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वसंती हवा

वसंती हवा 

सत्येन्द्र कुमार पाठक
प्रकृति की श्रंगार में  वसंत बहार , 
खुशी मनव  संगवारी खूब श्रृंगार ।
सुंदर मौसम में मन मोहन महर महर , 
आम्र पर बैठा कु कु करता कोइल हर ।
मधुर गीत सुनता मधु टपकाता है । 
वसंत  खुशी में मन को झुमाता  है ।
विश्व को आगोस में  करता विभोर 
 नीक ऋतु वसंत के   वसंत बहार ।
हरा भरा खेत में विहँस करता खार , 
फुलवारी  में नीक लगा है  छाँव हर ।
धरती पर खुशियाली में  खुशी अपार  ,
किस्म किस्म का के फूल फूले अपार ।
वासंती हवा हूँ , जिधर चलती हूँ , 
प्रकृति मन को मद मस्त करती हूं ।
माँ की ममता 
 माँ की ममता जग में महान है , 
माँ से ऊँचा कोई  नहीं पता है ।          
 सन्तति हेतु सहती अपार कष्ट और  गम , 
 नही लाती  मन में केवल  सेवा भाव मम् ।   
सम्हाल्  होश मन  में हुआ कर्तव्य का  बोध ,
,मन  में हीन और दीनता नहीं हुआ संकोच ।
 माता की आँचल में स्वर्ग की छाया रहता है , 
जीवन में उल्लास एवं विश्वास हमें मिलता है । 
पुत्र कुपुत्र परंतु माता कुमाता कभी नही बनती , 
हर्ष , खुशी , दुःख, कठिनाई में  हमेशा रहती ।
माता की ममता और आँचल की छाया साथ है,
मां की ऊँचाई को को पुत्र  प्राप्त नहीं करता है ।
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
करपी , अरवल , बिहार
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