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हिजाब:कुरान का पालन या फसाद की तैयारी

हिजाब:कुरान का पालन या फसाद की तैयारी?

प्रो कुसुमलता केडिया

जिन 6 बच्चियों को आगे करके हिज़ाब से शुरू कर मजहब तक की हिफाजत की बात कही जा रही है ,

उनके वास्तविक प्रयोजन और वास्तविक व्यक्तित्व तथा आचरण तीनों को अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है ।

क्योंकि इनके इस आचरण का संबंध जिस तरह से वे पूरे देश में इस विषय पर हल्ला मचाने का दावा कर रही हैं, उसे देखते हुए संपूर्ण राष्ट्र से इसका संबंध है ।।

इसलिए कुछ बातें अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है ।।

पहली बात तो यह देखने की आवश्यकता है कि क्या सचमुच यह इस्लाम पर ईमान ले आती हैं ?

क्या इनको पैगंबर मोहम्मद साहब पर पूरा ईमान है?

क्या वह अल्लाह ताला द्वारा हजरत रसूल जो आखिरी रसूल है ,उन को भेजी गई आयतों यानी दिव्यसंदेशों और बातों पर ईमान ले आती हैं और उसके अनुसार जीवन जीने को संकल्पित है?

या ये यूं ही सड़क पर निकल कर कुछ शोरगुल या कोई हल्ला हुड़दंग किसी खास मकसद से ,किसी विशेष प्रयोजन से करने वाले एक बहुत बड़े तंत्र की एक झलकहैं।

इसके लिए कुछ बातों की जांच आवश्यक है जिन पर हम क्रम से बातें करेंगे

लेकिन सबसे पहले तो एक प्रश्न यह है कि यह यदि सचमुच मुस्लिम हैं ,मोमिन हैं,उन्होंने केवल अपना नाम मुसलमानों जैसा नहीं रखा है बल्कि इनको कुरान शरीफ पर पूरी आस्था है, यह उस पर पूरा ईमान ले आई है और उसमें बताए गए कायदे से जिंदगी जीना चाहती हैं ,

तो फिर यह किस हिसाब से किस आधार पर उस स्कूल में जाने की सोच भी सकती हैं जो सह शिक्षा वाला है यानी लड़कों के साथ लड़कियां पढ़ें। यह तो पूरी तरह इस्लाम के कायदे के बाहर की बात है।

हजरत पैगंबर साहब ने इस बात ki कहीं कोई इजाजत नहीं दी है और ऐसी कोई भी आयत नहीं है जो यह इजाजत देती हो कि लड़कियों को लड़कों के साथ दूर कहीं किसी एक स्कूल में जाकर गैर मजहबी कोई पढ़ाई 1 दिन को भी करें ।

यह तो पूरी तरह नान इस्लामिक है ,गैर मजहबी है ।

किसी भी मोमिन औरत को इजाजत नहीं है कि वह दूर कहीं जाकर गैर मर्दों या लड़कों के साथ गैर मज़हबी बातें साथ साथ पढ़ें।

कुरान के सूरह 4 सूरा अन निसा की 34 वी आयत है कि "अल्लाह ने मर्दो को औरतों का मालिक बनाया है और उन्हें औरतों के मुकाबले आगे रखा है ।

नेक बीवी वह है जो अपने शौहर की आज्ञा का पालन करती है।"

अतः ऐसे में यह सच्चाई सामने आनी चाहिए कि यह लड़कियां इस्लाम के कायदे के अनुसार रहने वाली हैं क्या? क्या यह मर्दों को यानी अपने मर्दो को अपना मालिक मानती हैं ?अभी यह अपने पिता और भाई को अपने से आगे मानती हैं ?और बाद में अपने पति को अपना मालिक मानेगी ?पहले तो यह घोषणा करें ।

क्योंकि अल्लाह ताला ने आखरी पैगंबर के जरिए स्पष्ट कहा हैकि औरतों पर मालिकाना हुकूमत मर्दों को हासिल है और मर्द औरतों से आगे रहेंगे क्योंकि वे आगे रखे गए हैं।

इसलिए सबसे पहले तो यह सड़कों पर जोर शोर से चिल्लाने वाली बहनों को यह घोषित करना चाहिए कि उन्हें आखरी रसूल को अल्लाह ताला के द्वारा भेजे गए संदेश पर पूरा ईमान है और वह अपने पिता भाई और विवाहित होने पर अपने पति को अपना मालिक मानेंगी, उनके संरक्षण में ही काम करेंगी,यह उन्हें घोषणा करनी चाहिए।

तत्कालीन भारत के पारसीक क्षेत्र के रहने वाले इस्लाम के महान दार्शनिक अल गजाली का कहना है कि काबिलियत या योग्यता के 1000 components हैं, इनमें से केवल एक स्त्री को मिला है ,शेष 999 पुरुषों को मिले हैं।

