क्या आप जानते हैं 'सैलरी' यानी तन्ख्वाह और नमक में क्या है कनेक्शन? 'सॉल्ट' से बनीं है 'सैलरी'
संकलन अश्विनी कुमार तिवारी
कभी रोम के सौनिकों को मेहनताने के रूप में नमक दिया जाता था। मेहनताने का अंग्रेजी शब्द 'सैलरी' इसी (सॉल्ट) से बना है।
कभी रोम के सौनिकों को मेहनताने के रूप में नमक दिया जाता था। मेहनताने का अंग्रेजी शब्द 'सैलरी' इसी (सॉल्ट) से बना है।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीनकाल में नौकरी करने वालों के लिये कोई सिस्टम नहीं बनाया गया था. यही वजह है कि सैलरी जैसी कोई चीज़ भी नहीं थी. इसलिये उस दौर में लोगों को सैलरी के नाम पर नमक पकड़ा दिया जाता था. रोमन साम्राज्य के लिये काम करने वाले सैनिकों को सैलरी में मुठ्ठी भर नमक देते थे. हालांकि, ऐसा भी नहीं था कि सारे सैनिकों को ही नमक मिल जाता था. जो सैनिक मेहनत से काम करते थे, उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार नमक दे दिया जाता था.
सैनिक रोज दिन के अंत में काम खत्म करने के बाद नमक लेकर घर लौटते थे. यहीं से रोम में कहावत शुरू हुई जो कुछ इस तरह से थी, ‘किसी के लिए नमक जितने कीमती बनो.’ जो सैनिक अच्छा काम करता था, वो ही इस नमक को हासिल करने योग्य माना जाता था. मशहूर रोमन इतिहासकार प्लीनी द एल्डर ने कहा है, ‘रोम में सैनिकों की वास्तविक सैलरी नमक थी और यहीं से सैलरी शब्द की उत्पत्ति हुई.’ एल्डर ने यह बात अपनी किताब ‘नैचुरल हिस्ट्री’ में उस समय लिखी है जब वो सी वॉटर का जिक्र कर रहे थे.
हिब्रू भाषा की किताब एजारा में 550 और 450 BCE का जिक्र है. इस किताब में भी लिखा है कि अगर आप किसी व्यक्ति से नमक लेते हैं तो फिर यह बिल्कुल उससे उसकी पे लेने या फिर उसे सैलरी देने के बराबर ही है. किसी जमाने में नमक पर उसका ही हक होता था जिसका शासन होता था. एजारा के 4:14 सेक्शन में एक मशहूर फारसी राजा आर्टाजर्क्सीस प्रथम का जिक्र है. इस राजा के नौकर जब अपनी वफादारी के बारे में उसे बताते हैं तो कहते हैं, ‘क्योंकि हमें राजा से नमक मिलता है या हमें राजा से प्रबंध के लिए नमक दिया जाता है.’ हिंदी में भी जब आप कहते हैं कि ‘हमने आपका नमक खाया है,’ तो उसका मतलब आपको मिलने वाली सैलरी और आपकी वफादारी से ही होता है.
गुलामों को नहीं मिलती थी सैलरी
मध्ययुग तक सैलरी हासिल करना बहुत आम नहीं था और यूरोप में काम करने वाले लोगों की हालत बहुत ही बुरी थी. बार्टर सिस्टम यानी विनिमय प्रणाली की वजह से व्यापार जिंदा था. उच्च वर्ग के लोगों को हर साल एक निश्चित रकम मिलती थी जिसमें कुछ एक्स्ट्रा पेमेंट भी शामिल होता था. निचले तबके के लोग जिसमें गुलाम और दूसरे नौकर थे, उन्हें कोई पेमेंट नहीं दिया था. वो जो कुछ भी पैदा करते थे उसमें से थोड़ा सा हिस्सा उन्हें मिलता था या खाने का कुछ सामान और रहने की जगह उन्हें दे दी जाती थी. सहायकों, यूनिवर्सिटीज में काम करने वालों और ऐसे लोगों को कोई सैलरी नहीं मिलती थी.
