पंचायती राज : स्वास्थ्य सुविधा:-विभा सिंह
कहते हैं स्वास्थ्य ही धन है, इसलिए पंचायती राज में प्राथमिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करना सबसे ज्यादा जरूरी है! स्वास्थ्य अनुरूप ही समाज में एक स्वस्थ वातावरण पैदा कर सकता है!महात्मा गांधी ने 1906 में गायरी टू हेल्थ एक कॉलम की शुरुआत की थी जो काफी प्रसिद्धि पाई थी!
दरअसल इस जीवन स्तर में शिक्षा स्वास्थ्य स्वतंत्रता आदि व्यस्त महिलाओं चाहे किसी भी समाज की वो जब भी स्वस्थ व शिक्षित होंगी तभी राष्ट्र का विकास संभव है! वस्तुतः महिलाएं परिवार,समाज एवं सुधीर राष्ट्र के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है!
सरकार द्वारा चलाई जा रही आगनवाड़ी यानी समेकित बाल विकास सेवा परियोजना एक केंद्र संपोषित योजना है!इसका मुख्य लक्ष्य ग्राम पंचायत स्तर की महिलाओं और खास तौर पर बच्चे का मृत्यु दर रुकना, कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य की अच्छी तरह से जांच करके उसकी देखभाल करना है!समुचित पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से माताओं की क्षमता का विकास करना है!ताकि वे अपने बच्चे के सामान्य स्वास्थ्य एवं पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी क्षमता के अनुसार कर सके पूरक पोषण कार्यक्रम प्रतिरक्षण स्वास्थ्य जांच रेफरल सेवा तथा माताओं के लिए पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा इन के मुख्य उद्देश्य इस योजना में मुक्ता उन लोगों को केंद्र बिंदु रखा गया है जो जो कृषि मजदूरों सीमांत किसानों एवं समाज में अन्य कमजोर वर्ग में 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चे शामिल हैं जिनमें योगदान कराने वाली माताएं भी शामिल थी!
अप्रैल 2008 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार आंगनवाड़ी केंद्रों द्वारा इस योजना के तहत 300 दिन पोषाहार की आपूर्ति की जानी थी लेकिन समाज के कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई इस अति महत्वकांक्षी और कल्याणकारी योजना को कभी सर जमी पर सही ढंग से उतारा नहीं गया तो क्या होगा हमारे उन समाज का जहां केंद्र के एक हजार की आबादी पर गांव में तथा डेढ़ हजार की आबादी पर शहरों में खुलने वाला स्वास्थ्य केंद्र का क्या कभी लक्ष्य पूरी हो पाएगी? जबकि एक सेंटर को 5300 रुपए उपलब्ध कराने की सरकारी व्यवस्था है इसमें 99 लाभार्थियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने हैं मसलन ₹2 से कम में सरकार कमजोर तबके के बच्चे व महिलाओं को स्वास्थ्य स्वच्छता के माध्यम से उनका किस्मत बदलना चाहती है यह काम सेविका और सहायिका के जरिए पूरा करना चाहती है हालांकि सरकार ने अपनी पिछली योजना में ₹500 के मानदेय राशि बढ़ाकर एक सफल प्रयास भी किया है लेकिन क्या इन 1500 के मानदेय राशि में इस महंगाई में खुद का पेट (सहायिका सेविका का ) भारता हो ऊपर से ऊपर से नीचे तक के लोगों में सरकारी मानदेय पैसे में बंदरबांट की स्थितियां हेराफेरी की शिकायत किसी से छुपी हुई नहीं है केंद्र की स्थापना से लेकर सहायिका व सेविका की बहाली तक होने वाली आपसी मारामारी से इस योजना का आधा अधूरा लाभ भी वास्तविक लोगों के पास नहीं पहुंच पाता है सारा सरकारी पैसे का उपयोग श्रमिक लोगों के पास क्या पहुंच पा रहा है?वहां पंचायती राज में प्राथमिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करना क्या हो पाएगा?
सरकार को इस योजना सफल नजर आ रहा है जबकि जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है!
मीडिया में अक्षर आगनबाड़ी केंद्रों को लेकर चर्चाएं या खबरें आती है जमील स्वास्थ्य केंद्रों पर इतनी अनियमितता -ए होगी तो ग्राम स्तर पर चलाई जा रही स्वास्थ्य मुहैया सफल हो पाएगी?
