Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

भाजपा का यूपी में संकल्प पत्र

भाजपा का यूपी में संकल्प पत्र

(मनीषा स्वामी कपूर-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का संकल्प पत्र इस बार काफी सोच-समझकर जारी किया जा रहा है। इस बार अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा को सत्ता में वापस लाते हैं और खुद मुख्यमंत्री बनते हैं तो प्रदेश में 37 साल का रिकार्ड टूट जाएगा। उत्तर प्रदेश में 1985 के बाद कोई भी मुख्यमंत्री दो बार लगाकार सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठ पाया है। इस बार यह चुनौती मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने है। उत्तर प्रदेश में सात चरणों- 10 फरवरी, 14 फरवरी, 20 फरवरी, 27 फरवरी, 3 मार्च और 7 मार्च को विधानसभा चुनाव होंगे। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छा जन समर्थन पाया। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अपेक्षा से ज्यादा सीटें प्राप्त की थीं। इस बार श्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विकास कार्यों का जिस तरह से लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है और एक्सप्रेस वे और मेडिकल कालेजों का निर्माण किया गया है, उसे जन सामान्य को भी प्रदेश में दिख रहा है। उधर, मुख्य प्रतिद्वन्द्वी समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशियों की घोषणा करते हुए जातीय समीकरण पर ही जोर दिया है। भाजपा छोड़कर सपा में गये स्वामी प्रसाद मौर्य को भी सपा ने जिस तरह झटका दिया है, उससे भाजपा छोड़कर जाने वालों के भी कान खड़े हो गये हैं।

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा संकल्प पत्र के जरिए बड़े चुनावी वादे करने की तैयारी में है। भाजपा का संकल्प पत्र यानी मैनिफेस्टो इस बार बदला-बदला दिख सकता है। सूत्रों की मानें तो भाजपा जब यूपी चुनाव के लिए अपना संकल्प पत्र जारी करेगी, तब उसमें राम मंदिर और काशी कॉरिडोर की तरह सांस्कृतिक और राष्ट्रीय स्थलों को भव्य रूप प्रदान करने का संकल्प होगा। पार्टी संकल्प पत्र में मथुरा का सांकेतिक तौर पर प्रयोग करेगी। इतना ही नहीं, किसानों के बिजली बिल को लेकर बड़ी राहत की घोषणा की जाएगी। भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए घोषणा पत्र तैयार करने के लिए जनता का सुझाव लिया है। इसके लिए पार्टी ने हर स्तर पर बैठकें की हैं और लोगों के फीडबैक लिए हैं। 2017 विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन यानी बीजेपी प्लस को कुल 325 सीटें मिली थीं। इनमें से भाजपा अकेले 312 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। वहीं बीजेपी गठबंधन की अन्य दो पार्टियों में अपना दल (एस) ने 11 सीटों में नौ सीटें और ओपी राजभर की भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी ने आठ में से चार सीटें जीती थीं। वहीं सपा और कांग्रेस गठबंधन को मात्र 54 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस महज सात सीट जीतने में सफल हो पाई थी। इसके अलावा, समाजवादी पार्टी को केवल 47 सीटों पर जीत मिली। वहीं बसपा ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। रालोद को एक सीट और अन्य के खाते में 4 सीटें गई थीं।

