माता गौरी का साधना स्थल गौरीकुंड
सत्येन्द्र कुमार पाठक उत्तराखंड राज्य का चमोली जिले के सोन प्रयाग से केदारनाथ के रास्ते में मंदाकनी नदी के किनारे गौरीकुंड स्थित है। गौरी कुण्ड समुद्र तल से 6502 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । केदारनाथ यात्रा के दौरान गौरीकुंड स्थान पर रूक कर कुण्ड में स्नान कर आगे बढ़ते है। भगवान शिव ने माता गौरी के प्रेम को स्वीकार किया। गौरीकुंड से 12 कि . मि . की दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण में माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था । माता पार्वती कुण्ड में स्नान करते हुए अपने शरीर के मैल से गणेश जी को बना कर प्रवेश द्वार पर खडा किया। जब भगवान शिव इस स्थान पर पहुंचे तभी गणेश ने उन्हें रोक दिया था। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गये और गणेश का सिर काट दिया। माता पार्वती बहुत दुःखी और क्रोधित हो गई। माता पार्वती ने अपने बेटे गणेश का जीवित करने को कहा। भगवान शिव ने हाथी का सिर गणेश के शरीर पर लगा दिया था। इस प्रकार भगवान गणेश के जन्म और हाथी के सिर की कथा स्थान से जुड़ी हुई । गौरीकुंड में वासुकी गंगा केदारनाथ से वासुकी ताल होते हुए मंदाकिनी में मिलती है । गौरीकुंड १९८१ मी. ऊँचाई पर है।गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी १४ किलोमीटर दूरी तय करने के लिए पैदल , घोड़े, डाँडी या कंडी से करते हैं। गौरीकुंड में,, मंदाकिनी के दाहिने तट पर, गर्म पानी के दो सोते (५३°C और २३°C) है । एच.जी. वाल्टन ने ब्रिटिश गढ़वाल गजटियर में लिखा है कि गौरीकुंड मंदाकिनी के तट पर चट्टी थी। गौरा चट्टी माता गौरी को समर्पित –है। यहां अत्यधिक समर्पण भाव के साथ संध्याकालीन आरती की जाती है। पावन मंदिरगर्भ में शिव और पार्वती की धात्विक प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहां एक पार्वतीशिला विद्यमान है । माता पार्वती ने गौरी चट्टी में बैठकर ध्यान लगाया था । पहाड़ी इलाको का भव्य नज़ारा और कुंड के निकट बहती वासुकी गंगा के चारो ओरे उज्जवल हरियाली देखने के लिए आकर्षक जगह है | पुरणों के अनुसार गौरीकुंड वह स्थान है , जहाँ देवी पारवती ने सौ साल तक भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए ध्यान या तपस्या की थी । गौरी कुंड के निकट माता गौरी का एक प्राचीन मंदिर देवी पारवती को समर्पित है | गौरीकुंड के निकट प्रसिद्ध “ त्रियुगीनारायण मंदिर “ स्थित है । जहाँ भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था । मंदिर में युगल की मूर्तियों की जटिलताएं हैं । त्रियुगीनारायण स्थान के समीप दो पवित्र स्नान पूल उपस्थित है , जिनमे से एक पूल में गर्म पानी सल्फर के निशान के साथ निकलता है और दुसरे कुंड से ठंडा पानी निकलता है , जिसे गौरीकुंड कहा जाता है | कुंड का पानी अक्सर बदलता रहता है ,गर्म पानी से तेज पानी मन्दाकिनी नदी से निकलता है । संहिताओं एवं देवी भागवत के अनुसार भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटा में बांध लिया था । शिव का स्पर्श पाकर वह पवित्र हो गईं । यह पार्वती को अच्छा नहीं लगा था कि वो हमेशा शिव के साथ रहें । ऐसे में जब इस कुंड के पास से कोई यात्री गंगाजल लेकर कोई गुजरने पर पानी में उबाल आ जाता है । महिला गौरी कुंड में गंदे वस्त्रों से स्नान करे या वस्त्र कुंड में फेंक देने पर कुंड का पानी सूख जाता है । सोन प्रयाग से गौरीकुंड मार्ग के मध्य में भगवान शिव द्वारा गणेश के काटा हुआ सिर का स्मरण कराता है । गौरीकुंड के समीप गणेश जी का “सिरकाता मंदिर” । गणेशजी का सिरकटा मंदिर के संबंध कहा जाता है कि देवी पार्वती ने प्रभु गणेश को दरवाजे की रक्षा करने का आदेश दिया क्योंकि वह पूल में स्नान कर रही थी । प्रभु