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श्रद्धा पूर्वक याद किए गए महाप्राण निराला और जानकी वल्लभ शास्त्री

श्रद्धा पूर्वक याद किए गए महाप्राण निराला और जानकी वल्लभ शास्त्री

औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन सह समकालीन जवाबदेही परिवार के संयुक्त तत्वावधान में शहर के महाराणा प्रताप नगर स्थित सीतयोग इंजीनियरिंग कॉलेज के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष राजेंद्र पाठक के आवास पर छायावाद के दो स्तंभों सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा जानकी बल्लभ शास्त्री के जन्मदिवस पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। उक्त संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र तथा संचालन धनंजय जयपुरी ने किया। प्रारंभ में दोनों विभूतियों के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर उपस्थित साहित्यानुरागियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्तव्य की ऑनलाइन शुरुआत करते हुए मुंगेर विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति आर के वर्मा ने कहा कि छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक निराला जी की काव्य-कला की सबसे बड़ी विशेषता उनका चित्रण-कौशल है। उनकी अधिकाधिक कविताओं में दार्शनिक गहराइयां दृष्टिगत होती हैं, जिसे न समझ पाने के कारण विचारक उनपर दुरुहता का आरोप लगाते हैं। डॉक्टर वर्मा के ऑनलाइन वक्तव्य के बाद ऑफलाइन वक्तव्य की शुरुआत हुई।
शिव नारायण सिंह ने कहा की औरंगाबाद की धरती को मैं बड़भागी मानता हूं जहां शास्त्री जी जैसे महान विभूति ने अपनी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की थी।
संचालन के क्रम में धनंजय जयपुरी ने कहा कि शास्त्री जी की अधिकतर कविताएं अनुभूति परक हैं। समाज एवं राजनीति की आड़ में अनैतिकता बरतने वाले लोगों को आईना दिखाते हुए शास्त्री जी ने कहा- "कुपथ-कुपथ रथ दौड़ाता जो पथ निर्देशक वह है। लाज लजाती जिसकी कृति से धृति उपदेशक वह है।"
गुप्तेश्वर पाठक तथा अधिवक्ता योगेश मिश्र ने कहा कि शास्त्री जी ने साहित्य की कई विधाओं जैसे कविता, गीत, नाटक, कहानी, संस्मरण, समीक्षा और आलोचना आदि पर अपनी लेखनी चलाई। शास्त्री जी की लेखनी को शब्दों पर जबरदस्त पकड़ थी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि मूलत संस्कृत और साहित्य के आचार्य रहे शास्त्री जी अंग्रेजी बांग्ला तथा हिंदी के भी विद्वान थे। उनकी दार्शनिकता तथा उनकी जीवनशैली वैदिक ऋषि- परंपरा की याद दिलाती है। अपने विस्तृत साहित्यिक जीवन में सकारात्मकता की अनुभूति कराते हुए शास्त्री जी ने लिखा-"तीखे कांटो को फूलों का श्रृंगार बना दो तो जानूं। ठहरे गहरे सन्नाटे को झंकार बना दो तो जानूं।।
पुरुषोत्तम पाठक तथा सिद्धेश्वर विद्यार्थी ने कहा कि शास्त्री जी जन-जन की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझते थे। सरकार के नुमाइंदों के मन-मानस में घर कर गई भ्रष्टाचार पर कुठाराघात करते हुए उन्होंने लिखा कि- "ऊपर ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं, कहते ऐसे ही जीते हैं जो जीने वाले हैं।"
अंत में आयोजक राजेंद्र पाठक ने उपस्थित विद्वानों के वक्तव्यों का समर्थन करते हुए तथा उनके द्वारा दिए गए बहुमूल्य विचारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए सबका धन्यवाद ज्ञापन किया।उक्त संगोष्ठी में चंदन कुमार पाठक, अनिल कुमार सिंह, अनुज बेचैन इत्यादि ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किए।
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