बहुमूल्य है कॉलेज परिसर में प्राप्त पंचमुखी शिव प्रतिमा
सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय परिसर में भवन-निर्माण हेतु जमीन की खुदाई के दौरान भगवान शंकर की एक पंचमुखी प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा को दुर्लभ एवं बहुमूल्य बताया जा रहा है। सर्वेक्षण के दौरान कॉलेज में पधारे हेरीटेज सोसायटी पटना के महानिदेशक प्रोफेसर अनंताशुतोष द्विवेदी ने बतलाया कि देखने से ऐसा लगता है कि यह प्रतिमा 300 से 400 वर्ष पूर्व की हैं। देव मंदिर के बाहर ठीक इसी तरह की एक पंचमुखी शिव प्रतिमा है जो पालकालीन आठवीं से 12वीं सदी के बीच की बतलाई गई है। औरंगाबाद का प्राचीनतम शिव मंदिर जो देवकुंड में स्थित है वह सातवीं से आठवीं सदी के बीच उत्तर गुप्त काल का बतलाया जाता है। उन्होंने आगे बताया कि भगवान शंकर की प्रतिमाएं भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न रूपों में देखने को मिल जाती हैं। कहीं अर्घ्य के साथ एकमुखी शिवलिंग है तो कहीं शिव पंचायतन में विष्णु, गणेश, सूर्य, पार्वती और शंकर के साथ मूर्तियां देखी जाती हैं। भगवान शिव की सर्वतोभद्र प्रतिमा में पांच मूर्तियां केवल शंकर भगवान की ही होती हैं।
प्राचार्य प्रोफेसर वेद प्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि उक्त कालेज में शताब्दियों पूर्व टेकारी महाराज का कार्यालय हुआ करता था। ऐसा संभव है कि उनके कर्मचारियों ने पूजा-पाठ के लिए इस मूर्ति की स्थापना की हो, जो कालांतर में मिट्टी से दब गई हो।
उक्त कालेज के पूर्व भूगोल विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रामाधार सिंह ने बताया कि इस तरह की पंचमुखी शिव प्रतिमाएं अयोध्या के गुप्तार घाट, तेलंगाना के सिद्ध रूद्रेश्वर मंदिर, पशुपतिनाथ महादेव पंचमुखी मंदिर, संभल खेड़ा तथा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के पास भी स्थापित हैं। इलाहाबाद के बालाघाट मार्ग में भी 300 वर्ष पूर्व की पंचमुखी महादेव मंदिर भी आस्था का केंद्र है।
शहर के सुख्यात पंडित महेंद्र पांडेय ने कहा कि भगवान शंकर के तीन रूपों की उपासना की जाती है। पंचमुखी शिव प्रतिमा की रचना प्रकृति के पांच तत्वों अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल से किया गया है।
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