और अब नेताजी को हथियाने की होड़
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राजनीति कितना नीचे तक जाएगी, यह सोचकर ही घृणा होने लगी है। महापुरुष तो पूरे देश के होते हैं , जैसे राम कृष्ण सभी भारत वासियों के हैं। कोई राम को सिर्फ अपने तक सीमित करने का प्रयास करे तो अजीब सा लगता है। इसी तरह महात्मा गांधी, सरदार पटेल और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को किसी जाति या धर्म अथवा वर्ग में बांधकर नहीं रखा जा सकता है। भगवान कृष्ण को सूरदास ने जितने प्यार से गाया, रसखान भी उससे कम रसिया नहीं थे। बाबा तुलसी के साथ बैरमखान के बेटे रहीम भी राम रस चखते रहते थे। इस लिए आज जब गांधी जी, बाबा सहेब भीमराव आम्बेडकर, संत रविदास , सरदार पटेल को किसी विशेष राजनीतिक दल के खेमे में बांधने की कोशिश करते देखते हैं तो बहुत कोफ्त होता है। स्वर्ग में इन महापुरुषों की आत्मा को भी कश्ट होता होगा। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक रंजिश हर मौके पर बाहर निकलकर सामने आ जाती है। अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर दोनों दलों के बीच हंगामा होने की खबर आई है। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर 23 जनवरी को देशवासियों ने श्रद्धासुमन अर्पित किये।
नेता जी का व्रिटिश दासता के समय का आह्वान याद आया तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा। उनकी आजाद हिंद सेना ने सिखाया था कदम कदम बढाए जा... पश्चिम बंगाल में भी नेताजी की जयंती श्रद्धा और उल्लास के साथ मनायी गयी। एक कार्यक्रम में बीजेपी के एक एमएलए ने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के ऊपर मारपीट का आरोप लगाया है। यह मामला भातपेड़ा का है जहां तृणमूल कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं में नेताजी की जयंती के अवसर पर जमकर मारपीट हुई। मामले में पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। हालांकि घटना स्थल पर भारी पुलिस बल की तैनाती थी। इसके बावजूद दोनों गुटों के बीच जमकर हाथापाई को नहीं रोका जा सका।पश्चिम बंगाल भाजपा के अर्जुन सिंह ने तृणमूल के नेताओं पर आरोप लगाते हुए कहा, आज सुबह 10रू30 बजे हमारे विधायक पवन सिंह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने गए थे। उसी समय उनपर टीएमसी के गुंडों ने हमला कर दिया, उन पर गोलियां चलाईं, ईंटें फेंकीं। तृणमूल के गुंडों ने मेरे पहुंचने पर मुझ पर हमला किया। हैरानी की बात यह कि यह सब कुछ पुलिस के सामने हुआ। मेरी गाड़ी भी तोड़ दी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि इस साल 23 जनवरी को इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाई जाएगी। यहां पर पहले ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगी थी। नेताजी की इंडिया गेट पर प्रतिमा लगाने की घोषणा के बाद से ही एक बार फिर से सोशल मीडिया पर ये चर्चा शुरू हो गई है कि क्या जवाहरलाल नेहरू नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस देश के पहले प्रधानमंत्री थे?नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली स्वतंत्र अस्थाई सरकार का गठन किया था, जिसका नाम था-आजाद हिंद सरकार। बोस ने इस सरकार का गठन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर में किया था। नेताजी ने इस सरकार को आजाद भारत की पहली ‘अर्जी हुकुमते-आजाद हिंदश् कहा था, इसे निर्वासित सरकार (गवर्नमेंट इन एग्जाइल) भी कहा जाता है। नेताजी ने श्गर्वनमेंट इन एग्जाइलश् का गठन करते ही भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था। बोस को यकीन था कि यह सशस्त्र संघर्ष ही देशवासियों को आजादी हासिल करने में मदद करेगा। बाद में जापान ने अंडमान-निकोबार द्वीप को भी नेताजी की अगुवाई वाली आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया था। क्रांतिकारी नेता रास बिहारी बोस को नेताजी का प्रधान सलाहकार बनाया गया था। आजाद हिंद सरकार के पास अपना बैंक, करेंसी, सिविल कोड और स्टैंप भी थे। बोस ने आजाद हिंद फौज में देश की पहली महिला रेजिमेंट-रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया था। निर्वासित या ‘गवर्नमेंट इन एग्जाइल’ सरकार में नेताजी हेड ऑफ स्टेट और प्रधानमंत्री थे। वहीं महिला संगठन की कमान कैप्टन लक्ष्मी सहगल के हाथों में थी। इस सरकार में प्रचार विंग एसए अय्यर संभालते थे।
