अरे जरा ग़ौर फरमाइए
अरे न जाने कब किसी एक
गुमनाम साहित्यकार कि कविता
हजारों दिलों को अपना बेबाक
गुलाम बनाए।।
न जाने कब एक गुमनाम शायर
एक कविता के माध्यम से ही
सुनो विश्व में छाए।।
मानती हूं, पढ़ती हूं, समझती हूं
उनकी दूजी कविता में इतना
सच में न दम समाए।।
पर ये जनता जनार्दन है यारों
एक कविता के माध्यम से ही
किसी धूंध में छुप कवि को
पलकों पर बिठाए।।
एसे अनेकों उदाहरण सच हम
इस ब्रम्हांड में खूब थे पाए
काल, कालांतर तक शायद आज भी,
अभी भी यही होता चला आए।।
अरे जरा ग़ौर फरमाइए।।2।।
अपने सामान्य जज़्बात ही सजा
अपने दिलों कि आंतरिक प्रसन्नता
के लिए बस नगम़े लिख खुद कि
खुशी के लिए गुनगुनाइए।।
न जाने आप में से या हम में से
किसको जनता पलकों पर बिठा दे
बस कलम चला मुस्कुराइए।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews
https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com