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मायावती की सधी राजनीति

मायावती की सधी राजनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष एवं यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती राजनीतिक जीवन के लम्बे अनुभवों से गुजर चुकी हैं। उन्होंने 15 जनवरी को अपने जन्मदिन पर कार्यकर्ताओं की शुभकामनाआं के साथ राजनीतिक संदेश भी दिया है। मायावती 1989 मंे पहली बार सांसद बनी थीं और 1993 मंे वह अनुसूचित जाति की पहली मुख्यमंत्री बनीं। जन्मदिन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाघ्थ ने भी उन्हंे शुभकामनाएं दी हैं। दरअसल, इस बार का विधानसभा चुनाव थोड़ा जटिल हो गया है। यह सच है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व मंे सपा में उनके चाचा शिवपाल यादव ही नहीं भाजपा से टूटकर कई नेता भी पहुंचे हैं लेकिन इससे लाभ के साथ नुकसान की संभावना भी बनी हुई है। पुराने सपाई मानते हैं कि उनका हक छीना जा रहा है। बसपा प्रमुख ने बहुत सोच समझ कर अकेले दम पर चुनाव मंे उतरने का फैसला किया है। वे भाजपा से सीधा टकराव भी नहीं चाहती हैं। चुनाव के नतीजे आने के बाद राजनीति के समीकरण फिर बदलेंगे। मायावती इसीलिए चुनाव नहीं लड़ रही हैं।

बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण की 58 सीटों में 53 पर अपने उम्मीदवार तय कर लिए हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्मदिन पर मीडिया को संबोधित करते हुए यह जानकारी दी। उन्होंने साथ ही बताया कि अन्य 5 सीटों पर भी दो-तीन दिन में फैसला हो जाएगा। मायावती ने विधानसभा चुनाव में खुद के लड़ने की खबर पर भी साफ-साफ जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘मीडिया को मेरे खिलाफ कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है तो वो आये दिन मेरे चुनाव लड़ने के मुद्दे को उछालते रहते हैं। मैं चार बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा की सदस्य रह चुकी हूं। मैं अपनी पार्टी के हित में सीधा चुनाव लड़ने की जगह अपने कार्यकर्ताओं को जिताने का काम करूंगी। हमारे संविधान में ये व्यवस्था है कि कोई बिना चुनाव लड़े भी अपनी योग्यता से किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकता है।’ बसपा सुप्रीमो ने कहा, ‘लोग आकाश आनंद के भी चुनाव लड़ने की बात मीडिया में उछालते रहते हैं। वो मेरे निर्देशन में पार्टी के काम में लगा है। अगर मीडिया और विरोधी पार्टी आकाश आनंद के पीछे पड़ते रहे तो मैं उसे अपनी पार्टी में और बढ़ावा दूंगी। आकाश आनंद और एससी (सतीश चंद्र) मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा युवाओं को बीएसपी से जोड़ने में लगे हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि इस बार बीएसपी 2007 की तरह सत्ता में लौटेगी और ओपेनियन पोल धरा का धरा रह जाएगा।’ इसके साथ ही मायावती ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी बसपा का किसी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमारी पार्टी सर्व समाज के गठबंधन से जीतेगी।’

जाहिर है, मायावती सपा के साथ नहीं हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य सहित बीजेपी के कई मंत्रियों और विधायकों के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पार्टी में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले खासा जोश दिख रहा है। हालांकि इन नेताओं को टिकट देने में अखिलेश यादव को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। यहां इन नए नेताओं के आने से एक ही सीट पर कई दावेदारों वाली स्थिति हो गई है। सहारनपुर जिले की नकुड़ विधानसभा सीट को इसके एक उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री पद छोड़कर सपा में शामिल हुए धर्म सिंह सैनी नकुड़ से लगातार दूसरी बार विधायक हैं और आगामी चुनाव में इस सीट के लिए एक प्रमुख दावेदार हैं। उधर कांग्रेस छोड़कर सपा में आए इमरान मसूद भी इसी सीट पर दावेदार रहे हैं। वह वर्ष 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे। सैनी और मसूद के अलावा समाजवादी पार्टी के कई स्थानीय नेता भी नकुड़ सीट से टिकट का दावेदारी कर रहे थे। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को 18 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा विधायक हैं। सपा वर्ष 2012 में पडरौना में चैथे स्थान पर रही थी और वर्ष 2017 के चुनाव में गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को यह सीट दे दी थी, जो उस चुनाव में इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही थी। ऐसे में मौर्य को पडरौना से उम्मीदवार बनाने में सपा के लिए तो कोई परेशानी नहीं होगी, हालांकि उनके बेटे उत्कृष्ट के टिकट पर फैसला अखिलेश के लिए आसान नहीं होगा। उत्कृष्ट वर्ष 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में ऊंचाहार सीट पर सपा के मनोज पांडे से हार गए थे। उत्कृष्ट ने 2012 में बसपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, जबकि 2017 में वह भाजपा प्रत्याशी थे। ऐसे में अपने इलाके के बड़े ब्राह्मण नेता में शुमार मनोज पांडे का इस सीट पर दावा मजबूत माना जाता है।

