दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी
लोकतंत्र का शर्मनाक खेल,खेल रहे अवसरवादी।
चाहे वे हों समाजवादी या हो कोई गांधीवादी।
दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी।।
राजनीतिज्ञ राजनीतिक दल दिख रहे सब बेलगाम।
अर्थव्यवस्था का बेड़ा डुबा रहे मुफ्त घोषणावादी।
दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी।।
स्वर्णिम अतीत को भूल, देखो, हैं कहाँ खड़े वे।
जय-पराजय में लगे हुए सब के सब हैं भोगवादी।
दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी।।
परिपक्व नेताओं का अभाव, व्यक्तित्व का नहीं दिखता प्रभाव।
नैतिकता नीतिविहीन हुई, रहा न कोई उदारवादी।
दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी।।
इस समरांगन में कूद गये लेकर ये आधि, व्याधि।
रहो सचेत,वे कुछ भी थे,पर ये हैं अमंगल वादी।
दिखता न यहाँ कोई राष्ट्रवादी।।
अब तो "विवेक" आंखें खोलो,
मत हो भ्रमित, कुछ तो बोलो।
आंखों में उनकी लाज नहीं,
हैं जातिवादी, अराजकतावादी ।।
दिखता ना यहां कोई राष्ट्रवादी।।
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