आज की युवा पीढ़ी और राष्ट्र के प्रति अभिमान - स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष

आज की युवा पीढ़ी और राष्ट्र के प्रति अभिमान - स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष

परिचय : भारत एक प्रचंड युवा शक्ति से परिपूर्ण देश है। आंकड़ों के अनुसार देश मे 22 प्रतिशत जनसंख्या 18 से 29 वर्ष आयु वर्ग की है। ये युवा इस देश के मुख्य आधार स्तंभ हैं । यह स्तंभ जितना मजबूत और राष्ट्रनिष्ठ होगा, देश उतना ही आगे बढ़ेगा। फ्रेंच राज्य क्रांति के प्रणेता रूसो ने कहा था कि , "आपके देश में युवाओं के होठों पर कौन से गीत है ? मुझे बताओ, मैं तुम्हारे देश का भविष्य बताता हूं।" रूसो के वक्तव्य को किसी भी कसौटी पर जांच कर देखा जाए तो उसकी सत्यता स्वीकारणीय है। इस कसौटी को देश, काल, स्थिति आदि किसी का भी बंधन नहीं है । भारत के विषय में कहा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में देशभक्ति की ज्योत जलती हुई प्रतीत होती है, फिर भी इसे देशभक्ति की धधकती ज्योत में बदलने के लिए एक ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है।

भारत के गौरवशाली युवाओं का इतिहास: भारत का गौरवशाली युवाओं का एक लंबा इतिहास रहा है। आदि शंकराचार्य ने 11 वर्ष की आयु में आत्मज्ञान प्राप्त किया और हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। संत ज्ञानेश्वर महाराज ने 16 वर्ष की अल्पायु में महान ग्रंथ ज्ञानेश्वरी की रचना कर समाज को दिशा दी। 16 वर्ष की आयु में छत्रपति शिवाजी महाराज जी ने अपने साथियों के साथ रायरेश्वर के मंदिर में हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का संकल्प लिया। मात्र 30 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्मपरिषद में एक ऐतिहासिक भाषण दिया और दुनिया भर में हिंदू धर्म का ध्वज लहराया । अपने 39 वर्ष के कार्यकाल के दौरान, बाजीराव पेशवा जी ने मराठा साम्राज्य का विस्तार किया और सीमा पार जाकर अटक तक झंडे फहराए। हाल के समय में, लगभग सौ वर्ष पूर्व , बहुत ही कम आयु के युवा भारत की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए। ऐसे कई प्रतिभाशाली नवयुवकों के उदाहरण हैं जिन्होंने धर्म और राष्ट्र के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । आज इस गौरवशाली युवा की परंपरा का अंत हो गया है, यह निश्चित है! आज देश में असाधारण देशभक्ति और धर्मपरायणता वाले युवा हैं; परंतु इनकी संख्या कम है। भारत के युवाओं की समग्र तस्वीर पर दृष्टि डालें तो यह अधिक 'अर्थ' केंद्रित लगता है। यदि यह केंद्र 'अर्थ' से 'राष्ट्र' की ओर चला जाए तो देश की प्रगति में अधिक समय नहीं लगेगा।

वर्तमान की दयनीय स्थिति: आज का औसत भारतीय युवा हिंसक और अश्लील धारावाहिकों, फिल्मों, व्यसनों, अश्लील साहित्य के कारण मार्ग भटक गया है। बड़े पैमाने पर 'पैकेज' के रूप में गाड़ी-बंगला इन भौतिक सुख सुविधाओं को जीवन का ध्येय मानने के कारण युवाओं में आत्मकेंद्रितता बढ़ रही है, ऐसे स्वार्थी युवक जहां जन्मदाता माता-पिता को भी वृद्धाश्रम में रखते समय तनिक भी विचार नहीं करते, वहां वे राष्ट्र के लिए कुछ योगदान देंगे यह अपेक्षा रखना बहुत बड़ी गलती होगी । नशे की लत के कारण फिल्म अभिनेताओं पर हुई कार्यवाही देखकर दु:खी होने वाले युवा, जो फिल्म अभिनेताओं के निजी जीवन की घटनाओं को पढ़ने में रुचि रखते हैं, जो 'तकनीकी प्रेम' की आड़ में मोबाइल फोन, टेलीविजन, कंप्यूटर से ग्रस्त हैं, जो मुसीबत में फंसे हुए व्यक्ति को मदद करने की अपेक्षा उसकी असहाय स्थिति का चित्रीकरण करने मे मग्न हैं, ऐसे युवक राष्ट्र निर्मिति के कार्य में योगदान नहीं दे सकते ।

