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दादीमाई

दादीमाई

बहुत दिनों के बाद मिला जब
 घर से मुझे संदेशा ।
 अनहोनी कुछ घटित हुई है 
हुआ मुझे अंदेशा ।।
 बीती रात को सपनों  में जो
 आकर मुझे उठाई थी।
 श्वेत वस्त्र मे बिहस रही थी
          वह जो दादी माई थी ।।

 एक हाथ बालों पर मेरे 
दूजे हाथ मिठाई थी ।
गोद में लेकर मुझको मेरे 
गालों को सहलाई थी।।
 अपने कम्पित हाथों से वो
 लड्डू मुझे खिलाई थी ।
प्यार लुटाती हद से ज्यादा 
           वह जो दादी माई थी ।।

जल्दी ही जब गया था मिलने 
टूटी खाट पर सोई थी ।
फटे पुराने कपड़ों में वह 
खूब लिपट कर रोई थी ।।
बोली बबुआ देख तुम्हें 
आंख मेरी भर आई थी।
 लेकिन मैं सब समझ रहा था 
           वह जो दादी माई थी।।

 मांस नहीं थे तन पर उसके
 प्राण बचे थे सांसों में ।
मुझे देख वह बीह्वल हो गई
 प्रेम भरा था आंखों में ।।
मिलने के खातिर वो मुझको 
खबर भेज बुलवाई थी ।
इतना प्यार वो मुझसे करती
            वह जो दादी माई थी ।।

आधी रोटी पड़ी खाट पर 
आधी रोटी खाई थी ।
शायद इस दुनिया से उसकी
 होने वाली विदाई थी ।।
भरी आंख से देख रहा था
 कैसी घड़ी ये आई थी ।
रखा हाथ उसके बालों पर 
            वह जो दादी माई थी।।

 मेरा संदेशा हुआ हकीकत 
भरी हुई अंगनाई थी ।
श्वास शुन्य उस तन को देखा
 हाथ में वही मिठाई थी ।।
सपनों में वो कल लेकर जो
 मुझसे मिलने आई थी।
 खाया जिसके लड्डू को फिर
            वही तो दादी माई थी ।।

यह मेरे द्वारा ही लिखित कविता है ।
       कवि---प्रेमशंकर प्रेमी
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