मंच पर छिड़का जाता था नमक
पुराने जमाने में जापान में थिएटर के मंच पर नाटक से पहले नमक छिड़का जाता था। ऐसा ऐक्टर्स से बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए किया जाता था।
वास्तु शास्त्र में जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने के लिए कई अचूक फंडे बताए गए हैं। यदि किसी घर में वास्तुदोष हैं और उनका सही उपाय नहीं हो पा रहा है तो बाथरूम में एक कटोरी साबूत या खड़ा समुद्री नमक रखें। ऐसा करने पर घर की कई प्रकार नकारात्मक शक्तियां निष्क्रीय हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा को बल प्राप्त होने लगेगा।
नमक में अद्भुत शक्तियां होती हैं जो कई प्रकार के नकारात्मक प्रभावों को नष्ट कर देती हैं। इसके अलावा इससे घर दरिद्रता का भी नाश होता है और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। परिवार के सभी सदस्यों के विचार सकारात्मक होंगे जिससे उनका कार्य में मन लगा रहेगा। असफलताओं का दौर समाप्त हो जाएगा और सफलताएं मिलने लगेंगी।
लोक परंपराएं, मान्यताएं, टोने-टोटके सभी देशों में माने जाते हैं। कुछ लोग इन पर विश्वास करते हैं, तो कुछ इन्हें अंधविश्वास मानते हैं।
अधिकांश मान्यताओं के पीछे कोई ठोस आधार नहीं हैं, फिर भी ये सदियों से चली आ रही हैं।
नमक का गिर जाना
नमक का गिरना अच्छा नहीं माना जाता। बुल्गारिया, यूक्रेन और रोमानिया जैसे देशों में इसे दुर्भाग्य और विवाद का सूचक समझा जाता है। भारत में भी नमक का इस्तेमाल करते व$क्त सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है।
दरअसल, प्राचीन समय में नमक बेहद अमूल्य और दुर्लभ होता था। रोमन साम्राज्य में सैनिकों को वेतन नमक के रूप में दिया जाता था। तनख्वाह के लिए अंग्रेज़ी में 'सैलरी' शायद यहीं से आया है। 'सैल' मतलब होता है, नमक।
नमक के इसी महत्व के कारण उसका गिर जाना (यानी व्यर्थ हो जाना) किसी भी तरह की हानि का संकेत मान लिया गया होगा। शायद इसीलिए नीदरलैंड में नमक उधार देना भी बुरा माना जाता है। इंग्लैंड में लोकविश्वास है कि गिरे नमक में से एक चुटकी लेकर बाएं कंधे की ओर से पीछे फेंक देने पर अपशकुन नहीं होता।
✍🏻इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित
नमक को संस्कृत में 'लवण' कहा गया है, तो अब लवण गाथा ..लवण_गाथा
मैंने बहुत से लोगों से पूछा कि उन्हे कौनसा स्वाद पसंद है। किसी ने मीठा कहा, किसी ने तीखा, कुछ बीमार लोगों ने कड़वा भी कहा। किसी ने भी खारा नही कहा। क्या हमारी सोच वास्तविक स्वाद को लेकर इतनी संज्ञाहीन है?