आज भी अनेक युवक भारत के राष्ट्रगीत और राष्ट्रीय गान के सन्दर्भ में भ्रमित हैं। आज भी बहुत से लोग 'वंदे मातरम' को पूर्ण नहीं गा सकते हैं। गोवा में कॉलेज के छात्रों के एक सर्वेक्षण के दौरान, छात्रों द्वारा भारत के राष्ट्रगान के रूप में 'हम होंगे कामयाब', 'ए मेरे वतन के लोगाें' जैसे जवाब मिले। पोद्दार इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि मुंबई, बैंगलोर और चेन्नई में 40 प्रतिशत छात्र राष्ट्रगान ठीक से नहीं गा सके। यदि राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति उदासीनता है, तो देशभक्ति के विषय में प्रश्न उठता है।

स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार कहा था, "आज के युवा, देश को कैसे विकसित करें इसकी अपेक्षा कैसे बालों का सौंदर्य करें ।" इसके लिए अधिक चिंतित हैं । 'देश ने मुझे क्या दिया है?', इसकी अपेक्षा मैं देश को और क्या दे सकता हूं?' इसका विचार होना चाहिए ।

राष्ट्रभक्ति का प्रवाह क्षीण होने के कारण : स्वतंत्रता पूर्व काल में देशभक्ति से प्रभावित हुए युवा पीढी की देशप्रेम की भावना स्वातंत्र्योत्तर काल में क्षीण होने के कई कारण हैं। इसके पीछे मैकाले रचित शिक्षाशास्त्र मुख्य कारण है। आज डिग्री के कागजात लेकर विश्वविद्यालय से निकलने वाले युवाओं को नौकरी के लिए भटकना पड़ रहा है। यह एक सच्चाई है कि किताबी ज्ञान से स्नातक करने वाला एक युवा गहन ज्ञान प्राप्त करने के स्थान पर व्यावहारिक और यथार्थवादी दुनिया में अप्रभावी होता जा रहा है। फ्रांसीसी क्रांति कैसे हुई?, द्वितीय विश्व युद्ध कैसे हुआ?, इसका इतिहास आज शैक्षिक पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाता है; परंतु पेशवाओं ने सरहद पार झण्डा कैसे फहराया ?, 1857 का स्वतंत्रता संग्राम कैसे हुआ ? विजयनगर का साम्राज्य कैसे खड़ा रहा ? भारत की प्राचीन प्रगल्भ संस्कृति कैसी थी ? विज्ञान-तंत्रज्ञान में भारत कितना अग्रसर था ? भारत का सकल राष्ट्रीय उत्पादन का हिस्सा 30 प्रतिशत कैसे पहुंचा था ? इस विषय के बारे में युवा वर्ग को अनभिज्ञ रखने के कारण उनमें देशभक्ति निर्माण होने में बाधा उत्पन्न हुई है। उस विकृत इतिहास को थोपकर भारत के सभी गौरवशाली स्थानों को हीनता के केंद्र में बदल दिया गया है, तो उनमें देशभक्ति का निर्माण कहाँ से होगा? जो समाज अपने इतिहास को भूल जाता है वह एक उज्जवल भविष्य नहीं बना सकता। इसके लिए सिर्फ अकादमिक पाठ्यक्रम ही नहीं बल्कि मीडिया भी जिम्मेदार है। पाक्षिक 'आर्यनीति' के संपादक श्री. सत्यव्रत सामवेदी ने कहा था कि देश के युवाओं में देशभक्ति की प्रेरणा देने में मीडिया की विफलता राष्ट्र के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण है! आज, युवा लोगों को फिल्म अभिनेताओं के नाम और उनके जन्मदिन से अवगत कराया जाता है; लेकिन क्रांतिकारियों और उनकी जयंती और वर्षगांठ के नाम ज्ञात नहीं हैं। जब यह स्थिति बदलेगी तो देश का वास्तविक विकास होगा।

