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महर्षि पाणिनि -विश्व बिख्यात भाषा वैज्ञानिक

महर्षि पाणिनि -विश्व बिख्यात भाषा वैज्ञानिक

जिन्होंने सभी भाषाओं को एक सूत्र में बांधा और जीवन के हर क्षेत्र की शिक्षा के लिए अष्टाध्याई ऐसे ग्रंथ का निर्माण किया , वैसे भाषा को अनुशासित करने हेतु किए जाने वाले प्रयास के मुख्य आचार्य महर्षि पाणिनि माने जाते हैं ।भाषा को अनुशासित करने वाले शास्त्र का नाम व्याकरण है । यानी जिस तंत्र से साधु शब्द का ज्ञान होता है उसे व्याकरण कहते हैं और यही शब्दानुशासन है । परंतु भिन्न-भिन्न आचार्यों ने व्याकरण की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं । पाणिनि जिनके रोम- रोम से व्याकरण झरता था ,के जन्म स्थान एवं स्थिति काल पर भिन्न-भिन्न आचार्यों के भिन्न -भिन्न मत हैं ।The history of Indian literature (London ) 1914 के अनुसार पाणिनि के जन्म एवं उनकी स्थिति का काल ईसा के 700 वर्ष पूर्व का रहा है ।उनका जन्म गांधार के लाशातुला में हुआ था । उनकी माता का नाम दक्षि एवं पिता का नाम प्रज्ञ था । इन्होने महर्षि वर्ष के आश्रम में रह कर अध्ययन किया था ।
The history of Indian literature London 1914 पेज216.
श्री युधिष्ठिर मिमांसक के अनुसार उनका काल लगभग 2800वि॰ पूर्व रहा है ।-
संस्कृत ब्याकरणशास्त्र का इतिहास-प्रथम भाग ,(प्र॰ सं॰),पृ॰48,51-5
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने 520 से 460 वर्ष पूर्व इनकी उपस्थिति मानी है । उनके अनुसार पाणिनि महानन्द राजा के समकालीन थे । इनका निवास अविभाजित भारत के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में पंजाब के गांधार जनपद में लाशातुला जो आज पेशावर के नाम से प्रसिद्ध है ,था।
इण्डिया ऐज नोन टु पाणिनि (द्वि॰ सं॰)-आठवाँ अध्याय
गणतंत्र महोदधि के अनुसार इनका निवास गांधार जनपद में लाशातुर था ।
शालतुरो नाम ग्रामः, सोऽभिजनोऽस्यास्तीतिशालतुरीयः,तत्र भवान् पाणिनि -
गणतंत्र महोदधि
परन्तु श्री युधिष्ठिर मिमांसक के अनुसार शालातुर इनके पूर्वज रहते थे ।इनका निवास वाहीक देश या उसके समीप कहीं था -
संस्कृत ब्याकरणशास्त्र का इतिहास-प्रथम भाग ,(प्र॰ सं॰),पृ-134
कथा सरित सागर के अनुसार ये महर्षि वर्ष के आश्रम में रहकर पढ़े थे ,फिर भी इनकी मेधा प्रखर नहीं हो सकी थी ।
अथ कालेन वर्षस्य शिष्यवर्गा महानभुत्।
तत्रैकः पाणिनिर्नाम जड़बुद्धितरोऽभवत् ॥
कथा स॰ सा॰,लम्बक 1,ताङ्ग -4,श्लोक-10
शालतुरो नाम ग्रामः, सोऽभिजनोऽस्यास्तीतिशालतुरीयः,तत्र भवान् पाणिनि -
गणतंत्र महोदधि
परन्तु श्री युधिष्ठिर मिमांसक के अनुसार शालातुर इनके पूर्वज रहते थे ।इनका निवास वाहीक देश या उसके समीप कहीं था ।
संस्कृत ब्याकरणशास्त्र का इतिहास-प्रथम भाग ,(प्र॰ सं॰),पृ-134
कथा सरित सागर के अनुसार महर्षि वर्ष के आश्रम में रहकर भी इनकी मेधा प्रखर नहीं हो सकी थी ।
अथ कालेन वर्षस्य शिष्यवर्गा महानभुत्।
