स्वयं मेहसूस करो
हम तो राह के राहगीर है
आते जाते मिल जाते है।
बातों ही बातों में अपनी
कहानी खुद सुना देते है।
तभी तो मोहब्बत के
दीप जल जाते है।
तो किसी के जीवन में
अँधेरा छा जाता है।।
इसी तरह के मेरे
गीत कविता होते है।
जो मनकी चंचलता को
बहार निकल देते है।
चलती है जैसे जैसे हवाएं
मन दौड़ने लगता है।
और मोहब्बत के दीप
दिलमें जलने लगते है।।
मिलेगा फिर तुम्हें सकून
अपने दिलके अंदर से।
मिट जायेगी तुम्हारी तड़प
जिसे तुम पाना चाहते हो।
मोहब्बत में मेहबूबा ही
जीवन का आधार होती है।
सफल हो जाये मोहब्बत तो
वो ही जीवन संगनी होती है।।
संसार का चक्र भी
इसी तरह से चलता है।
स्नेह प्यार की दुनियाँ भी
इसी तरह से बनती है।
दिलों में जिंदा रखना है
अगर तुम्हें मोहब्बत को।
तो स्वंय को भी मोहब्बत
दिल से करना होगा।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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