राष्ट्रभक्ति के अभाव के दुष्परिणाम : राष्ट्रभक्ति के अभाव के कारण आज 'राष्ट्र प्रथम' की अपेक्षा 'स्वार्थ प्रथम' यह समीकरण बन गया है। आज के समय में अनेक बुद्धिमान युवा धनार्जन हेतु विदेशों में जा रहे हैं हैं। तथाकथित समाज कल्याण के नाम पर किए जाने वाले आंदोलनों में युवा पत्थर फेंककर, आग लगाकर और सड़कों को अवरुद्ध करके राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। कई लोग कानून अपने हाथ में लेते हैं। उन्हें इस बात का भान भी नहीं है कि राजनीतिक दल उनकी भावनाओं से खेल रहे हैं और अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए उनका उपयोग कर रहे हैं, जिस प्रकार जलती हुई लकड़ी घर को जला कर राख कर देती है, उसी प्रकार युवा पीढ़ी अपने साथ अपने देश का भी विनाश कर रही है,ऐसे दिखाई देता है। आज युवा पीढ़ी को जागृत कर तथा सन्मार्ग पर लगा कर युवा शक्ति का होने वाली हानि रोकने की आवश्यकता है ।

राष्ट्रभक्ति कैसे निर्माण करें? : देशभक्ति दिखाने के लिए हर किसी को सीमा पर जाकर लड़ना है, ऐसा नहीं है ; बल्कि कई सरल कार्यों का पालन करके भी व्यक्ति अपने आप में देशभक्ति का संस्कार निर्माण कर सकता है। देशभक्ति बढ़ाने के लिए अपनी स्वभाषा और स्वसंस्कृति पर गर्व करना चाहिए। इस गौरव को बनाने के लिए स्वभाषा और स्वसंस्कृति का अध्ययन करना, उनकी विशेषताओं को जानना आवश्यक है।

क्रांतिकारियों और देशभक्तों के चरित्रों का पठन करके देशभक्ति की ज्योत प्रज्वलित की जा सकती है। 15 अगस्त-26 जनवरी को गाड़ियों पर कागज के झंडे फहराने की अपेक्षा उस समय का राष्ट् और धर्म कार्यों में उपयोग करना और दूसरों को इसके बारे में जागरूक करना, यह एक राष्ट्रीय सेवा भी है। सड़कों पर गिरे राष्ट्रीय ध्वज को उठाकर और उन्हें स्थानीय प्रशासन को सौंपना, दूसरों को तिरंगे के केक न काटने की सलाह देना, तिरंगे के रंग के कपड़े या मास्क का उपयोग न करने की सलाह देना, इससे भी राष्ट्रीय अस्मिता के अनादर को रोकने के कार्य में योगदान किया जा सकता है।

आज विकास या धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत विरोधी भावनाओं को व्यापक रूप से फैलाया जा रहा है। ऐसी राष्ट्रविरोधी विचारधाराओं का आज खंडन करने की आवश्यकता है। कानून का पालन करना, संकेतों का पालन करना, अपना काम ईमानदारी और सही तरीके से करना, अन्याय के विरुद्ध वैध तरीके से लड़ना, पूर्वजों के माध्यम से प्राप्त स्वतंत्रता को सुराज्य में बदलने का प्रयास करना भी राष्ट्रीय सेवा है। क्रिकेट मैच में भारत की जीत के बाद पटाखे फोड़ना,15 अगस्त और 26 जनवरी को देशभक्ति के गीत का 'रिंगटोन' लगाना सच्ची देशभक्ति नहीं है, तथापि देश के लिए बलिदान देने के लिए तैयार रहना, सुव्यवस्था निर्माण होने के लिए प्रयास करना देश भक्ति है। अपनी बुद्धि और कौशल्य का उपयोग राष्ट्रोध्दार के लिए करना, खरी राष्ट्र भक्ति है । धर्म राष्ट्र का प्राण है। इसलिए हमारी देशभक्ति को साधना की अर्थात उपासना के साथ की आवश्यकता है। छत्रपति शिवाजी महाराज तथा स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रीय उत्थान के लिए कार्य करते हुए अखंड साधना भी की थी । इसी प्रकार यदि युवा सनातन धर्म का पालन करें और साधना करे तो उनका व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास भी होगा । उनके कार्य के परिणाम में भी वृद्धि होगी। जब युवाओं का उत्थान होगा तभी समाज अर्थात राष्ट्र का उत्थान होगा ।
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