गणेश ने पूल के अंदर भगवान शिव को जाने के लिए प्रतिबंधित किया । भगवान शिव ने क्रोध में प्रभु गणेश का सर काट दिया , लेकिन भगवान शिव को यह मालूम नहीं था कि गणेश उनका अपना बेटा था | देवी पार्वती को प्रभु गणेश की मृत्यु का बारे में पता चलते ही , देवी पारवती ने भगवान शिव को अपने प्यारे पुत्र का जीवन वापस लाने के लिए विनती की | माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने गणेश के सिर को एक सफ़ेद हाथी के सिर के साथ बदल दिया और गणेश को अमरता का उत्तराखंड राज्य का चमोली जिले के सोन प्रयाग से केदारनाथ के रास्ते में मंदाकनी नदी के किनारे गौरीकुंड स्थित है। गौरी कुण्ड समुद्र तल से 6502 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । केदारनाथ यात्रा के दौरान गौरीकुंड स्थान पर रूक कर कुण्ड में स्नान कर आगे बढ़ते है। भगवान शिव ने माता गौरी के प्रेम को स्वीकार किया। गौरीकुंड से 12 कि . मि . की दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण में माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था । माता पार्वती कुण्ड में स्नान करते हुए अपने शरीर के मैल से गणेश जी को बना कर प्रवेश द्वार पर खडा किया। जब भगवान शिव इस स्थान पर पहुंचे तभी गणेश ने उन्हें रोक दिया था। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गये और गणेश का सिर काट दिया। माता पार्वती बहुत दुःखी और क्रोधित हो गई। माता पार्वती ने अपने बेटे गणेश का जीवित करने को कहा। भगवान शिव ने हाथी का सिर गणेश के शरीर पर लगा दिया था। इस प्रकार भगवान गणेश के जन्म और हाथी के सिर की कथा स्थान से जुड़ी हुई । गौरीकुंड में वासुकी गंगा केदारनाथ से वासुकी ताल होते हुए मंदाकिनी में मिलती है । गौरीकुंड १९८१ मी. ऊँचाई पर है।गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी १४ किलोमीटर दूरी तय करने के लिए पैदल , घोड़े, डाँडी या कंडी से करते हैं। गौरीकुंड में,, मंदाकिनी के दाहिने तट पर, गर्म पानी के दो सोते (५३°C और २३°C) है । एच.जी. वाल्टन ने ब्रिटिश गढ़वाल गजटियर में लिखा है कि गौरीकुंड मंदाकिनी के तट पर चट्टी थी। गौरा चट्टी माता गौरी को समर्पित –है। यहां अत्यधिक समर्पण भाव के साथ संध्याकालीन आरती की जाती है। पावन मंदिरगर्भ में शिव और पार्वती की धात्विक प्रतिमाएं विराजमान हैं। गौरीकुंड में पार्वतीशिला विद्यमान है । माता पार्वती ने गौरी चट्टी में बैठकर ध्यान लगाया था । पहाड़ी इलाको का भव्य नज़ारा और कुंड के निकट बहती वासुकी गंगा के चारो ओरे उज्जवल हरियाली देखने के लिए आकर्षक जगह है | पुरणों के अनुसार गौरीकुंड वह स्थान है , जहाँ देवी पारवती ने सौ साल तक भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए ध्यान या तपस्या की थी । गौरी कुंड के निकट माता गौरी का एक प्राचीन मंदिर देवी पारवती को समर्पित है | गौरीकुंड के निकट प्रसिद्ध “ त्रियुगीनारायण मंदिर “ स्थित है । जहाँ भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था । मंदिर में युगल की मूर्तियों की जटिलताएं हैं । त्रियुगीनारायण स्थान के समीप दो पवित्र स्नान पूल उपस्थित है , जिनमे से एक पूल में गर्म पानी सल्फर के निशान के साथ निकलता है और दुसरे कुंड से ठंडा पानी निकलता है , जिसे गौरीकुंड कहा जाता है | कुंड का पानी अक्सर बदलता रहता है ,गर्म पानी से तेज पानी मन्दाकिनी नदी से निकलता है । संहिताओं एवं देवी भागवत के अनुसार भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटा में बांध लिया था । शिव का स्पर्श पाकर वह पवित्र हो गईं । यह पार्वती को अच्छा नहीं लगा था कि वो हमेशा शिव के साथ रहें । ऐसे में जब इस कुंड के पास से कोई यात्री गंगाजल लेकर कोई गुजरने पर पानी में उबाल आ जाता है । महिला गौरी कुंड में गंदे