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दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी

दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी

लोकतंत्र का शर्मनाक खेल,खेल रहे अवसरवादी।
चाहे वे हों समाजवादी या हो कोई गांधीवादी।
      दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी।।

राजनीतिज्ञ राजनीतिक दल दिख रहे सब बेलगाम।
अर्थव्यवस्था का बेड़ा डुबा रहे मुफ्त घोषणावादी।
      दिखता न यहां कोई राष्ट्रवादी।।

स्वर्णिम अतीत को भूल, देखो, हैं कहाँ खड़े वे।
जय-पराजय में लगे हुए सब के सब हैं भोगवादी।
     दिखता न  यहां कोई राष्ट्रवादी।।

परिपक्व नेताओं का अभाव, व्यक्तित्व का नहीं दिखता प्रभाव।
नैतिकता नीतिविहीन हुई, रहा न कोई उदारवादी।
      दिखता न यहां  कोई राष्ट्रवादी।।

इस समरांगन में कूद गये लेकर ये आधि, व्याधि।
रहो सचेत,वे कुछ भी थे,पर ये हैं  अमंगल वादी।
    दिखता न यहाँ कोई राष्ट्रवादी।।

अब तो "विवेक" आंखें खोलो,                              
मत हो भ्रमित, कुछ तो बोलो।
आंखों में उनकी लाज नहीं,                                  
हैं जातिवादी, अराजकतावादी ।।
       दिखता ना यहां कोई राष्ट्रवादी।।

     डॉक्टर विवेकानंद मिश्र डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा गया बिहार 
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