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वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं की भूमिका:-विभा सिंह

वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं की भूमिका :-विभा सिंह

भारतीय समाज में नारी को नारायणी और शक्ति स्वरूपा कहा जाता है. उसकी पूजा सदियों से कर रहे हैं लेकिन आज के वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं की भूमिका बदला है आज की परिदृश्य की बात करे तो संघर्ष और आंदोलन के बाद भी आज की महिला ने अपना वह वजूद कायम करने मै असमर्थ है!जिसे शक्ति का पर्याय माना जाता है!आज जमीन नहीं चांद तक छू आई है,सागर ही नहीं चांद की दूरी तय कराई है,आसान नहीं था,आज क्षेत्र कोई भी है सभी जगह महिलाओं ने अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज की है आजादी के 75thसाल होने के बाद भी महिलाएं कई ऐसे कार्य किए हैं जिसे गर्व के साथ हमारा सिर ऊपर उठ जाता है l आज की महिलाओं ने मध्ययुगीन रूढ़िवादी श्रृंखलाओ को तोड़कर अपनी स्त्री शक्ति का परिचय दिया है.
आजादी के 75 वे वर्ष होने के बाद भी क्या नारी की सशक्तिकरण के आईने में आज भी स्त्रियों को स्वतंत्र अस्तित्व धुंधला नजर नहीं आता? सफल और आर्थिक रूप से संबल महिला समाज के उदाहरण बन कर सामने आई है? क्या स्वीकारोक्ति आज भी पूरी हुई है?
आज भी सामाजिक स्तर, आर्थिक स्तर हो या राजनीति का स्तर मुद्दा चाहे जो भी हो आज भी समाजीकरण के ढांचे में एक साधारण महिला को स्वयं को एक आवश्यक स्थान दिलाने की जद्दोजहद में कठिन परिस्थितियों के साथ सदैव अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए पूर्व से अधिक परिश्रम करना पड़ता है l
महिलाओं के लिए सरकार की तरफ से एनजीओ चलाए जा रहे हैं कितनी योजनाएं काम कर रही है बिहार में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया है नित्य नई की कितने मुद्दे उठा ले जाते हैं लेकिन क्या आज महिलाएं को सफल बनाने के सभी कार्यरत योजना सफल हो रही है? जैसे बालिका साक्षरता प्रौढ़ महिला साक्षरता आदि कहां तक सफल हुआ है या यह विचारणीय प्रश्न है एक आंकड़े के अनुसार पहले की अपेक्षा महिलाओं में साक्षरता की दरें में वृद्धि हुई है?64.84% महिलाएं साक्षर हुई है. लेकिन वास्तविक स्थिति इतना स्पष्ट है?
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने शिक्षा पर चिंता बताते हुए कहा था कि समाज में सर्वागीण विकास के लिए महिलाओं के साथ शिक्षा का बढ़ावा देना आवश्यक है और इस पर विशेष प्राथमिकता देने की आवश्यकता है लेकिन उन्होंने यह बात भी सही कहा कि एक दशक के उपरांत महिलाओं की साक्षरता दर बड़ा है परंतु 6 4.84% महिलाओं में साक्षरता दरें बढ़ने के बावजूद भी सार्थक महिला और पुरुषों में काफी अंतर है ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो साक्षरता दर में अंतर और भी ज्यादा है महिला एवं पूर्व बाल विकास राज्य मंत्री केंद्रीय श्रीमती रेणुका चौधरी ने भी चिंता जताई थी,श्रीमती रेणुका चौधरी ने महिलाओं के अधिकारों के लिए आप अपने वक्तव्य में कहा है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों से लागू करने के लिए आवश्यक प्रशासनिक कार्यवाही सुनिश्चित करने का आग्रह किया इस पर ठोस कार्रवाई करने को कहा लेकिन ठोस कार्रवाई करेगा कौन?
