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गद्दार तो गद्दार ही होता है

गद्दार तो गद्दार ही होता है

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
धोखा देने वाले पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता। इतिहास में विभीषण और सुग्रीव प्रताणित होते हुए भी सम्मान नहीं प्रप्त कर सके। राजनीति में भी यही सिद्धांत लागू होता है। उत्तराखंड में 2016 में जब हरीश रावत की सरकार थी, तब हरक सिंह रावत समेत कुछ नेताओं ने कांग्रेस सरकार को गिराने का प्रयास किया था। सुप्रीम कोर्ट हस्तछेप न करता तो हरीश रावत दुबारा सीएम की कुर्सी पर बैठ ही नहीं पाते। यह संदर्भ इसलिए याद दिलाना पड़ रहा है क्योंकि हरक सिंह रावत को भाजपा ने निष्कासित कर दिया है और कांग्रेस के हरीश रावत उनको पार्टी में शामिल नहीं करना चाहते। हरक सिंह रावत सौ सौ बार माफी मांगने को तैयार हैं। जाहिर है गद्दारी का दाग एकबार लग जाए तो आसानी से धुलता नहीं है। कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे हैं जो हरक सिंह रावत को पार्टी में शामिल कर लेंगे क्योंकि राज्य में जाति धर्म की राजनीति भी उफान पर है।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से खुलकर माफी मांगने वाले हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी का पेचीदा रास्ता अब कुछ खुलता दिख रहा है हालांकि हरीश रावत उनकी गद्दारी को भुला नहीं पा रहे हैं। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह को भाजपा ने निकाल बाहर किया है। अब उनके कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों के बीच सूत्रों के हवाले से खबर है कि वापसी पर हरक सिंह रावत को कांग्रेस टिकट नहीं देगी। पार्टी ने हरक सिंह की वापसी के लिए इस तरह की शर्त रखते हुए यह भी इशारा दिया है कि उनकी बहू अनुकृति को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़वाया जाएगा। इस शर्त को लेकर हरक सिंह और कांग्रेस नेताओं के बीच बातचीत चल रही है, जिसे लेकर कोई फैसला शीघ्र संभव है। कांग्रेस में वापसी के लिए वरिष्ठ नेता हरीश रावत और कई अन्य नेताओं का विरोध झेल रहे हरक सिंह के सामने पार्टी ने शर्त रखने का रास्ता चुना है। सूत्रों के हवाले से खबर यह है कि कांग्रेस ने हरक सिंह से कह दिया है कि परिवार में सिर्फ एक को चुनाव का टिकट मिलेगा। पार्टी इस पक्ष में भी है कि हरक के बजाय अनुकृति गोसाईं को चुनाव मैदान में उतारा जाए। कहा जा रहा था कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी हरक को लेकर फैसला करेगी। हरक सिंह और उनकी बहू 19 जनवरी को दिल्ली स्थित आवास में ही थे। जाहिर है कि 2016 में पार्टी छोड़कर जाने के परिणाम के तौर पर पार्टी हरक का कद घटाने की रणनीति अपना रही है।

