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हिंदू मंदिरों- मठों पर सरकारी नियंत्रण करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की भावनाओं पर प्रहार-------भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा

हिंदू मंदिरों- मठों पर सरकारी नियंत्रण करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की भावनाओं पर प्रहार-भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही सरकार ने विभिन्न नियमों और व्यवस्थाओं के माध्यम से देश के लाखों लाख मंदिरों, मठों पर सरकारी नियंत्रण सुनिश्चित किया है जबकि अब भारतीय संविधान के मूल ढांचे के सर्वथा विरुद्ध है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है जिसके तहत ही मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य धार्मिक समुदाय धार्मिक संस्थानों के प्रबंध में इस संवैधानिक गारंटी का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। आज भी यह संस्थान सरकारी नियंत्रण से बाहर हैं किंतु हिंदुओं के मामले में सरकार का दोहरी रवैया और सख्त कार्रवाई क्यों ?
इस संदर्भ में विभिन्न सामाजिक धार्मिक संगठनों से जुड़े जागरूक बुद्धिजीवियों ने भारत के महामहिम राष्ट्रपति के अलावे केंद्रीय एवं राज्य सरकारों से हिंदू मंदिरों, मठों को सरकारी कब्जे से मुक्त करने की मांग की है। मांग करने वाले प्रमुख लोगों में सर्वश्री आचार्य राधा मोहन मिश्र माधव, मगध विश्वविद्यालय के डॉक्टर बी.एन पांडे, प्रोफेसर उमेश चंद्र मिश्र, स्वामी बृजेंद्र मिश्र, गजाधर लाल पाठक,आचार्य अरुण शास्त्री मधु, आचार्य रूप नारायण मिश्र, डॉक्टर ज्ञानेश भारद्वाज, पंडित अरुण पाठक, सिद्ध नाथ मिश्र, लक्ष्मी नारायण उपाध्याय, चित्रसेन पांडे, शंभू गिरी, अमित गोस्वामी, महंत गौरी शंकर मिश्र, डॉक्टर मंटू मिश्रा, कौटिल्य मंच के रंजीत पाठक, पवन मिश्रा, पंडित कृष्ण कन्हैया मिश्रा, अधिवक्ता दीपक पाठक, ई•वीरेंद्र मिश्र, मनीष मिश्रा, डॉ प्रताप नारायण मिश्र, केशव लाल भैया, गजेंद्र लाल अधीर, अमरनाथ घोकडी रतन कटारिया, वैष्णवी मांडवी गुर्दा, अनीशा आकांक्षा कटरियार, डॉ परमेश्वर मिश्र, प्रोफेसर रीना सिंह, मालती देवी, डॉ राजेंद्र प्रसाद मिश्र, संतन मांझी, रामकुमार सिंह, वासुदेव प्रसाद, रघुवंश नारायण सिंह, विदेश सिंह, कौशल्या पासवान, रामबाबू सिंह, फुल कुमारी यादव, सिद्धेश्वर पाठक, संजय पाठक, कविता राऊत के अलावे बड़ी संख्या में लोगों ने मंदिर मठों की सरकारी नियंत्रण से शीघ्र मुक्त करने की मांग की है
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