तत्रैकः पाणिनिर्नाम जड़बुद्धितरोऽभवत् ॥
- कथा स॰ सा॰,लम्बक 1,ताङ्ग -4,श्लोक-10
पंचतंत्र के अनुसार इनकी मृत्यु सिंह के आघात से त्रयोदशी को हुई थी ।इसीलिए त्रयोदशी को ब्याकरण का अध्यन बैयाकरण निषिद्ध मानते हैं।
सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरहत् प्राणान् प्रियान पाणिने-मित्र संप्रप्ति,पंचतंत्र।
यूँ तो पाणिनि के 5 ग्रंथों का रचना - इतिहास मिलता है ,परंतु मुख्य अष्टाध्याई ही है । इसके अतिरिक्त-
1-धातु पाठ,
2-गण पाठ,
3-उणादि सूत्र
4-लिंगानुशासन
5-शिक्षा शास्त्र
6-जामवंती विजय- राजशेखर द्वारा रचित जह्णण की सूक्ति मुक्तावली मैं इसका विवरण मिलता है । नाम लिंगानुशासन की टीका में भी इसका वर्णन है ।
नमः पाणिनये तस्मै यस्मादाविर भूदिह ।
आदौ व्याकरणं काब्यमनु जाम्बन्ति जयम।॥
7- पाताल विजय -पाताल विजय भी अपर्याप्त रचना है जिसका बर्णन नामिसाधु ने रूद्रट कृत काव्यालंकार की भूमिका में किया है ।परंतु इनकी उपलब्धता नहीं है ।
1-धातु पाठ,2-गण पाठ,3-उणादि सूत्र4-लिंगानुशासन अष्टाध्यायी-सूत्र पाठ के परिशिष्ट में मिलते हैं परन्तु शेष तीन ग्रंथ अप्राप्य हैं ।
पाणिनि ने व्याकरण शास्त्र को ही क्यों अपनाया- इसके पीछे भी एक रहस्य है ।संस्कृत वांग्मय में व्याकरण का स्थान सर्वोपरि माना गया है ।
व्याकरण की परिभाषा में पाणिनि कहते हैं -
व्याक्रियन्ते =व्युतपाद्यन्ते शब्दा अनेनेति -शब्दज्ञान जनकम् व्याकरणम् ॥
संस्कृत वांग्मय में व्याकरण का स्थान बहुत ही ऊंचा है । इसकी गणना वेद के षडङ्गों में सर्वोपरि माना गया
है । शिक्षा, कल्प, व्याकरण ,निरुक्त ,छंद और ज्यौतिष सभी वेद के अंग हैं जिसमे व्याकरण को मुख्य रूप से प्रधान अंग माना गया है । यानी संस्कृति संस्कार और संसार के ज्ञान समुच्चय वेद के खड़ंग में व्याकरण का स्थान पहला है -
मुखं व्याकरणं तस्य ज्यौतिषं नेत्रमुच्यते ।
निरुक्तं श्रोत्रमुदिष्टं छन्दसां विचितिः पदे ॥
शिक्षा प्राणं तु वेदस्य हस्तौ कल्पान प्रचक्षते ॥
महाभास्य-अ॰-1,पा॰-1,आ॰-1
व्याकरण शिक्षा (ज्ञान ) के अभाव में (उच्चारन के ज्ञान नहीं होने से)अपने लोग -कुत्ता,सपूर्ण -खंड और एकवार- विष्ठा हो जाता है -
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् ।
स्वजनःश्वजनो माभूत् सकलः शकलःसकृत्छकृत् ॥
महर्षि पाणिनि के पूर्व ही व्याकरण सुब्यवस्थित हो चुका था -
नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन वहुधा श्रुतम् ।
वहु व्याहरतानेन न किञ्चिदपभासितम् ॥
वाल्मीकीय रामायण-किष्किंधा॰-3/29
ॠक् तंत्र के अनुसार व्याकरण शास्त्र के आदि प्रबक्ता ब्रह्मा हैं ।ब्रह्मा ने बृहस्पति को और बृहस्पति ने इन्द्र को शब्दोपदेश दिया -
ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच ,वृहस्पतिरिन्द्राय,इन्द्रो भारद्वाजाय,भारद्वाज ॠषेभ्यः,ॠषयो ब्राह्मणेभ्यः-
ॠक् तंत्र-1/4
तैतिरीय संहिता में भी इन्द्र को आदि संस्कर्ता माना गया है ।