वस्त्रों से स्नान करे या वस्त्र कुंड में फेंक देने पर कुंड का पानी सूख जाता है । सोन प्रयाग से गौरीकुंड मार्ग के मध्य में भगवान शिव द्वारा गणेश के काटा हुआ सिर का स्मरण कराता है । गौरीकुंड के समीप गणेश जी का “सिरकाता मंदिर” । गणेशजी का सिरकटा मंदिर के संबंध कहा जाता है कि देवी पार्वती ने प्रभु गणेश को दरवाजे की रक्षा करने का आदेश दिया क्योंकि वह पूल में स्नान कर रही थी । प्रभु गणेश ने पूल के अंदर भगवान शिव को जाने के लिए प्रतिबंधित किया । भगवान शिव ने क्रोध में प्रभु गणेश का सर काट दिया , लेकिन भगवान शिव को यह मालूम नहीं था कि गणेश उनका अपना बेटा था | देवी पार्वती को प्रभु गणेश की मृत्यु का बारे में पता चलते ही , देवी पारवती ने भगवान शिव को अपने प्यारे पुत्र का जीवन वापस लाने के लिए विनती की | माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने गणेश के सिर को एक सफ़ेद हाथी के सिर के साथ बदल दिया और गणेश को अमरता का वरदान देकर “गणपति” नामकरण दिया । प्रभु गणेश की पुरे भारत भर में समृद्धि और खुशी के देवता के रूप में पूजा होती है । गौरी कुंड के समीप उमा शंकर शीला चट्टान है , जहां 12 संतों की आत्माएं निवास करते थी । पवित्र तीर्थ स्थान गौरीकुंड , कालीमठ मंदिर , केदारनाथ मंदिर , तुंगनाथ मंदिर , कोटेश्वर महादेव मंदिर , हरियाली देवी मंदिर , गुप्तकाशी मंदिर और त्रियुगीनारायण मंदिर दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते है ।वरदान देकर “गणपति” नामकरण दिया । प्रभु गणेश की पुरे भारत भर में समृद्धि और खुशी के देवता के रूप में पूजा होती है । गौरी कुंड के समीप उमा शंकर शीला चट्टान है , जहां 12 संतों की आत्माएं निवास करते थी । पवित्र तीर्थ स्थान गौरीकुंड , कालीमठ मंदिर , केदारनाथ मंदिर , तुंगनाथ मंदिर , कोटेश्वर महादेव मंदिर , हरियाली देवी मंदिर , गुप्तकाशी मंदिर और त्रियुगीनारायण मंदिर दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते है । केदारनाथ परिभ्रमण के दौरान गुप्त काशी , सोन प्रयाग में गौरी कुंड एवं केदारनाथ क्षेत्र में 16 एवं 17 जून 2013 को वारिस तथा भुस्खलन के त्रासदी से 1309 हेक्टयर भूमि , मकान , होटल ,रामबाड़ा ग्राम , 172 छोटे पुल , 86 मोटर पुल ,बाढ़ के कारण ध्वस्त तथा दाह गया था । 13 अक्टूबर 2013 को केदारनाथ यात्रा के दौरान साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक एवं बिहार जीविकोपार्जन परियोजना समिति के प्रशिक्षण पदाधिकारी प्रवीण कुमार पाठक गुप्त काशी से सोन प्रयाग तक छोटी गाड़ी से सोनप्रयाग में पहुच कर त्रासदी को परखा । सोन प्रयाग से गौरीकुंड तक पदयात्रा की । गौरीकुंड में त्रासदी में हुए क्षतिग्रस्त एवं गौरी मंदिर एवं माता पार्वती का साधना स्थल देखा परंतु गौरीकुंड का अस्तिव समाप्त था । पर्वतों से निकल गर्म जल का सोत मंदाकनी नदी में प्रवाहित हो रही थी । गौरीमन्दिर में दीवार में मूर्तियां थी लेकिन मंदिर में माता गौरी की मूर्तियां नही थी । ग्रामीणों ने बताया कि त्रासदी में मंदिर की मूर्तियां प्रवाहित हो गयी है । मंदाकनी नदी के किनारे त्रासदी में मारे गए इंसान का संस्कार किया गया था का स्थल है । गौरीकुण्ड स्थित होटल में रात्रि विश्राम कर केदारनाथ यात्रा 14 अक्टूबर 2013 को प्रारम्भ की थी । सोन प्रयाग में त्रासदी से भवन , सड़के समाप्त हो गयी थी । सोनप्रयाग में उत्तराखंड की प्रशासन एवं पुलिश प्रशासन द्वारा केदारनाथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए यात्रियों के साथ गौरीकुंड तक प्रबंध किया गया था ।सोन प्रयाग से गौरीकुंड तक 10 यात्री यात्रा की थी ।यात्रा क्रमा में सिरकटा गणेश जी मंदिर का दर्शन करने के बाद गौरीकुण्ड गया था ।
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