कैसे कैसे लोग
अक्सर हमसे डरते लोग,
महज दिखावा करते लोग।
हम भी यह सब खूब समझते,
चापलूसी क्यों करते लोग।
वो हैं चोरों के सरदार,
कहने से क्यों डरते लोग।
सफ़ेद भेडिये खुले घूमते,
क्यों नहीं उन्हें पकड़ते लोग।
कहते हैं सब बेईमान,
क्यों नहीं उन्हें बदलते लोग।
अबकी बार चुनाव होगा,
फिर से उन्हें चुनेंगे लोग।
लूट रहे जो अपने देश को,
कहते देश भक्त हैं लोग।
जन्म दिया और बड़ा किया
घर के बाहर खड़े क्यों लोग?
मात पिता जीवित भगवान
क्यों नहीं सार समझते लोग?
माँ-बाप की कदर न करते
मरे हुए से बदतर लोग।
जीवन मरण, लाभ यश, हानि
कर्मो का फल कहते लोग।
मानवता की राह चले जो
अक्सर दुखिया रहते लोग।
भ्रष्ट-बेईमान क्यों कर फूले
बतला दो तुम ज्ञानी लोग।
साँसों की गिनती है सिमित
बतलाते हैं साधू लोग।
तेरा मेरा करते लड़ते
जीवन व्यर्थ गंवाते लोग।
आज भी हम हैं विश्व गुरु
क्यों नहीं बात समझते लोग?
भारत सदा ज्ञान का केंद्र
कहते हैं दुनिया के लोग।
ज्ञान की भाषा कहाँ खो गई
ढूंढ रहे हैं ज्ञानी लोग?
अंग्रेजी को महान बताते
मेरे अपने घर के लोग।
सबसे बड़ा बन गया रुपैया
ऐसा कहते ज्यादा लोग।
फिर भी धनी दुखी क्यों रहता
समझाते नहीं सयाने लोग।
देश ऩे हमको दिया है सब कुछ
क्यों नहीं गर्व समझते लोग?
लूट रहे जो अपने देश को
सचमुच बड़े कमीने लोग।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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