देगा कौन उधार
समझ नहीं आता है मौसम
क्यों खाये है खार
बिजली के संग पाथर बरसे
बही अश्रु की धार
कई दिनों से सूरज भाई
छिपे रजाई में
दिखे नहीं हैं चन्दा मामा
मौन जुदाई में
दिन भर सिकुड़े रहे बरोठे
लगते सबको भार
गरज-गरज धमकाने मेघा
लौट-लौट आते
पल में सिट्टी पिट्टी सबकी
वे गुम कर जाते
तिलहन चौपट हुआ चने की
फसल हुई बेकार
बची-खुची जो कुछ,आवारा
पशु हैं झाड़ रहे
हलधर भरे ऑख में पानी
बीबुर काढ़ रहे
सिर पे बिटिया ब्याह नगीचे
देगा कौन उधार
सरकारी सब बातें उनकी
हवा हवाई हैं
गहरे जखम हमारे कोई
नहीं दवाई हैं
सगरे झूठ-मूठ का झूंठा
दिखलाते हैं प्यार
*
~जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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