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शराबियों को पकड़ेंगे शिक्षक तो पढ़ाएंगे क्या खाक!

शराबियों को पकड़ेंगे शिक्षक तो पढ़ाएंगे क्या खाक!

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
नीतीश कुमार ने 2005 में जब बिहार की सत्ता संभाली, तब उन्हांेने शराब नीति को उदार किया था। इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार का खजाना तो भर गया लेकिन शराब की दुकानों का मजबूत नेटवर्क बन गया था। गांव-गांव में शराब की भट्ठियां चलने लगी थीं। इसके बाद महागठबंधन की सरकार भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2016 मे बनी, तब पूर्ण शराबबंदी लागू हुई। तत्कालीन सरकार के प्रमुख सहयोगी राजद के नेता लालू प्रसाद कहते हैं कि वे पूर्ण शराबबंदी के पक्ष में नहीं थे लेकिन नीतीश कुमार ने वाहवाही लूटने के चक्कर में शराबबंदी लागू कर दी। राज्य को राजस्व का घाटा तो हुआ लेकिन लोगों ने शराब पीना नहीं छोड़ा। किशोर-किशोरियों में ऐसी लत लगी कि नाशा सुधार केन्द्रों में लाइन लग गयी। सरकार ने सख्ती की। पटना हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सितम्बर 2016 में शराबबंदी कानून के तहत मिलने वाली सजा को अनुचित बताया। नीतीश कुमार ने कानून में संशोधन कर दिया। नतीजा यह कि राज्य में जहरीली शराब से मौतों की संख्या बढ़ गयी। अब नीतीश कुमार की सरकार ने शराबबंदी को सफल बनाने के लिए शिक्षकों को दायित्व सौंपा है। लोग शराब पीना छोड़ेंगे अथवा नहीं लेकिन शिक्षा व्यवस्था जरूर चैपट होगी जो पहले से ही कोरोना के चलते पटरी से उतर चुकी है।

बिहार में शराबबंदी कानून को सफल बनाने और शराबियों पर नकेल कसने के लिए शिक्षा विभाग ने नया फरमान जारी किया है। इसके मुताबिक अब राज्य के सभी सरकारी शिक्षक शराबियों की पहचान करेंगे और इसकी सूचना उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग को देंगे। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने बिहार के तमाम डीईओ और डीपीओ को पत्र जारी कर इसे अमल में लाने को कहा है। यह आदेश तमाम सरकारी शिक्षकों के साथ शिक्षक समितियों को भी दिया गया है। शिक्षा विभाग के इस फरमान के बाद राज्य का सियासी पारा गर्म हो गया है और इसे तुगलकी करार दिया जा रहा है।

मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने इसको तुगलकी फरमान करार देते हुए कहा कि शिक्षा विभाग का यह फैसला हास्यास्पद है, इसे तत्काल वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार में पहले ही शिक्षकों की कमी है, ऐसे मैं यदि शिक्षक पढ़ाने के बजाय शराबियों को ढूंढने में लग जाएंगे तो छात्रों को कौन पढ़ाएगा? शिक्षा विभाग के इस फैसले पर कांग्रेस ने भी कड़ा प्रहार करते हुए कहा है कि यह फैसला आश्चर्यजनक है। पार्टी के प्रवक्ता अजीत नाथ तिवारी ने सवाल उठाया कि जब बिहार में शिक्षक पाठशाला जाने के बजाय मधुशाला खोजने में लगेंगे, तो छात्रों की पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी। उन्होंने इसे शिक्षा विभाग का सनकपन भरा फैसला बताते हुए तत्काल इसे वापस लिए जाने की मांग की। वहीं, शिक्षा विभाग के इस फैसले पर जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) ने पूर्ण सहमति जताते हुए कहा कि शिक्षक, समाज के हर तबके को जानता और समझता है। बिहार के तमाम शिक्षक अगर शराबबंदी की इस मुहिम से जुड़ेंगे तो इसको सफल बनाने में मदद मिलेगी। जेडीयू के प्रवक्ता अभिषेक झा ने विपक्षी दलों पर पलटवार करते हुए कहा कि बिहार में विपक्ष चाहता ही नहीं है कि पूर्ण शराबबंदी सफल हो। हालांकि, सरकार में सहयोगी बीजेपी ने सधे हुए शब्दों में इसका समर्थन करते हुए इशारों-इशारों में सवाल भी खड़ा किया है।

बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि शिक्षकों का काम स्कूल में बच्चों को पढ़ाना है ताकि उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके और उनके अंदर बेहतर संस्कार पैदा हो सकें। यदि शिक्षा विभाग का यह निर्णय स्कूलों में शराब के सेवन को रोकने के लिए है तो यह स्वागत योग्य है, और इसका समर्थन किया जाना चाहिए।

कोरोना वायरस की तीसरी लहर को देखते हुए बिहार सरकार ने स्कूलों को बंद रखने का आदेश जारी किया है। सरकार ने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने की बात कही है। प्राइवेट स्कूलों द्वारा तो सरकार के आदेश अनुसार छात्रों के ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था कर दी गई है लेकिन सरकारी स्कूलों के छात्रों को स्कूल बंद हो जाने की वजह से परेशानी हो रही है। कई बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं। ऐसे में सरकार ने इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बच्चों के लिए पूरी व्यवस्था कर दी है। बिहार शिक्षा विभाग की ओर से एक पत्र जारी किया गया, जिसमें विभाग के अपर मुख्य सचिव ने कहा है कि कोरोना काल में विद्यालय बंद हैं। ऐसे में बच्चों के पठन-पाठन की निरंतरता बनाए रखने के लिए प्रचार-प्रसार और अनुवर्ती कार्रवाई सुनिश्चित किया जाना है। ऐसे में डीडी बिहार की तरफ से कक्षा 6 से लेकर 12वीं तक के बच्चों के लिए शैक्षणिक प्रसारण आरंभ किया जा रहा है। इसकी शुरुआत 17 जनवरी से होगी। मिली जानकारी अनुसार कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए सुबह 09 से 10 बजे, 9 और 10वीं के लिए 10 से 11 बजे और 11वीं और 12वीं के लिए सुबह 11 से 12 बजे तक प्रसारण किया जाएगा।

वैसे बच्चे जिनके पास डिजिटल डिवाइस की सुविधा उपलब्ध है, वे कक्षा 1 से 12 तक की पुस्तकें और ई-कंटेंट के माध्यम से घर पर अपनी पढ़ाई कर सकते हैं। वहीं, सभी विद्यालयों के प्रधानाध्यापक कक्षावार ऐसे विद्यार्थियों का ग्रुप बनाकर और यथासंभव अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफार्म जैसे जूम मीटिंग, गूगल मीट, माइक्रोस्ट टीम, फेसबुक पेज, यूट्यूब चैनल आदि का उपयोग कर अपने विद्यालयों के शिक्षकों के माध्यम से विद्यार्थियों को आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। कक्षा 1 से 5 के विद्यार्थियों के साथ-साथ वैसे बच्चे, जिनके पास डिजिटल डिवाइस की सुविधा उपलब्ध नहीं है, के लिए प्रधानाध्यापक द्वारा विद्यालय के शिक्षकों के माध्यम से बच्चों को गृह आधारित शिक्षण के लिए टोला भ्रमण कर मार्गदर्शन देंगे। इस कार्य में विद्यालय प्रधान अपने क्षेत्र के शिक्षा सेवकध्शिक्षा सेवक (तालीमी मरकज ) की सहभागिता और सहायता प्राप्त करेंगे।

शिक्षक शराबी तलाशेंगे तो यह कैसे संभव होगा। बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़े देखें तो इस साल अक्टूबर 2021 तक 38,72,645 लीटर शराब जब्त की गई है। इनमें 1,590 राज्य के बाहर के लोगों समेत 62,140 गिरफ्तार किए गए हैं जबकि 12,200 वाहनों को जब्त किया गया है। सबसे ज्यादा शराब वैशाली जिले में जब्त हुई। गिरफ्तारियां सबसे अधिक पटना में दर्ज हुईं। गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, सिवान, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर में जहरीली शराब से हुई मौतें चेतावनी देती हैं। जहरीली शराब पीने के चलते सिर्फ गोपालगंज के खजूरबन्नी में ही अगस्त 2016 में छह लोगों की आंख की रोशनी चली गई थी। सहरसा जिले में काम करने वाले एक शिक्षक अजीत बताते हैं, हरियाणा का लेबल लगा कर विदेशी शराब बिक रही है जो नकली हैं। इसलिए अब ज्यादातर विदेशी पीने वाले हरियाणा लेबल की शराब की सप्लाई स्वीकार नहीं करते। शराब दोगुने दाम पर बहुत आसानी से हर जगह उपलब्ध है। शराबियों को तलाशने का काम पुलिस को क्यों नहीं सौंपा जाता? (हिफी)
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