क्योंकि अल्लाह की अवज्ञा के कारण अल्लाह ताला ने स्त्री को अट्ठारह तरीके की सजाएं दी हैं ,जिन में मासिक धर्म ,गर्भधारण ,बच्चा होना ,अपने माता-पिता से बिछड़ना, अजनबी से विवाह होना ,अपने व्यक्तित्व की स्वामिनी स्वयं नहीं होना ,तलाक दिए जा सकने की स्थिति में रहना और स्वयं कभी तलाक दे सकने की स्थिति में नहीं होना आदि आदि 18 प्रकार की सजाएं अल्लाह ताला ने औरतों को दी हैं। एक मर्द एक बार में 4 शादियां कर सकता है और फिर किसी भी प्रकार की उस में अवज्ञा देखने पर किसी को भी तलाक दे सकता है और इस तरह तलाक देने के बाद या तलाक देते हुए , जीवन में अनेक अनेक शादियां कर सकता है।

इसके अतिरिक्त रखैल तो बहुत सी रख सकता है ।

कुरान के सूरह 4 की आयत 34 वी में अल्लाह ताला की ओर से प्राप्त संदेशों को आखिरी रसूल ने इस प्रकार बताया है कि जो औरतें अपने पति की मालकियत ना माने, उनका स्वामित्व ना माने उन्हें पहले तो समझाओ और अगर वह न समझे तो उन्हें मार भी सकते हो और उनको बिस्तर पर अकेली छोड़ दो ।।

क्योंकि नेक बीवियां तो वही हैं जो पति का हुकुम मानती है ,आज्ञा पालन करने वाली होती हैं और अगर पति की कोई गुप्त या कमजोरी की बातें हो तो उन्हें किसी से नहीं कहतीं।

इस प्रकार स्त्री सदा पुरुष के अधीन है और अगर वह अधीनता ठीक से नहीं मानती तो उसे मारा भी जा सकता है ।यहकुरान का आदेश है।

अब स्थिति यह है कि प्रदर्शन करने वाली जो मुस्लिम बहनें हैं उनके साथ एक बड़ी विचित्र समस्या यह है कि वह भारत के संविधान की भी दुआएं देती हैं ,,,,फिर इस्लाम की भी दुआएं देती हैं ,फिर अपने को कम्युनिस्ट या सोशलिस्ट भी कहती हैं, इंकलाब के नारे लगाती हैं,,पर इंकलाब जिंदाबाद तो कम्युनिस्टों का नारा है तो यह तो मोमिन का नहीं मुनाफिकीन का लक्षणहै। अगर आपको मजहब का हुकुम पालना है तो आप सच्चे मोमिन की तरह पूरी तरह मजहबी कायदे कानूनों का पालन कीजिए। अगर आपको संविधान में श्रद्धा है तो संविधान का पालन कीजिए ।

आप एक साथ दोनों दावे कैसे कर सकते हैं?

संविधान तो पति और पत्नी को, स्त्री और पुरुष को बराबरी का हुक्म देता है और कुरान कहती है कि पुरुषों को औरतों पर हुकूमत हासिल है और वह उनकी आज्ञा पालन करें ,यह अल्लाह का आदेश है और अगर वे आज्ञा पालन नहीं करती तो पति उन्हें मार भी सकता है भारतीय संविधान के अनुसार एक तो यह संज्ञेय अपराध होगा।

तो आप संविधान को मानती हैं या कुरान को ? अपने आचरण के विषय में आप किस आदर्श से चलती हैं,यह तो आपको तय करना होगा।

क्योंकि इस्लाम पर पूरा ईमान लाना है तो खुद औरत के विषय में उसमें जो कुछ कहा गया है, उसे तो मानना ही पड़ेगा।

तो कुरान के अनुसार तो औरत का जो पर्सन है, व्यक्तित्व है ,वह पुरुष के अधीन है। यहां तक कि औरत की गवाही भी पुरुष की गवाही के बराबर नहीं। दो औरतों की गवाही एक पुरुष गवाही के बराबर है।

और कहीं भी औरत को शासक या शीर्ष अधिकारी या जुडिशल अफसर जिन्हें इन दिनों जज कहते हैं ,यह होने का तो कोई प्रावधान इस्लाम में नहीं है ।इस्लाम तो यह नहीं कहता कि स्त्रियां पुरुषों पर शासन कर सकती हैं। इसलिए चाहे वह नूरजहां या मुमताज महल रही हो या वर्तमान समय में बेनजीर भुट्टो हों,महबूबा मुफ्ती हों,या स्वयं ममता बनर्जी जो कुरान का पाठ करती है और नमाज पढ़ती देखी जाती हैं,कुरान को प्रमाण मानती हैं तो उन्हें पुरु…

मुख्य बात यह है कि औरत का जो person है, उसके विषय में इस्लाम बहुत स्पष्ट है।यहां तक कि स्वयं इस "औरत" शब्द का भी इस्लाम में जो अर्थ है, वह समझना चाहिए ।
अरबी में अवरात शब्द है और उर्दू में औरत। जिसका सुनिश्चित और स्पष्ट अर्थ है pudenda या vagina या vulva या woman's external genitals जिसे हिंदी में योनि कहते हैं, तो औरत को योनि की ही संज्ञा दी गई है इस्लाम में और उसको संबोधन योनि का ही दिया गया है। मेरी अब आयु पर्याप्त हो गई है इसलिए मुझे यह आवश्यक लगा कि खरी खरी बातें कह सकूँ। जानती तो बहुत पहले से थी परंतु कम आयु में यह शब्द मुंह में ही नहीं आते ।परंतु सत्य की प्रतिष्ठा के लिए तो थोड़ी हिम्मत करनी होगी ।

