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वे हमें अपना चारा समझने लगे

वे हमें अपना चारा समझने लगे

जबसे हमने उन्हें भाई,बहन माना,
वे हमें अपना चारा समझने लगे,
हमने पिलाया उन्हें अपने हिस्से का दूध,
वे अब हमसे हीं लडऩे,झगड़ने लगे।
    जबसे हमने उन्हें...।

समझते हैं वे खुद को पाक-साफ,
आकर मेरे घर को  नापाक करने लगे,
उस मालिक ने पढ़ाया अहिंसा का पाठ,
पर वे सबसे दंगा-फसाद करने लगे।
     जबसे हमने उन्हें...।

नहीं पता उन्हें मानवता,धर्म का अर्थ,
वे असत्य,हिंसा को धर्म  समझने लगे,
कभी दी थी उन्हें अपने घर में पनाह,
अब वे हमारे धर को अपना घर समझने लगे।
     जबसे हमने उन्हें...।

वे समझते हैं खूद को दुनियाँ में सर्वश्रेष्ठ,
दुसरों को काफिर,जाहिल कहने  लगे,
करते हैं वे  नारियों, निहत्थे पर सितम,
अब अपने आपको वे शेर समझने लगे।
     जबसे हमने उन्हें...।

नहीं दिखता उनमें इंसानियत-भाईचारा,
खूद को ये हत्यारा साबित करने लगे,
तबाह है दुनियाँ इनकी  कट्टरता से,
उपरवाला भी खूद को गुनाहगार समझने लगे।
     जबसे हमने उन्हें...।

कौन देगा इन्हें अपने गाँव,धर में पनाह,
पनाहगार पर हीं अब खंजर करने लगे,
नहीं पता इन्हें क्या होता है मानव धर्म,
अपनी जाहिलपन को  धर्म समझने लगे।
     जबसे हमने उन्हें...।
            --------0-------
            अरविन्द अकेला
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