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आत्मनिर्भर भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

आत्मनिर्भर भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय संकल्पों को सिद्धि तक पहुंचाने की प्रेरणा देता है। संविधान निर्माताओं ने राष्ट की एकता अखंडता को सर्वाधिक महत्व दिया। इसके साथ ही उन्होंने शक्तिशाली व आत्मनिर्भर भारत की कल्पना की थी। यह सपना स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ही पल्लवित होने लगा था। संविधान के माध्यम से देश को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न बनाया गया। इसका मतलब था कि भारत परम वैभव की तरफ बढ़ने में सक्षम है। इसके दृष्टिगत निर्णय उसको ही लेने है। इस दिशा में बढ़ने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान का शुभारंभ किया गया था। इसके साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से भी प्रेरणा ली गई। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आर्थिक प्रगति के साथ ही राष्ट्रीय स्वाभिमान की आवश्यकता होती है। वर्तमान सरकार ने इस तथ्य को समझा है। इसके अनुरूप प्रयास किये गए।
उनकी सरकार देश के प्रेरणा व पर्यटन के स्थलों का विकास कर रही है। देश के ऐतिहासिक स्थलों और सांस्कृतिक विरासतों को प्रतिष्ठा व भव्यता प्रदान की गई। अतुल्य भारत अभियान पर अमल किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जिन परिस्थितियों में सोमनाथ मंदिर को तबाह किया गया और फिर जिन परिस्थितियों में सरदार पटेल के प्रयासों से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ,वह दोनों ही हमारे लिए एक बड़ा संदेश रहे हैं। हमको अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व है होना चाहिए। आजादी के बाद दिल्ली में कुछ गिने चुने परिवारों के लिए ही नव निर्माण हुआ। लेकिन आज देश नए गौरव स्थलों का निर्माण हो रहा है। उन्हें भव्यता मिल रही है। वर्तमान सरकार ने दिल्ली में बाबा साहेब मेमोरियल का निर्माण किया। रामेश्वरम में एपीजे अब्दुल कलाम स्मारक को बनवाया। सुभाषचंद्र बोस और श्यामजी कृष्ण वर्मा से जुड़े स्थानों को भव्यता दी गई है। इंडिया गेट पर सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति स्थापित करने का निर्णय किया गया। देशभर में आदिवासी म्यूजियम भी बनाए जा रहे हैं। अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का लोकार्पण हो चुका है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना में सरकार ने अभूतपूर्व सफलता दर्ज की है। आस्था को सम्मान दिया गया। मूल संविधान में अनेक चित्र थे। इनका निर्माण नन्दलाल बोस ने किया था। यह हमारे गौरवशाली इतिहास की झलक देने वाले थे। गणतंत्र दिवस पर इनकी भी चर्चा होनी चाहिए।
द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था कि भारत को आजाद नहीं किया जाएगा। यह भारत के हित में है कि हम वहां शासन करते रहें लेकिन कुछ समय बाद वहां सरकार बदली। चर्चिल चुनाव हार गए। एटली प्रधानमंत्री बने। उन्हें सच्चाई स्वीकार करनी पड़ी। उन्होंने माना कि भारत अपने शासन के संचालन में समर्थ है। इसी के साथ भारत को स्वतंत्र करने का निर्णय हुआ। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हमारे दो राष्ट्रीय पर्व है। दोनों एक ही सिक्के के गौरवशाली पहलू हैं। पन्द्रह अगस्त को देश स्वतंत्र हुआ। इसी लिए भारत का अपना संविधान बनाया गया। छब्बीस जनवरी को संविधान लागू हुआ। भारत ने दिखा दिया कि वह अपना संविधान बनाने और चलाने में समर्थ है। संविधान सभा का विधिवत गठन नौ दिसंबर उन्नीस सौ छियालीस में हुआ था। दो वर्ष,ग्यारह महीने और अठारह दिन में संविधान का निर्माण हुआ। हम सबको छब्बीस जनवरी के विशेष महत्व की भी जानकारी होनी चाहिए। उन्नीस सौ उनतीस में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ था। इसमें छब्बीस जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय हुआ था। संविधान छब्बीस नवम्बर उन्नीस सौ उनचास में बनकर तैयार हो गया था। छब्बीस जनवरी तारीख इतिहास में पहले से दर्ज थी। आजादी पन्द्रह अगस्त को मिल गई। इसलिए संविधान छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को लागू किया गया। यह दिन हमारा गणतंत्र दिवस बन गया। तीन सौ आठ सदस्यों ने चैबीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किए थे। मूल संविधान में प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में दिए गए चित्रों की जानकारी भी नई पीढ़ी को होनी चाहिए। प्रारंभ में अशोक की लाट का चित्र है। प्रस्तावना को सुनहरे बार्डर से घेरा गया है। जिसमें मोहन जोदड़ो के घोड़ा, शेर,हाथी और बैल के चित्र बने हैं। भारतीय संस्कृति के प्रतीक कमल का भी चित्र है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील है। इसके बाद वैदिक काल की झलक है। इसमें ऋषि आश्रम में बैठे गुरु, शिष्य और यज्ञशाला है। मूल अधिकार वाले भाग के प्रारंभ में त्रेतायुग है। इसमें भगवान राम रावण को हराकर सीता जी को लंका से वापस ले कर आ रहे हैं। राम धनुष वाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं। नीति निर्देशक के प्रारंभ में श्री कृष्ण भगवान का गीता उपदेश वाला चित्र है। भारतीय संघ के पाचवें भाग में गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है। संघ और उनका राज्य क्षेत्र एक में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है। आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति है। दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है। ग्यारहवें भागमें मध्य कालीन इतिहास की झलक है। उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखाते हुए एक चित्र को इस भाग में जगह दी गई है और बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है। तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर है। शेषनाग के साथ अन्य देवी देवताओं के चित्र हैं। भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है। चैदहवें भाग में मुगल स्थापत्य कला है। बादशाह अकबर और उनके दरबारी बैठे हुए हैं। पीछे चंवर डुलाती हुई महिलाएं हैं। पन्द्रहवें भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है।सोलहवाँ भाग से ब्रिटिश काल शुरू होता है। टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को ब्रिटिश सरकार से लड़ते हुए दिखाया गया है। सत्रहवें भाग में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगले भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है। गांधी जी के साथ दीन बंधु एंड्रयूज भी हैं। एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोड़कर खड़े हैं। उन्नीसवें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं। बीसवें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। इक्कीसवें भाग में रेगिस्तान के बीच ऊटों का काफिला है। बाइसवें भाग में समुद्र है, विशालकाय पानी का जहाज है। प्रस्तावना की शुरुआत हम भारत के लोग से होती है। इसका मतलब है कि हम सब महत्वपूर्ण है। नागरिक होने गर्व की बात है। कोई आमजन नहीं है। लेकिन हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा से प्रेरणा लेनी होगी। सब राष्ट्रीय हित में कार्य करेंगे तो देश मजबूत होगा।
प्रस्तावना में कहा गया- हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख छब्बीस नवंबर, उन्नीस सौ उनचास ई०मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं। (हिफी)
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