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में फंसाया गया है, ऐसे में अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले उनको प्राथमिकता दी गई। इसी प्रकार के जवाब अन्य राजनीतिक दलों की तरफ से भी आपराधिक मामलों के दर्ज होने के बावजूद टिकट देने पर दिया गया है। ऐसे नेता भी कभी कभी पार्टी छोड़कर चले जाते हैं। (हिफी)
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