यहां तक कि जो निकाह है ,वह इसी pundenda, इसी योनि का आनंद लेने के लिए है ,यह बहुत स्पष्ट है और इसीलिए अगर विवाह विच्छेद होता है तो जो मेहर की रकम दी जाती है ,उसके लिए इसमें कहा गया है कि यह जो स्त्री की योनि है ,जिसे औरत कहते हैं ,उसके भोग का, उसके साथ समागम का ,उसके साथ आनंद लेने का किराया है ,उजुरत है।यह साफ-साफ कहा है।सूरा4 की24वीं आयत औऱ सूरा33 की 50 वीं आयत यह निर्देश देती है ।

चाचा की बेटियां हो या खाला की बेटियां हो या मामू जान की बेटियां हो ,उनमें से किसी से भी निकाह किया जा सकता है और तलाक होने पर इसी औरत यानी pudenda से प्राप्त आनंद के किराए के रूप में मेहर की रकम दी जाती है।क्योंकि औरतें मर्दों की खेतियाँ हैं ,जितने बार चाहो, भोग करो, यह मर्द का हक़ है और विरोध करने वाली को मारने-पीटने का भी हक़ है।तो क्या हमारे न्यायालय2प्रकार की स्त्रियोँ का वर्ग या श्रेणी बनाएंगे?एक वह जो पति के मिलन के आग्रह को घरेलू हिंसा कहकर अस्वीकार कर सकती है और पति को दण्डित करा सकती है, दूसरी वह औरत जो खसम द्वारा समागम के लिए पीटी जा सकती है और जिसकी कुल पहचान ही pudenda है और वह उसका किराया लेती है और शौहर को मना नहीं कर सकती वरना पीटी जाएगी क्योंकि वह मुस्लिम है?स्त्री का ऐसा अपमान, तिरस्कार, अवमूल्यन? मन काँप उठता है यह पढ़कर ही।

तो यह है औरत का person इस्लाम में ।

क्या इसे भी वे लोग मानती हैं जो इस तरह सड़कों पर निकल रही हैं ?

और क्या कहीं भी इस्लाम में यह कहा गया है कि औरतें ,बाहरी मर्दों के सामने, अपने घर के बाहर के लोगों के सामने खुले मुंह इस तरह सड़कों पर निकले और नारे लगाए , जलसा जुलूस करें, शासन के विषय में परामर्श दें, शासन को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, यह बताएं ?

कुरान की किस आयत में औरत को यह हक दिया गया है ?किस आधार पर यह औरतें खुले मुंह सड़क में दौड़ती घूमती है और फिर हिजाब के नाम पर हिंदुस्तान को हिला देने की बात कह रही हैं,?

यह किसी भी तरह मोमिन तो नहीं हो सकती।

इस्लाम के लिए तो यह न जी रही हैं ,ना उसके लिए काम कर रही हैं ।यह स्पष्ट है।क्योंकि ये इस्लाम में ईमान नही लातीं।ये कुरान के निर्देशों पर नही चलतीं।

तो फिर यह किसके लिए काम कर रही हैं ?

इस बात की जांच होनी चाहिए।

क्या यह आतंकवादियों को cover देने के लिए काम कर रही हैं कि जिससे आतंकवादी कहीं भी हिजाब के नाम पर मुंह ढक कर जाए ,आंखों में चश्मा भी लगा ले ताकि पहचाने नहीं जा सके।

यदि कहीं जाए तो उनकी जांच नहीं होगी। उन्होंने परमाणु बम या कोई अस्त्र छुपा रखा है या कंप्यूटर या नक्शा या कोई घातक हथियार छुपा रखी है या कोई खतरनाक वस्तु छुपा रखी है। कल को उसकी जांच पर भी आपत्ति करेंगे कि पराया मर्द औरत को हाथ नहीं लगा सकता और आप बहुत बड़ी भीड़ बनाकर जगह-जगह दौड़ेंगे, सड़कों में बलवा करेंगे ,फसाद करेंगे ।

इसका तो इस्लाम से कोई रिश्ता नहीं दिखता ।

यहतो स्थापित सत्ता को ,हुकूमत को पलटने की कोशिश बलवा के द्वारा की जाती दिखती है ।इसके लिए तो इस्लाम में सजा-ए-मौत है।

तो क्या आप इसे स्वीकार करेंगे ?

और स्त्रियों को इस तरह सड़कों पर निकल कर शासन से मांग करना और शासन को बताना कि वह क्या करें ,क्या नहीं करें ,यह इस्लाम के किसी भी प्रावधान के अनुसार जायज नही है।

अतः ये इस्लाम के लिए तो काम नहीं कर रही हैं।

इनका कोई अन्य प्रयोजन है ।यह किसी अन्य के लिए काम कर रही हैं। यह बहुत स्पष्ट है।
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