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जय महाराणा प्रताप

जय महाराणा प्रताप

हल्दीघाटी युद्ध चरम पर था 
स्वयं अरि काल बने राणा 
नर मुंडो से सटी रणभूमि 
जिधर निकलते महाराणा

महाराणा के बिन बोले ही 
अरि दल में जा घुसता चेतक 
पराक्रमी सवार प्रतापी राणा
ओजस्वी दमकता मस्तक

ना भूख लगे ना पांव थके 
मेवाड़ी वीरों में ओज भरा 
ना भूख लगे ना प्यास लगे 
जय घोष कर रही विजय धरा

मातृभूमि के मतवालों ने 
हर हर महादेव जयघोष किया 
हौदे में छिपे मानसिंह पर 
भाले ने अपना काम किया

चेतक स्वामी भक्त प्रबल 
रख दिए गज मस्तक पे पांव
राष्ट्रद्रोही कह गरजे राणा 
चल पड़ा महाराणा का दाव

हिल उठा सिंहासन अकबर का
भारी-भरकम घमासान हुआ
रणभूमि में लड़ते-लड़ते 
हल्दी घाटी आंगन लाल हुआ

सरदार झाला की दृष्टि 
जब महाराणा की ओर गई 
घायल रणयोद्धा की वीरता 
मुगलो तक को झकझोर गई

घायल घोड़ा चेतक फिर भी 
रण कौशल का कोई पार न था  
राष्ट्र हेतु यज्ञ आहुत हो जाना पर 
तोड़ना क्षत्रिय धर्म स्वीकार न था

अपने सिर धारण कर मुकुट 
मित्र धर्म निभाया झाला ने 
मेवाड़ी वीर लड़ रहे थे तब
करतब दिखलाये भाला ने

एक बड़ा नाला चेतक ने 
छलांग लगाकर पार किया
मरते दम तक साथ देकर 
स्वामी पर जीवन वार दिया

एक अजब झलक मिल जाती
चेतक की आंखों में चमक धरी 
चेतक का सिर गोद में लेकर 
राणा की आंखें अश्रु भरी

जब आन बान और शान में 
स्वाभिमान बताया जाएगा
महाराणा प्रताप के संग में 
चेतक का नाम भी आयेगा

मेवाड़ धरा की माटी को 
शत शत वंदन अभिनंदन है
हल्दीघाटी की पावन धरा 
कण कण पावन चंदन है

रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित मौलिक है
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