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८ फरवरी को है भगवान भुवन भास्कर का जन्मोत्सव कैसे करे रथ सप्तमी व्रत की पूजा? क्या है विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व| कैसे आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से होता है हृदय मजबूत?

८ फरवरी को है भगवान भुवन भास्कर का जन्मोत्सव कैसे करे रथ सप्तमी व्रत की पूजा? क्या है विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व| कैसे आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से होता है हृदय मजबूत?

हिंदू धर्म में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है यानी वे देवता जो हमें दिखाई देते हैं। साल में कई बार सूर्य से संबंधित व्रत-उत्सव भी मनाए जाते हैं। सप्तमी तिथि के स्वामी भी सूर्यदेव ही हैं। इसलिए इस तिथि पर इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है।

सूर्य देव या आदिदेव का संबंध सप्तमी तिथि से है। माघ मास में, जब शुक्ल पक्ष की सप्तमी आती है, तो श्रद्धालु इसे रथ सप्तमी या माघ सप्तमी के नाम से जानते हैं। इसे अचला सप्तमी या सूर्य जयंती भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव का जन्म माघ शुक्ल सप्तमी को हुआ था, इसलिए इसे सूर्य जयंती कहते हैं। इस तिथि को ही सूर्य देव अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे। भगवान सूर्य संपूर्ण संसार को प्रकाश देने वाल हैं, सभी उनकी उपासना करते हैं। आइए जानते हैं कि इस वर्ष रथ सप्तमी कब है और पूजा मुहूर्त और इसके महत्व के बारे में-

माघ मास की सप्तमी का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस बार ये तिथि 8 फरवरी, मंगलवार को है। धर्म ग्रंथों में इसे रथ सप्तमी या माघ सप्तमी के नाम से जानते हैं। इसे अचला सप्तमी या सूर्य जयंती भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव का जन्म माघ शुक्ल सप्तमी को हुआ था, इसलिए इसे सूर्य जयंती कहते हैं। इस तिथि को ही सूर्य देव अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे। आगे जानिए इस पर्व से जुड़ी खास बातें…

रथ सप्तमी तिथि एवं पूजा मुहूर्त
सप्तमी तिथि प्रारंभ: 7, फरवरी, सोमवार, दोपहर 4:37 से
सप्तमी तिथि समाप्त: 8 फरवरी, मंगलवार, प्रातः 6:15 तक
रथ सप्तमी पर स्नान मुहूर्त: 7, फरवरी, प्रातः 5:24 से प्रातः 7:09 तक
कुल अवधि: 1 घंटा 45 मिनट
अर्घ्यदान के लिए सूर्योदय का समय: प्रातः 7:05 मिनट

रथ सप्तमी का महत्व
रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। रथ सप्तमी का दिन भगवान सूर्य के नाम से दान-पुण्य वाले कार्यों में दान या भाग लेने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल सकती है। कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में सात प्रकार के पाप करता है। ये जानबूझकर, अनजाने में, मुंह के वचन से, शारीरिक क्रिया द्वारा, मन में, प्रचलित जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं। रथ सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से इन सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

रथ सप्तमी का दिन भगवान सूर्य के नाम से दान-पुण्य वाले कार्यों में दान या भाग लेने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल सकती है। कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में सात प्रकार के पाप करता है। ये जानबूझकर, अनजाने में, मुंह के वचन से, शारीरिक क्रिया द्वारा, मन में, प्रचलित जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं। रथ सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से इन सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

रथ सप्तमी की पूजा विधि

· रथ सप्तमी की पूर्व संध्या पर अरुणोदय के समय जगे रहना और स्नान करना बेहद आवश्यक है। यह बहुत महत्वपूर्ण है।

· स्नान के बाद नमस्कार करते हुए सूर्यदेव को जल का अर्घ्य का दें। अगर संभव हो तो सूर्यदेव को गंगाजल से अर्घ्य दें।

· अर्घ्य देते समय सूर्यदेव के अलग-अलग नामों का स्मरण करें। भगवान सूर्य के भिन्न नामों का काम से काम 12 बार जाप करें।

· भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद मिट्टी के दीए लें और उन्हें घी से भर दें और प्रज्ज्वलित करें। इसी को रथ सप्तमी पूजन कहते है।

· इस अवसर पर गायत्री मंत्र का जाप, सूर्य सहस्त्रनाम मंत्र का भी जाप करें। इसका जाप पूरे दिन करें।

· मान्यता है कि ऐसा करने से भाग्य परिवर्तन होना शुरु हो जाता है।

- रथ सप्तमी की पूर्व संध्या पर अरुणोदय के समय जगे रहना और स्नान करना बेहद आवश्यक है। यह बहुत महत्वपूर्ण है।
- स्नान के बाद नमस्कार करते हुए सूर्यदेव को जल का अर्घ्य का दें। अगर संभव हो तो सूर्यदेव को गंगाजल से अर्घ्य दें।
- अर्घ्य देते समय सूर्यदेव के अलग-अलग नामों का स्मरण करें। भगवान सूर्य के भिन्न नामों का काम से काम 12 बार जाप करें।
- भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद मिट्टी के दीए लें और उन्हें घी से भर दें और प्रज्ज्वलित करें। इसी को रथ सप्तमी पूजन कहते है।
- इस अवसर पर गायत्री मंत्र का जाप, सूर्य सहस्त्रनाम मंत्र का भी जाप करें। इसका जाप पूरे दिन करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भाग्य परिवर्तन होना शुरु हो जाता है।



आदित्य हृदय स्तोत्र, इसके पाठ से होता है हृदय मजबूत, मिलती है .

आदित्यहृदयम् सूर्य देव की स्तुति के लिए वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड मे लिखे मंत्र हैं। जब राम, रावण से युद्ध के लिये रणक्षेत्र में आमने-सामने थे, उस समय अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को सूर्य देव की स्तुति करने की सलाह दी। आदित्यहृदयम् में कुल ३० श्लोक हैं तथा इन्हें ६ भागों में बाँटा जा सकता हैं।

आज के समय मे, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ, नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता पाने तथा मनोकामना सिद्ध करने मे किया जाता है।

आदित्यहृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥ हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

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