आईएएस कैडर नियम में संशोधन
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
केंद्र सरकार आईएएस (कैडर) नियम 1954 में जब संशोधन कर देगी. इसके बाद आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर का पावर केंद्र के पास आ जाएगा। प्रस्तावित नियमों में है कि अगर राज्य सरकार को कोई असहमति होती है तो ऐसे में केंद्र का ही फैसला लागू होगा।
लोकतंत्र में विधायिका, कार्य पालिका और न्यायपालिका ही तीन प्रमुख स्तम्भ हैं। इनमें विधायिका को सबसे ज्यादा महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि इसका चुनाव सीधे जनता करती है। बाकी दोनों स्तम्भों के लोग शैक्षणिक योग्यता से चयनित और पदोन्नत होते हैं। प्रजातंत्र की व्यवस्था में इन दोनों का भी उतना ही महत्व है जितना विधानसभा और लोकसभा के लिए चुने गये लोगों का, बल्कि कार्य पालिका और न्यायपालिका के लोग अपने को ज्यादा महत्व देते हुए कहते हैं कि चुनाव लड़कर तो अंगूठाछाप भी सांसद या विधायक बन सकता है लेकिन न्यायाधीश और आईपीएस व आईएएस अधिकारी बनने के लिए पढ़ाई की तपस्या करनी पड़ती है। यह सच भी है और सांसद विधायक तो पांच साल के होते हैं, जबकि अफसर और न्यायमूर्ति जीवन भर रहते हैं। इसके बावजूद व्यावहारिक सच यह है कि न्याय पालिका और कार्यपालिका के लोग विधायिका में शामिल होने के लिए आतुर रहते हैं। विजय बहुगुणा और बृजलाल जैसे कई उदाहरण मिल जाएंगे ।इन दिनों होने जारहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कुछ चेहरे देखने को मिल रहे हैं लेकिन एक भी राजनेता आईएएस अथवा न्यायाधीश बनने की परीक्षा में नहीं बैठा और न उत्तीर्ण हो पाया। इसका कारण विधायिका का लगातार बढता वर्चस्व है। अभी खबर मिली है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जल्द ही आईएएस (कैडर) नियम, 1954 में संशोधन करने जा रही है। केंद्र सरकार आईएएस (कैडर) नियम 1954 में जब संशोधन कर देगी। इसके बाद आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर का पावर केंद्र के पास आ जाएगा। प्रस्तावित नियमों में है कि अगर राज्य सरकार को कोई असहमति होती है तो ऐसे में केंद्र का ही फैसला लागू होगा।
इस संशोधन के प्रस्ताव के संबंध में हाल ही में राज्य सरकारों से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आईएएस अफसरों की सूची भेजने के निर्देश दिए गए। जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति जताई है। दरअसल, कार्यपालिका पर वर्चस्व को लेकर संघ और राज्यों के अधिकार भी टकराने लगे हैं।ममता बनर्जी का विरोध इसी के चलते है। सभी राज्यों से सुझाव मांगे गये हैं और कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों का विरोध भी सामने आ सकता है।
पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विरोध जताया है। आईएएस (कैडर) नियम, 1954 के मुताबिक यूं तो अधिकारियों की भर्ती केंद्र करता है, लेकिन जब उन्हें उनके राज्य कैडर आवंटित किए जाते हैं, तो वे राज्य सरकार के अधीन आ जाते हैं। इस तरह संघीय ढांचा काम करता है। आईएएस कैडर नियमों के अनुसार एक अधिकारी को संबंधित राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति से ही केंद्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार के अधीन सेवा के लिए प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। नियम के मुताबिक किसी भी असहमति की स्थिति में केंद्र सरकार फैसला लेती है और राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के निर्णय को लागू किया जाता है। केंद्र को अधिक विवेकाधीन अधिकार देने वाले प्रतिनियुक्ति के मामले में यह नियम मई 1969 में जोड़ा गया था। इसी का अब विरोध राज्य कर रहे हैं। विरोध इसलिए भी हो रहा है कि कई नौकरशाह राजनीति में जाने की राह तकते हैं तो कुछ को बुलाया जाता है। ऐसे व्यूरोक्रेट नौकरशाही पर अच्छी पकड़ रखने में सक्षम होते हैं।
उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में चुनावों की घोषणा के साथ दो आला अफसरों ने बीजेपी को ज्वाइन करने की घोषणा की, इसमें एक आईपीएस और कानपुर के पुलिस आयुक्त रहे असीम अरुण हैं तो दूसरे आईएएस रह चुके राम बहादुर। यूपी की पॉलिटिक्स में आला ब्यूरोक्रेट्स का राजनीति में आना कोई नई बात नहीं है। पहले भी इस तरह के मामले हुए हैं। आखिर आला अफसरों के लिए नौकरी के बाद सियासत क्यों दूसरी पसंद बनी। यूपी में जिस तरह पुलिस कमिश्नर असीम अरुण और पूर्व आईएएस अफसर राम बहादुर ने औपचारिक तौर पर बीजेपी की सदस्यता ले ली, उससे एक नया ट्रेंड इस राज्य में उभरता हुआ नजर आ रहा है। इसी तरह 2014 में लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को बागपत से टिकट दिया था। उन्होंने तब लोकदल के प्रमुख अजित सिंह को कम से कम दो लाख वोटों से हरा दिया था। अरुण की तरह पूर्व आईपीएस बृजलाल ने भी बीजेपी के 2017 में सत्ता में आने के बाद इस पार्टी को ज्वाइन किया था। माना जाता है कि अरुण ने शायद बृजलाल के राजनीति में आने के बाद ही खुद का भी सियासत में जाने का मन बनाया। इस तरह ब्यूरोक्रेट एक सफल राजनेता भी साबित हो रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी ब्यूरोक्रेसी का हिस्सा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार 31 जनवरी से शुरू होने वाले संसद के आगामी सत्र में यह संशोधन पेश कर सकती है। केंद्र ने इसके लिए 25 जनवरी से पहले राज्यों से जवाब मांगा है।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा कि इससे अधिकारियों में ‘भय का माहौल’ पैदा होगा एवं उनका कार्य-निष्पादन प्रभावित होगा। आठ दिनों में इस विषय पर दूसरी बार मोदी को लिखे पत्र में बनर्जी ने कहा कि संशोधन से संघीय तानाबाना एवं संविधान का मूलभूत ढांचा ‘नष्ट’ हो जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर केंद्र अपने इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं करता है तो ‘बड़ा आंदोलन’ किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मैं आपसे केंद्र सरकार के इस कदम पर सहृदय पुनर्विचार करने एवं इस प्रस्तावित संशोधन की दिशा में आग नहीं बढ़ने की अपील करती हूं। मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि हमें इस मुद्दे पर इस हद तक नहीं धकेला जाए कि हम इस महान लोकतंत्र , जो भारत है एवं रहा है, की आत्मा की रक्षा की खातिर बड़े आंदोलन के लिए विवश हो जाएं। ’बनर्जी ने यह भी कहा कि यदि प्रस्तावित बदलाव लागू किये गये तो इससे केंद्र एवं राज्य के बीच एक दूसरे की भावना के सम्मान के जज्बे को ‘अपूरणीय’ क्षति पहुंचेगी।
कार्मिक मंत्रालय ने आईएएस (कैडर) नियम, 1954 में बदलाव वाले प्रस्ताव में कहा, ‘‘इसके परिणामस्वरूप केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए उपलब्ध अधिकारियों की संख्या केंद्र में जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।’’ नये नियम संबंधी प्रस्ताव के अनुसार केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति में भेजे जाने वाले अधिकारियों की वास्तविक संख्या केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श से तय करेगी। इसमें कहा गया है कि किसी तरह की असहमति की स्थिति में निर्णय केंद्र सरकार करेगी और संबंधित राज्य सरकारें निश्चित समय में केंद्र सरकार के निर्णय को लागू करेंगी। मौजूदा नियमों में इस तरह की असहमतियों की स्थिति में फैसले के लिए कोई समयसीमा का उल्लेख नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विरोध की शुरूआत कर दी है।सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी इस पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि ये फैसला संघीय ढांचे के ताबूत में एक और कील साबित होगा। बहरहाल, गैरभाजपाई राज्य केन्द्र सरकार को आसानी से यह संशोधन नहीं करने देंगे। (हिफी)हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
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