2 साल पहले सीएजी की ओर से आंगनबाड़ी की गतिविधियों की जांच की गई है उसे बदहाली का पता चलता है बस लाख 60 हजार 153 आंगनबाड़ी स्वास्थ्य केंद्रों में महज 3000 केंद्रों का अभिलेख की गई थी इनके अलावा 104 आंगनबाड़ी केंद्रों का भौतिक सत्यापन किया गया था!
स्वास्थ्य केंद्रों में बहुत ही खामियां पाई गई थी आंगनवाड़ी केंद्र में लक्षित आबादी की भागीदारी ज्यादातर कम होती है! सही कम्युनिकेशन की कमी के कारण भी उन लोगों को स्वास्थ्य केंद्र पर आना कम होता है मानदेय राशि इतनी कम और काम ज्यादा होने के कारण आंगनवाड़ी केंद्रों पर चलाए जा रहे स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता अभियान प्रभावित हो रही है गरीबों पर स्वास्थ्य के चलाए जा रहे हैं अभी आज सिर्फ आंगनबाड़ी केंद्र में जाकर दूर किया जा सकता है!
जरूरत है 1 ग्राम पंचायतों की महिलाओं को शिक्षित करके जागरूक बनाया जाए ताकि वह अपने स्वास्थ और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो पाए!
हालांकि सरकार ने 2000 चिकित्सको,को 5500 ए. एन. एम,300 स्टाफ नर्सों,457 प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधको,20049, आंगनबाड़ी सेविका और 20049 सहायक आंगनबाड़ी सेविकाओं की नियुक्ति की गई है मुफ्त दवा वितरण की व्यवस्था भी की है इसके तहत अस्पतालों में इनडोर और आउटडोर मरीजों के लिए क्रमशः 33 एवं 107 दवाओं की व्यवस्था की गई है!
इसी तरह निजी लोगों की भागीदारी से सरकार ने 134 एक्स-रे इकाइयों और 276 पैथोलॉजी जांच केंद्र की स्थापना की है! यह एक्सरे इकाई और जांच केंद्र राज्य की सभी 38 जिलों में फैले हैं इतने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य क्षेत्र परियोजनाओं को चलाया जा रहा है हालांकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की बढ़ती संख्या देखकर लगता है कि योजना कुछ मायने में सफल भी हो रही है जनवरी 2006 में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जहां मरीज इलाज के लिए आते थे वहीं अक्टूबर 2007 में बढ़कर 4524 हो गई! जिसमें संस्थागत प्रसव, टीकाकरण आदि भी शामिल थे! जहां दिसंबर 2006 में जहां 10,832 महिलाएं संस्थागत प्रसव के लिए आती थी! दिसंबर 2007 में उनकी संख्या बढ़कर 100000 हो गई!
हमारी सरकार ने एक सफल प्रयास किया है उन सभी सरकारी मध्य विद्यालय में बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित जांच करने का निर्णय लिया है इसके लिए नियमित शिविर का आयोजन किया जाएगा जिसमें स्वास्थ्य परीक्षण करके प्रत्येक बच्चे को हेल्थ कार्ड दिया जाएगा जो विद्यालय छात्र स्वास्थ्य परीक्षण योजना के नाम से जाना जाएगा जिसमें सरकार को ₹130000000 खर्च किए जाएंगे! असाध्य रोगों से निपटने तथा मरीजों की सहायता के लिए मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष से उपलब्ध कराई जाएगी! पटना दरभंगा और भागलपुर मेडिकल कॉलेजों एवं हॉस्पिटल में सरकार ने एम.आर.आई मशीन लगाने की स्वीकृति प्रदान की है! इसके अलावा 25.10 करोड़ के अतिरिक्त राशि भी उपलब्ध कराई है सभी जिलों में दो-दो ब्लड बैंक,आई.सी.यू डायलिसिस की सुविधा प्रदान की गई है! पुराने सदर अस्पताल और अनुमंडलीय अस्पताल ओ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों स्वास्थ्य उप केंद्रों के विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं! जिससे किए गए खर्च या पैसा सही जगह पर जा सके पंचायती राज में महिलाएं बच्चों को प्राथमिक स्वास्थ्य विधाएं शिक्षा समानता संरक्षण प्रदान करने उन्नत मानवता के साथ देश का विकास हो सके!
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