उत्तराखंड में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं और चुनाव आयोग 14 फरवरी को राज्य भर में वोटिंग की तारीख तय कर चुका है। राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी करने के अंतिम चरणों में हैं, तो इस वक्त पार्टियां खास तौर से जातिगत और सामुदायिक समीकरणों को साधने की कोशिश भी कर रही हैं। उत्तराखंड की कुल आबादी 1 करोड़ से कुछ ज्यादा है और महत्वपूर्ण बात यह है कि देवभूमि कहा जाने वाला प्रदेश जाति के आधार पर सवर्णों का प्रदेश भी कहा जा सकता है। यानी यहां जाति के अलावा समुदायों को भी खुश करना होता है। उत्तराखंड देश में इकलौता राज्य है जहां सवर्णों की आबादी करीब 62 फीसदी है। इसे समझने के लिए पहले राज्य की आबादी के आंकड़ों को समझना जरूरी है। राज्य की कुल आबादी में से करीब 83 फीसदी हिंदू हैं और करीब 14 फीसदी मुस्लिम। यानी हिंदुओं की संख्या 83.6 लाख से ज्यादा है और मुस्लिमों की 14 लाख से ज्यादा और 2.34 प्रतिशत सिखों की आबादी करीब ढाई लाख की है। इस आंकड़े के हिसाब से तकरीबन 50 लाख वोटर सवर्ण हैं। कहा जा सकता है कि सत्ता की चाबी इन्हीं के हाथ में है और ये पार्टियों के बीच किस तरह बंटते हैं, इसी से सरकार का भविष्य तय होता है। उत्तराखंड की आबादी के ग्राफ में 62 फीसदी सवर्ण वोटर्स हैं जबकि 19 फीसदी दलित, जिन्हें औपचारिक तौर पर एससी श्रेणी में शुमार किया जाता है। करीब 5 फीसदी अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग के वोटर हैं और 62 फीसदी वोटर्स साफ तौर पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंटे हुए हैं। मुस्लिम और दलित आबादी भी दोनों पार्टियों के बीच बंटती रही है। इस बार जातियों को साधने के गणित अहम होने वाले हैं। कांग्रेस ने दलितों के वोट साधने के लिए बीजेपी सरकार छोड़कर आए यशपाल आर्य को चेहरा बनाने का दांव खेला है, तो उनके मुकाबले में बीजेपी अब भी ऐसे दलित चेहरे की तलाश में है। इसके अलावा, मुस्लिमों की आबादी के वोट भी एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हरक सिंह रावत कांग्रेस में इसीलिए घुसना चाहते हैं क्योंकि इस बार कांग्रेस की संभावना दिख रही है। हरक सिंह रावत ने कहा मैं अपने बड़े भाई से सौ बार माफी मांगता हूं, उत्तराखंड के हित के लिए सौ बार क्या एक लाख बार भी माफी मांगनी पड़े, तो मांग लूंगा।’ भाजपा से निष्कासित हरक सिंह रावत ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बयान पर कहा कि 2016 में जो कुछ हुआ, वह पुरानी बात है, तब उनसे और हरीश रावत दोनों से कुछ गलतियां हुई थीं, जिनके कारण जो हुआ, सो हुआ। हरक सिंह ने दावा किया कि कांग्रेस के भीतर तमाम बड़े नेताओं के साथ उनकी बातचीत हो चुकी है और सभी का सकारात्मक रवैया रहा है।

‘मैंने कांग्रेस में आने का इतना बड़ा निर्णय लिया है, इससे बड़ी माफी क्या हो सकती है? तब दोनों की गलती थी और अब सबसे ही बात होगी। हरक सिंह ने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल से बातचीत हुई है, वह आलाकमान से आगे बात करके बताएंगे। जैसी भी स्थिति बनेगी, उसके हिसाब से ही आगे के फैसले होंगे। हरक सिंह ने कहा, 2016 की बात बहुत पुरानी हो गई. उस समय परिस्थितियां अलग थीं, जो बात हो गई हो गई। हरीश भाई भी मानते हैं कि परिस्थितियां ही निर्णय का आधार बन जाती हैं। कुछ गलतियां मुझसे हुईं, कुछ हरीश भाई से हुईं। जो बातचीत हरीश भाई से हुई थी, उस पर वो इम्पलीमेंट नहीं कर पाए थे। यह भी सही है कि मैंने तब जिन विकास के कामों के लिए बात की, उन्होंने उस वक्त वो सब किए। इस प्रकार हरक सिंह अपने को पाक साफ साबित करने का प्रयास भी कर रहे हैं।

फिलहाल, गत 19 जनवरी को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के सिलसिले में दो बड़ी खबरें मिलीं। एक तो कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के चुनाव लड़ने पर सस्पेंस खत्म करते हुए कहा जा रहा है कि वह इस बार एक सीट से चुनाव लड़ेंगे। उधर, राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट गुरुवार यानी 20 जनवरी को जारी कर सकती है। इसे लेकर केंद्रीय स्तर के नेताओं के साथ मंथन चल रहा है। इस संदर्भ में 18जनवरी से ही उत्तराखंड भाजपा के कई नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। भाजपा के केंद्रीय नेताओं के साथ प्रदेश के नेताओं की दो अहम बैठकें हुईं हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक समेत राज्य के कई भाजपा नेता दिल्ली में केंद्रीय नेताओं के साथ टिकट के दावेदारों को लेकर अहम चर्चा कर चुके हैं। प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा था कि प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और पार्टी के केंद्रीय नेता जल्द ही नामों पर मुहर लगा सकते हैं। भाजपा कह चुकी है कि कुल 70 सीटों पर नामों को लेकर चर्चा हो चुकी है और लगभग सब कुछ फाइनल है। राज्य के संगठन द्वारा इन सभी दावेदारों का ब्योरा दिल्ली भेजा जा चुका है। इसके बावजूद माना जा रहा है कि कुछ ही सीटों पर नामों का ऐलान पहली लिस्ट में होगा। पहली लिस्ट में कुछ सिटिंग विधायकों के नामों का ऐलान किया जा सकता है। उसके बाद कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा का इंतजार कर पार्टी अगली लिस्ट को लेकर रणनीति तय करने के मूड में है। (हिफी)
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