बसपा के दिग्गज नेता रहे राम अचल राजभर कुछ हफ्ते पहले ही सपा में शामिल हुए हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में अकबरपुर सीट पर राजभर ने तत्कालीन सपा विधायक को हराकर कब्जा जमाया था। राजभर उन गिने-चुने बसपा विधायकों में थे, जिन्होंने मोदी लहर में अपनी जीत पक्की की थी। ऐसे में वह इस पर दावेदारी आसानी से छोड़ने वाले नहीं। इसका एक नजारा हाल ही में तब देखने को मिला जब उन्होंने अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए एक बड़ी रैली का आयोजन किया। कुछ ऐसा ही हाल कटेहरी निर्वाचन क्षेत्र का है, जहां के मौजूदा विधायक लालजी वर्मा ने हाल ही में बसपा का साथ छोड़ साइकिल को चुना है। वह इस सीट से टिकट की दौड़ में सबसे आगे हैं। हालांकि इसी सीट पर सपा के वरिष्ठ नेता जयशंकर पांडे भी दावेदारी कर चुके है। वह पिछले विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके अलावा भिंगा, सिधौली, प्रतापपुर, हंडिया, धोलाना, मुंगरा बादशाहपुर, चिल्लूपर, सीतापुर, खलीलाबाद, बिलसी और नानपारा जैसे सीटों पर भी अन्य दलों के विधायकों ने सपा का दामन थामकर अखिलेश के लिए टिकट बंटवारे की राह मुश्किल कर दी है। दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि बीजेपी को रोकना है। बीजेपी को रोकने के लिए मैंने अपने स्वाभिमान से समझौता किया। अंत समय में मुझे लगा कि अखिलेश जी को दलितों की जरूरत नहीं है। वो चाहते हैं दलित उनको वोट करें और वो दलितों को लीडर नहीं बनाना चाहते। भीम आर्मी चीफ ने कहा, मैं यहां दो दिन से हूं मुझे लगा कि किसी तरह से बात हो जाए। मैं ये समझता हूं वो गठबंधन में दलित समाज को नहीं चाहते। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर ने ऐलान किया कि उनकी आजाद समाज पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी। उन्होंने कहा, हमने यह तय किया है हम समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में नहीं जा रहे हैं। हम सड़कों पर खुद लड़े हैं। हम मानते हैं दलितों के हितों की रक्षा स्वंय करनी होगी। आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ कल हुई मुलाकात को लेकर कहा, मैंने उनसे (अखिलेश यादव से) कहा कि आप हमारे बड़े भाई हैं, आप सीटों का तय कर लें लेकिन उन्होंने मुझे नहीं बुलाया। बात सीट की नहीं है, बात हमारे हितों की रक्षा की है। बात हिस्सेदारी की है, जितनी संख्या हमारी, उतनी हिस्सेदारी। यह सही है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी से नेताओं के इस्तीफे का सिलसिला बदस्तूर जारी है। यहां अब बरेली के आंवला विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक धर्मपाल के पार्टी छोड़ने की चर्चा है। हालांकि विधायक ने इसका खंडन किया है। इसलिए मुख्य विपक्षी सपा की स्थिति भी ठोस नहीं है। इसका फायदा मायावती का मिल सकता है। (हिफी)
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