यदि श्रीकृष्ण गीता में स्वाद को लेकर कहते तो वे कहते - "स्वादानाम लवणोऽहम्!" यदि स्वाद है तो वह लवण ही है बाकी सब असार है या अरस है।
भारत में दांडी के कूच की पृष्ठभूमि २५ अप्रैल १९२६ के समय गंजबासौदा (म. प्र.) के व्यापारी ने पचपदरा (राजस्थान) में लवण के सत्याग्रह हेतु तैयार कर दी थी, जोधपुर नरेश का साथ मिल गया होता तो सत्याग्रह सेठ श्री गुलाब चंद सालेचा के नाम होता।
भारत का समुद्री तट सर्वाधिक विस्तृत है। फिर भी अंग्रेज़ों की मतिभ्रष्ट हो गई थी कि उन्होंने लवण जैसी सस्ती और सहज सुलभ चीज पर कर लगाया। गांधी जी को अवसर दिया सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का। २४ दिन की पैदल अहमदाबाद से दांडी यात्रा (गुजराती में दांडी का मतलब स्तंभ होता है, दीवादांडी का मतलब होगा समुद्री किनारे लगा प्रकाश स्तंभ।) सम्पन्न हुई। यह सत्याग्रह 'दांडी कूच' के नाम से विख्यात हुआ। गांधी जी के साथ इस कूच में ७९ यात्री १९३० में चले थे, उनमें ५ वें पंजीकृत सदस्य थे २५ वर्षीय श्री गणपतराव गोडसे। गोडसे मुम्बई से दांडी कूच में सम्मिलित हुए थे।
हालांकि मैं सस्ती चीज कहकर अपमान कर रहा हूँ लवण का। हमारे छत्तीसगढ़ में जनजाति बंधु गहन वनों में १ किलो चिरौंजी के बदले २ किलो नमक खरीदते रहे हैं। इधर म. प्र. में गुजरात सीमा से जुड़े शूलपाणेश्वर पहाड़ क्षेत्र में भीताड़ा, सकरजा, चिलकदा जैसे गांव है जहां जनजाति बंधुओं को दिनभर पैदल चल कर नमक खरीद कर ले जाना पड़ता है।
लवण तत्सम शब्द है, इससे तद्भव लौण > लूण का जन्म हुआ, बाद में यह नोन > नून भी कहा जाने लगा। नमक फारसी शब्द है। समुद्री पानी ज्वार में ऊपर उठता है लवण के किसान उस पानी को बड़ी बड़ी क्यारियों में जमा करता है और समुद्री नमक तैयार होता है। खनिज के रूप में सिंध की खदानों से सेंधा नमक आता है और हमारे हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से भी खदानों से मिल जाता है।
कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि वाट्सएप उनीभर्सीटी के बहुत लोग नमक को जहर बताते रहे हैं। समुद्री सफेद नमक के प्रति तो इतना माहौल गरम रहता है कि किसी से भोजन के बखत मांग लो तो ऐसे देखते हैं जैसे जहर मांग लिया हो। पर मेरा मानना है कि लवण जैसा तत्व नहीं जो स्वाद, रस और प्राणों का संचारक है। "अति सर्वत्र वर्जयेत।" यदि लवण इतना बुरा होता तो पुराणकार यह क्यों कहता -
पितॄणां च प्रियं भव्यं तस्मात्स्वर्गप्रदं भवेत् ।
विष्णुदेहसमुद्भूतो यतोऽयं #लवणो रसः ॥
यदि 'पुराणकार' कुछ वाम टाइप पंथियों के लिए वॉमिटिंग का कारण है तो लवणभास्कर नामक दवाई में मिले सेंधानमक, सांभर नमक, समुद्री नमक, विडनमक और सौंचर नमक को कभी न खाए। मैं तो कबीर बाबा की सुनता हूँ और लवण को स्वाद का राजा मानता हूँ -
"कबीर गुरु गले मिलनी, रहि गए आँटि लौण।
जाति पाँति कुल सब मिटा, गाँव धरीगे कौण।"
यदि कबीर से भी पेट में मरोड़ उठता हो तो बुल्लेशाह को देख लीजिए -
