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सरस्वती पूजा का पर्व है बसन्त पंचमी

सरस्वती पूजा का पर्व है बसन्त पंचमी

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बसन्त उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी, मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसन्त ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास बसन्त ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसन्त में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं। अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
बसन्त पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को अर्पित ज्ञान का त्योहार है। इस दिन पूरे देश में विद्या की देवी माँ सरस्वती की बड़े उल्लास के साथ पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का रिवाज चल पड़ा है।
बसन्त पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। बसन्त ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है।
भारत में पतझड़ ऋतु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगें फूल खिले दिखाई देते हैं। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं जिन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इसीलिये वसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदलते मौसम ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है।
ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है। बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
सभी शुभ कार्यों के लिए बसन्त पंचमी के दिन अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। बसन्त पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। इसलिए प्राचीन काल से बसन्त पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है।
चूंकि बसन्त पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है, अतः इस पर्व का स्वतः ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियों से अति विशिष्ट महत्व परिलक्षित होता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के कहने पर सृष्टि की रचना की थी। एक दिन वह अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए। ब्रह्मा जी को अपनी बनाई सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था। लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है। उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे। तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है। वह सोचने लगे कि ऐसा क्या किया जाए कि सभी बोले और खुशी में झूमें। ऐसा विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर कमल पुष्पों तथा धरती पर छिड़का। जल छिडकने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई। इस देवी के चार हाथ थे। एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी।
ब्रह्मा जी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी। सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूज्यनीय होगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी सरस्वती के नाम से जाना जाएगा। ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती को वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे द्वारा समाज का कल्याण होगा इसलिए समाज में रहने वाले लोग तुम्हारा पूजन करेगें।
कडकड़ाती ठंड के बाद बसंत ऋतु में प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है। मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। देश के कई स्थानो पर पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो बसंत पंचमी के दिन से ही लोग समूह में एकत्रित होकर रात में चंग ढफ बजाकर धमाल गाकर होली के पर्व का शुभारम्भ करते है। बसन्त पंचमी के दिन विद्यालयों में भी देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। भारत के पूर्वी प्रांतों में घरों में भी विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है और वसन्त पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद अगले दिन मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना विशेष रूप से करते हैं। विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने संगीत उपकरणांे और बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं। (हिफी)
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