21 फरवरी मातृभाषा दिवस के अवसर पर (मगही कविता )
ए बाबू का कहूँ(मगही कविता )
डॉ विजय प्रकाश शर्मा
सूतवे अझूराए गेल
गाँधी के आंधी में
देशवा बँटाय गेल
नेहरू के चक्कर में
चरखा बेंचाय गेल
ए बाबू का कहूँ
सूतवे अझुराय गेल।
इंदिरा के जाल में
गरीबी पसराय गेल
सरदारजी अयलन तो
बोलिये हेराय गेल
ए बाबू का कहूँ
सूतवे अझुराय गेल।
रात -दिन रोव ही
पुरान कपडा धोव ही
चिरकूट अब बचल हे
ओकरे संजोव ही
अइसन बिहान भेल
छठी मैया रूठ गेल
अरग अब देब कहाँ
पोखरा भसाय गेल
ए बाबू का कहूँ
सूतवे अझुराय गेल।
नया सरकार आएल
घर घर खुसी छाएल
असरा भरोसा देलक
सपना भी खूब देखवलक
ए बाबू का कहीं
अब सपनवें सेराय गेल
ए बाबू का कहींसूतवे अझुराय गेल।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com