महिला उत्पीड़न रोकने के लिए सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के साथ महिला शोषण से निजात दिलाने के लिए जाने कितने अधिनियम बनाए गए हैं जिसमें प्रमुखता से बाल विवाह निरोध अधिनियम उन्नीस सौ 54 हिंदू विवाह अधिनियम 1955 बाल मजदूर अधिनियम 1981 दहेज निषेध अधिनियम 1961 महिलाओं की अश्लीलता प्रस्तुतीकरण निवारण अधिनियम 1986 घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 जो 26 अक्टूबर 2006 दिन बृहस्पतिवार से प्रभावी हुआ आदि कितने अधिनियम लागू होने के बावजूद महिलाओं के उत्पीड़न में कभी ना होकर प्रतिदिन हिंसात्मक रूप में सकारात्मक रूप सामने आती है?इसका प्रमुख कारण है सभी अधिनियमओ के सम्यक ढंग से क्रियान्वयन ना होना और आम लोगों द्वारा कानून की मर्यादाओं का पालन अच्छे ढंग से ना किया जाना,साथ ही किसी अधिनियम के निर्देश पर करवाई एवं ईमानदारी पूर्वक पालन ना होना हालांकि पहले की अपेक्षा महिलाएं जागरूक हुई है लेकिन उनको अपने अधिकारों की प्रतिबद्धता का समय आसान नहीं है l वही नियम तोड़ते नजर आते हैं जिन्होंने नियमावली में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैंl
कानून बाल विवाह अपराध है लेकिन आज भी देश व राज्य के प्रत्येक हिस्से में लड़कियों को छोटी उम्र में वैवाहिक बंधन में बांधे नहीं जाते माना कि कानून महिलाओं का संरक्षण देती है लेकिन महिलाओं को संरक्षण का लाभ कितने को मिल पाता है?
राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष गिरिराज व्यास कहती है कि महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं की अपने हक के लिए लड़ना होगा लेकिन अपने हक के लिए लड़ाई लड़ेगा कौन पारिवारिक संस्कारगत या व्यवसायिक संस्थागत शिक्षा ?
नित्य नई सफलता की ऊंचाई पर पहुंचे समाज में आज भी दहेज हत्या व कन्या भ्रूण हत्या आम हो गई है 31 मार्च 2005 तक 303 मामले भ्रूण हत्या को सामने आए थे यह सिर्फ आंखें भर है हकीकत के घर में ना जाने कितनी मासूम ने दम तोड़ तोड़ती है महिला जनसंख्या 2001 तक पुरुष का 43,155,964 और महिला 39,724,832 है आंकड़े के अनुसार एक महिला चाय कितनी ऊंचाइयों को छुए लेकिन महिला होने का टिस उसको हमेशा खाता है.
अतः स्पष्ट है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक है नारी सशक्तिकरण के नारे और नियमावली से कहीं ज्यादा आवश्यक है जमीनी स्तर पर महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास किया जाना जब सामाजिक विकलांगता ओं का पंगु बना रही सोच में अगर परिवर्तन हो जाए तो नारी सशक्तिकरण के मार्ग स्वयं खुलते नजर आएंगे क्योंकि महिला उत्पीड़न रोकने की बात करने वाले लोग ही एक बेबस महिला को रबड़ स्टैंप बनाकर उसका उपयोग कर रहे कर रहे हैं आज पुरुष को जन्म देने वाली जननी न गर्भ में सुरक्षित है ना संसार में समस्याओं के दलदल में धकेलने वाला पुरुष और महिला,महिलाओं के सशक्तिकरण के नारा लगा रहे है जबकि प्रत्येक समाज में महिलाओं की समस्या हर जगह हर परिस्थितियों के अनुसार सामने आता है आज विकास की गतिशील समाज में आज भी ग्रामीण क्षेत्र में खुले मैदान में शौच करने के लिए मजबूर है कितनी कम उम्र की लड़कियां जी ने लिखने पढ़ने खेलने कूदने की उम्र में परिवार की जिम्मेदारी निभा रही है l पिछले वर्षों में बलात्कार छेड़छाड़ पर अश्लीलता प्रदर्शन यौन शोषण अपराध दहेज हत्या के मामले में वृद्धि हुई है सभी योजनाओं को सफल तभी बनाया जा सकता है l महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा की वारदातों के मूल्यांकन करने की जरूरत है कारक तत्व नेक है और इन के विविध आयाम भी सभी अधिनियम को अवहेलना करने वाले लोग चाहे किसी समाज का हो उसको सख्ती से पालन कर कर ले कर के उस व्यक्ति को सख्त सजा देने के प्रावधान होना आवश्यक है

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