दरअसल, अब सियासत के चलते नेताजी को हड़पने की होड़ मची है। पहले से ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती को लेकर दोनों दलों में कोहराम मचा हुआ था। दोनों दल नेताजी पर अपना दावा करने के लिए बयानबाजियां कर रहे थे। एकदिन पहले ही कोलकाता में नेताजी की जयंती पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक जुलूस का आयोजन किया था। इसमें ममता बनर्जी ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा था कि हम सिर्फ चुनाव के समय ही नेताजी का जन्मदिवस नहीं मनाते हैं। ममता बनर्जी ने मोदी सरकार से मांग की कि नेताजी की जयंती को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाए। ममता बनर्जी की मोदी की सरकार से पहले से ही ठनी हुई है। विधानसभा चुनाव में दीदी को चिढाने में भाजपा ने कोई कसर भी नहीं छोडी थी। ममता बनर्जी भाजपा को धूल चटाने में भी सफल रहीं। इसलिए अब ममता बनर्जी भी भाजपा से दो हाथ करने का कोई मौका नहीं छोडती हैं । मामला चाहे आईएएस कैडर में प्रस्तावित संशोधन का हो अथवा गणतंत्र दिवस परेड में पश्चिम बंगाल की झांकी को शामिल न करने का, ममता विरोध करती हैं। गणतंत्र दिवस परेड में बंगाल की झांकी का मुद्दा पहले से गरम है। केंद्र सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस परेड में बंगाल की झांकी को खारिज किए जाने को लेकर दोनों दलों में घमासान मचा हुआ है। इस मामले को लेकर ममता बनर्जी ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। ममता बनर्जी ने खत में लिखा है कि मैं भारत सरकार के आगामी गणतंत्र दिवस परेड से पश्चिम बंगाल सरकार की प्रस्तावित झांकी को अचानक बाहर करने के निर्णय से स्तब्ध और आहत हूं। यह हमारे लिए और भी चैंकाने वाली बात है कि झांकी को बिना कोई कारण या औचित्य बताए खारिज कर दिया गया। इस पर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, इसमें भेदभाव होने जैसी कोई बात नहीं है। हर साल टैब्लो के चयन पर नीति निर्धारण होता है, इसमें कोई नई बात नहीं है। देश के महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में घोषणा की थी कि अब 23 जनवरी से नेताजी की जयंती के दिन से गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन शुरू हो जाएगा। इसके बाद सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तरह से नेताजी के नाम को भुनाने की कोशिश में लगी हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी सरकार से मांग की है कि नेताजी की जयंती के दिन राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाए। ममता बनर्जी ने कहा है कि पूरे देश के लोग अपने महान राष्ट्रनायक को श्रद्धांजलि दें, इसके लिए जरूरी है कि नेताजी जन्मदिवस के दिन राष्ट्रीय छुट्टी हो। उन्होंने कहा कि अपने नेताजी को सच्ची श्रद्धांजलि देने का सबसे बेहतर तरीका यह होगा इस दिन को देशनायक दिवस के रूप में मनाया जाए और इस दिन पूरे देश में छुट्टी हो। नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए 22 जनवरी को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक रैली का आयोजन किया था। इसमें तृणमूल कांग्रेस के अनेक नेता, विधायक समेत सैकड़ों लोग शामिल हुए। इससे पहले सवा बारह बजे सायरन भी बजाया गया, 23 जनवरी 1897 को इसी समय बोस का जन्म हुआ था। रैली को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने कहा, हम सिर्फ चुनाव के समय नेताजी की जयंती नहीं मनाते। इस बार हम उनकी 125वीं जयंती बहुत बड़े पैमाने पर मना रहे हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नेताजी को देशनायक बताया था। इसलिए हमने इस दिन को देशनायक दिवस बनाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, नेताजी देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. वह एक महान दार्शनिक थे। ममता बनर्जी ने इसी समारोह में देश में चार राजधानियों की मांग भी की है। (हिफी)
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