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ए बाबू का कहूँ(मगही कविता )

21 फरवरी मातृभाषा दिवस के अवसर पर (मगही कविता )

ए बाबू का कहूँ(मगही कविता )

डॉ विजय प्रकाश शर्मा

सूतवे अझूराए गेल
गाँधी के आंधी में
देशवा बँटाय गेल
नेहरू के चक्कर में
चरखा बेंचाय गेल
ए बाबू का कहूँ
सूतवे अझुराय गेल।
इंदिरा के जाल में
गरीबी पसराय गेल
सरदारजी अयलन तो
बोलिये हेराय गेल
ए बाबू का कहूँ
सूतवे अझुराय गेल।
रात -दिन रोव ही
पुरान कपडा धोव ही
चिरकूट अब बचल हे
ओकरे संजोव ही
अइसन बिहान भेल
छठी मैया रूठ गेल
अरग अब देब कहाँ
पोखरा भसाय गेल
ए बाबू का कहूँ
सूतवे अझुराय गेल।
नया सरकार आएल
घर घर खुसी छाएल
असरा भरोसा देलक
सपना भी खूब देखवलक
ए बाबू का कहीं
अब सपनवें सेराय गेल
ए बाबू का कहींसूतवे अझुराय गेल।
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