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शीत का संगीत कोई छेड़ता

शीत का संगीत कोई छेड़ता

डॉ रामकृष्ण मिश्र 
थरथराते प्राण-तन को
अनमनेपन की छुअन को
शब्द का उपहार देकर
स्नेह -सम्बल   हेरता!!
शीत का संगीत कोई छेड़ता!!

हवा होती ऊष्मिताएँ
परिघ बनतीं पुष्पिताएँ
तुषारार्द्रित जनपथों पर
अग्नि पात्र बिखेरता!!
शीत का संगीत कोई छेड़ता!!

कूल त्यकता सरित धारा
व्योम लक्षित तिमिर सारा
किस अनामा वर्तिका में
 पथिक प्रीति उरेहता!!
शीत का संगीत कोई छेड़ता!!

लोरियों  की  गोद सूनी
व्यथा होती और दूनी
विकल  सा एकांतपन
संवादहीन उकेरता!!
शीत का संगीत कोई छेड़ता!!
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