"बुल्ला साई घट-घट रवया, ज्यों आटे विच लौण।"
हमारे प्राचीन साहित्य में तो एक लवणासुर नामक राक्षस का भी चित्रण है, जरूर वह अंग्रेजों की तरह लवण पर कब्जा कर बैठा हुआ कोई नमकमाफिया रहा होगा, जो आम जन को नमक का उपयोग न करने देता होगा। उसके इस आतंक का नाश राम जी के छोटे शत्रुघ्न महाराज ने किया था -
"शत्रुघ्न शर निर्भिन्नो लवणः स निशाचरः।
पपात सहसा भूमौ वज्राहत इवाचलः।"
गुजराती में लवण को 'मीठा' कहते हैं, सही नाम तो गुजराती ही देते हैं, जो जीवन का रस से वह मीठा ही हो सकता है इसलिए 'मीठा!' क्या गलत कहा? टाटा ग्रुप ने मीठे से प्रभावित होकर पूरा शहर बसा दिया 'मीठापुर'। द्वारका के एकदम पास। यहां टाटा नमक बनता है। टाटा नमक यानी देश का नमक। अभी कुछ दिनों पहले कुछ वामी कह रहे थे कि सेंधा नमक पाकिस्तान से आता है इसलिए राष्ट्रवादी लोग उस नमक को न खाएं। क्यों भाई क्या सेंधा नमक भारत में नही होता? दूसरी बात कि भारतीय उपमहाद्वीप में पैदा होने वाला सब भारत का है और जिन्हें भारत कहते ही पेटदरद होता हो वह भारतीय उपमहाद्वीप खाली करे।
नाम पर फिर एक बार आते हैं, राजस्थान में लूणकरणसर झील में 'लूण', महाराष्ट्र में लोणार झील जो भारत की प्रसिद्ध क्रेटर लेक होने का स्थान रखती है उसमें भी 'लोण' और गुजरात के कच्छ की एक दूसरी क्रेटर लेक जो लुणा गांव में है उसमें भी 'लुण' यह लवण ने कहां कहां तक जड़ें पसार रक्खी है भई?
अरबी भाषा में लवण का नाम कविर है। नमकीन इलाके को दश्त - ए- कविर कहा जाता है। परचून की दुकान पर नमक बाहर रखना बरकत की निशानी है। दुकान से बाहर रखा लवण कोई नहीं चुराता। यह भी हमारा पारंपरिक कायदा है। हमारे साहित्य का "नमक का दरोगा" भी अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक और ईमानदार है। नमक हराम मुहावरा भी सब जानते हैं। तो भई जो वाट्सएप उनीभर्सीटी ने नमक का हलाला कर रक्खा है उससे बचो और लगे उतना खाओ। रक्तचाप वाले महानुभाव अपनी रिस्क पर खाएं, इन पंक्तियों के लेखक को न कोसें। मैं तो पुराण का लिक्खा मानता हूँ -
"लवणं तद्रसं दिव्यं सर्वकामप्रदं नृणाम् ।
यस्मादन्नरसाः सर्वे नोत्कटा लवणं विना ॥"
✍🏻गजेंद्र कुमार पाटीदार
गोमयेनोपलिप्ते तु दर्भस्यास्तरणे स्थितः ।
तत्र दत्तेन दानेन सर्वं पापं व्यपोहति ॥ २,२९.२९ ॥
लवणं तद्रसं दिव्यं सर्वकामप्रदं नृणाम् ।
यस्मादन्नरसाः सर्वे नोत्कटा लवणं विना ॥ २,२९.३० ॥
पितॄणां च प्रियं भव्यं तस्मात्स्वर्गप्रदं भवेत् ।
विष्णुदेहसमुद्भूतो यतोऽयं लवणो रसः ॥ २,२९.३१ ॥
विशेषाल्लवणं दानं तेन शंसन्ति योगिनः ।
ब्राह्मण क्षत्त्रियविशां स्त्रीणां शूद्रजनस्य च ॥ २,२९.३२ ॥
आतुराणां यदा प्राणाः प्रयान्ति वसुधातले ।
लवणं तु तदा देयं द्बारस्योद्धाटनं दिवः ॥ २,२९.३३ ॥ ये श्लोक गरुडपुराण के प्रेतकल्प का है। इसमें लवण को विष्णु के शरीर से उत्पन्न कहा गया है।✍🏻जगदानंद झा
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