वोपदेव ने भी आठ शाब्दिकों का उल्लेख करते समय सबसे पहले इन्द्र का ही नाम लिया है -
इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नाऽऽपिशला शाकटायनः।
-कविकल्पद्रुम ।
श्री युधिष्ठिर मिमांसक ने इन्द्र का काल वि॰ पूर्व 8500 वर्ष माना है ,यद्यपि संप्रति यह प्राप्य नहीं है ।,फिर भी कई ग्रंथों ने ऐन्द्र व्याकरण को काफी सम्पन्न होने की पुष्टी की है । इन्होने पाणिनि के पूर्व अस्सी व्याकरणाचार्यों का उल्लेख किया है ।स्वयं पाणिनि ने भी अपनी अष्टाध्यायी में दस शाब्दिकों का उल्लेख किया है -
1-आपिशलि-6/1/92
2-काश्यप-1/2/25
3-गर्ग्य-8/2/20
4-गालव-7/1/74
5-चाक्रवर्मण-6/1/130
6-भारद्वाज-7/2/61
7-शाकटायन-3/4/111
8-शाकल्य-1/1/16
9-सेनक-5/4/112
10-स्फोटायन-6/1/123
परन्तु पाणिनि से पूर्व के व्याकरण का प्रमाण उपलब्ध नहीं होने से पाणिनि व्याकरण के आदि आचार्य माने जाते हैं ।
पाणिनि ने अष्टाध्यायी की रचना में व्यष्टि से समष्टि तक की प्रत्येक पहलुओं पा विचार किया है ।पाणिनि ने पंजाब के मध्य भाग में खड़े होकर अपनी दृष्टि दसों दिशाओं में दौड़ाई ।पूरब की कुल्लू-कांगड़ा की पहाड़ी(त्रिगर्त) , पश्चिम में गांधार की राजधानी तक्षशिला और पुष्कलावलि तक फैले कबीलों का साम्राज्त,उत्तर में दरद(वर्तमान का गिलगिल)तथा दक्षिण में सिंधु नद -सभी स्थानों की बोली ,भाषा ,संस्कृति,रीति- रिवाज , कुलाचार ,कृषि एवं त्योहारादि का अध्ययन वहाँ के ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,सैनिक ,व्यापारी ,किसान ,रंगरेज,बढ़ई ,रसोइए ,मोची ,ग्वाले ,चरवाहे ,गड़ेड़िए ,बुनकर , कुम्हार ,माली आदि से मिलकर एवं उनके साथ कुछ दिन रहकर उनके पेशे से सम्बन्धित शब्दों का गंभीरता से किया
था ।इसीलिए तत्कालीन भारतीय समाज का सम्पूर्ण चित्र भूगोल ,अर्थशास्त्र ,शिक्षा शास्त्र,राजनीति शास्त्र दर्शन शास्त्र खान -पान के वर्णन होने से यह ग्रंथ अष्टाध्यायी ,अति महत्वपूर्ण हो गया ।
इसमें 3996 सूत्र हैं जो समाज के हर पहलुओं को छूते हैं ।
यह अष्टाध्यायी नामक ग्रंथ सभी भाषाओं के व्याकरण का जन्मदाता है तो है ।इसमैं शब्दों की व्युत्पति ,शब्द बनाने की प्रक्रिया ,धातु पाठ ,छन्द शास्त्र आदि तो बताई ही गई है ,इनके अतिरिक्त वैदिक एवं लौकिक दोनो भाषाओं के परिवारों ,रिस्तों की एक बड़ी सूचि बनाई है ।दस हजार वाले गावों की सूची का वर्णन भी इसकी विशेषता है ।इसमें विभिन्न पकवानों ,विभिन्न प्रकार की कृषि ,विभिन्न प्रकार की सुरा का वर्णन मिलता है ।
25 मन का बोझा आचित तथा एवं 25 मन भोजन का प्रबन्ध करने वाले रसोइया को आचितक कहते थे । उस समय होने वाले छः प्रकार के धानों का वर्णन है -ब्रीहि,महा ब्रीहि,शालि,हायन,षष्ठिका (साठी) और निवार । इसी तरह सुरा - मैरेय,कापिशायन ,अवधतिका ,कषाय ,कालिका का वर्णन मिलता है । इस तरह महर्षि पाणिनि विश्व के प्रथम भाषा वैज्ञानिक हैं ।
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