समाजवादी पार्टी ने भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने 159 और उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। सपा की ओर से जारी उम्मीदवारों की लिस्ट की सबसे खास बात ये है कि हाल ही में बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे को सपा से टिकट नहीं दिया गया है। स्वामी रायबरेली की ऊंचाहार सीट से अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य के लिए टिकट की पैरवी कर रहे थे, लेकिन यहां अखिलेश ने विधायक मनोज पांडेय को ही टिकट दिया है। इसे स्वामी प्रसाद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को झटका माना जा रहा है। सपा में आने के बाद खुद स्वामी प्रसाद मौर्य की तरफ से ऊंचाहार सीट से बेटे उत्कृष्ट मौर्य की राजनीतिक शुरुआत कराने की बात सामने आई थी, लेकिन सपा में भी ये आसान नहीं था। जिस सीट से स्वामी प्रसाद अपने बेटे की पैरवी कर रहे थे वहां से सपा से ही मनोज पांडेय चुनाव जीते हैं। ऐसे में उनकी राह आसान नहीं थी। मनोज पांडेय को भी अखिलेश का करीबी माना जाता रहा है। उनका टिकट काटना एक तरह से ब्राह्मण वोटर्स के लिए सही नहीं था। रायबरेली से लगभग 40 किमी दूर स्थित ऊंचाहार सीट का जातीय गणित भी बेहद महत्व रखता है। इस सीट पर दलित मतदाता सबसे अधिक हैं। यहां पर यादव, मौर्या, ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम, एससी, लोध, कुर्मी समेत ओबीसी मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। भाजपा 2017 में स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य को टिकट दिया था, लेकिन वह सपा के मनोज पांडे से हार गए थे। स्वामी प्रसाद मौर्य की पुत्री संघमित्रा मौर्य बदायूं से भारतीय जनता पार्टी की सांसद हैं। पिता के भाजपा छोड़कर सपा में चले जाने के बाद भी संघमित्रा मौर्य भाजपा में ही हैं। पार्टी छोड़ने की वजह भी स्वामी प्रसाद के बेटे को बीजेपी का टिकट नहीं मिलना बताया गया। उन्होंने सपा ज्वाइन की तो माना जाने लगा कि अखिलेश उनकी मांग को मानकर मनोज पांडेय का टिकट काट देंगे। फिलहाल ऊंचाहार सीट से स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे का पत्ता कट गया है।

पिछले दिनों जब पिछड़ा वर्ग के नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने योगी कैबिनेट से इस्तीफा देकर साइकिल की सवारी की थी तो यूपी की सियासत में हलचल मच गई थी। स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी पर पिछड़ा और दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाया था, लेकिन अचानक पाला बदलने के पीछे उनकी कुछ और ही राजनीतिक महत्वाकांक्षा नजर आ रही थी। पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी की ओर से भी यही प्रतिक्रिया सामने आई कि वह अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे।

इससे भाजपा छोड़ने वालों के कान खड़े हो गये हैं। बीजेपी को पहले दो चरणों में पिछले चुनाव में अपने प्रदर्शन की बराबरी करने का भरोसा है, जहां उन्हें 2017 के चुनावों में 83 सीटें मिली थीं। वेस्ट यूपी में ये चरण चुनाव का मिजाज तय करते हैं। भाजपा के सूत्रों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पार्टी छोड़कर जा रहे नेताओं को लेकर वह चिंतित नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि उसके पास ओबीसी समुदायों के पर्याप्त वरिष्ठ नेता हैं। इतना ही नहीं, सूत्रों ने बताया कि भाजपा को भरोसा है कि वह राज्य में होने जा रहे आगामी विधानसभा चुनावों में 300 से ज्यादा सीटें हासिल करेगी। भाजपा ने ऐलान कर दिया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव गोरखपुर शहर निर्वाचन क्षेत्र से लड़ेंगे, जो भाजपा और जनसंघ का 1967 से गढ़ रहा है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ तीन संभावित सीटों- अयोध्या, गोरखपुर शहर या मथुरा- में से किसी एक पर अपनी किस्मत आजमाएंगे और फिर भाजपा संसदीय बोर्ड ने फैसला किया कि सीएम को गोरखपुर शहर सीट से मैदान में उतारा जाना चाहिए। यूपी के मुख्यमंत्री बनने तक आदित्यनाथ 1998 से 2017 में गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद भी रहे हैं। गोरखपुर शहर सीट भाजपा के लिए बेहद सुरक्षित है और वहां गोरखनाथ मंदिर के साथ योगी आदित्यनाथ का गढ़ है, इसलिए सीएम को प्रचार के लिए ज्यादा समय नहीं देना पड़ेगा और ऐसे में वे यूपी में बाकी चुनावी रणनीति पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं क्योंकि वह हैं भाजपा के टॉप स्टार प्रचारकों में शुमार हैं। भाजपा नेता राधा मोहन दास अग्रवाल 2002 से गोरखपुर शहर सीट से चार बार विधायक रहे हैं और 2017 में 60,000 से अधिक मतों से जीते थे। इससे पहले भाजपा नेता शिव प्रताप शुक्ला और सुनील शास्त्री क्रमशः 1989 से 2002 और 1980 से 1989 तक इस सीट पर रहे। इससे पहले 1967 से भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार इस सीट पर काबिज थे। (हिफी)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