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स्नेह समर्पण त्याग की मूर्त है माँ

स्नेह समर्पण त्याग की मूर्त है माँ

रमाकांत सोनी नवलगढ़
माँ शब्द की व्याख्या अनंत है, अनादि है, जिस दिन से उत्पति का बीज पड़ा जीवन वहां से शुरू हुआ, ये अन्तहीन है क्योंकी माँ शब्द सृष्टि के सृजन का धोतक है जब तक जहां तक सृष्टि है हम है, आप है, जीवन है, धरा है, आसमां है, चाँद है, तारे है, तब तक माँ है जो हम चलता फिरता देखते है वो सब नजारा माँ शब्द से है। माँ शब्द की व्याख्या वैज्ञानिकों ने दार्षनिक दृष्टि से वेद, उपनिषदों में धर्म गुरूओं ने सबने अपने अपने मानदण्डो मंें की है। जैसे की जीसस ने कहा था कि ईष्वर हर जगह मौजूद नहीं हो सकता इसलिये उसने एक माँ बनाई.............
साहित्यकार कहता है कि स्नेह समर्पण त्याग की मूर्त है माँ, सागर की गहराई है माँ सारी जन्नत तेरे कदमों में है माँ। कहते है कि कला की दूनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा कि उन लोरियों में होता था जो माएं गाया करती थी। वेद, उपनिषद कहते है कि माँ का ऋण उसकी संतति उतार ही नहीं सकती। माता पिता और गुरू को देवों के समतुल्य माना गया हैं और इन सभी में माँ का स्थान सर्वोपरि है। हजरत मोहम्मद साहब ने माँ के पैरो तले जन्नत बताया है। सम्पूर्ण जगत में मातृत्व की शान है माँ। मातृत्व से बड़ा इस जगत में कुछ भी नहीं है जो ममता स,े ममत्व से, वात्सल्य से लबरेज है जो सम्पूर्ण जगत की नारी जाति को गौरवान्वित कर समस्त देवों से ऊपर देवी का दर्जा दिलाता है। हर स्त्री जाति म,ें हर उम्र में मातृत्व का अंष रहता है और वही अंष उसमें दया, सहिष्णुता, क्षमा, स्नेह, विनम्रता, गहनता, उदारता, सहनषीलता, धैर्य, समर्पण जैसे गुणों को प्रेरित कर दिग्विजयी बनाता है। इसलिये सृृष्टि सिर्फ और सिर्फ माँ के बूते की बात है।
जब जब अपने बच्चों की कष्ती सैलाब में आती है उन्हे माँ की दुआओं की याद आती है। माँ जननी है जीवन भी और जीवन मूल्य भी। जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है जीवन मूल्यों से चरित्र का निर्माण ।अब्राहम लिंकन ने कहा था मै जो भी हैूं या होने की आषा रखता हैूं उसका श्रेय मेरी माँ को जाता है।
जन्म या जीवन देना ही सिर्फ मातृत्व को पूर्ण नहीं करता वरन पूरी करती है ममता। इसलिये कहते है कि सिर्फ जन्म देने वाली ही माँ नहीं होती है वरन जो वात्सल्य से सराबोर होकर बच्चों का पालन पोषण करती है सही मायने में वही माँ होती है। मातृभूमि मातृभाषा सदैव पूजनीय है क्योंकी इनकी ममता की छांव से हमारा अस्तित्व और पहचान है। माँ चाहे जन्मदात्री हो, दायी मा,ँ गुरू माँ हो, धरती माँ हो उसमें एक प्रेम का नाता होता हैं, ये वो शक्ति है जो खुद में यकीन करना सिखाती है। इन्सान को जो रूप, जो आकार परिवार को देष को समाज को संस्कृति को मिलता है वो रूप सिर्फ माँ ने ही हमें दिया है।
अपनी ममता का इतना विस्तार करो कि सम्पूर्ण मानवता तुझमें ही माँ का रूप ढूंढे । हर बच्चा तुझमें मदर टेरेसा का चेहरा तलाष करे। यदि सारे देषों की माताएं एक साथ मिलती तो शायद कभी युद्व होते ही नहीं। माताएं कभी सरहद नहीं देखती, कभी जाति धर्म नहीं देखती, इनकी दुआएं सदा अपने पुत्रों के लिये अमन चैन की कामना करती है।
सामाजिक परिवेष में जहां पांष्चात्य संस्कृति का प्रभाव आज नारी को अपने कैरियर को बेहतर बनाने में रूकावट पैदा करता है। कुछ सामाजिक समस्याएं जो एक माँ के सामने चुनौति बनकर खड़ी है। विज्ञान की तरक्की से उपजा सैरोगेट मदर शब्द आज की आवष्यकता है।
पुराने जमाने की चुल्हा चैका वाली माँ आज के जमाने की आधुनिक माँ कैरियर मदर के रूप में है। पुराने जमाने की माएं त्याग बलिदान की मूर्ति होती थी और आज की मांए स्वकेन्द्रित है, सरासर निराधार व निरर्थक है। आज की नारी षिक्षा की लौ के माध्यम से सषक्त हुई है और वह अपने दायित्वों का निर्वाह बखूबी निभा रही है। वह सक्षम माँ के रूप में अपनी भूमिका को नये ढंग से परिभाषित कर रही है। स्त्री जीवन देती है पुरूष अर्थ देता है जैसी प्राचीन सोच अब खंडित हो रही है क्योंकी अब नारी पुरूष के साथ कंधे से कंघा मिलाकर आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और भावात्मक तरक्की कर साबित कर अपने जीवन को सार्थक बना रही है। देष व समाज को नारी ने एक नया आयाम दिया है। एक माँ को परिभाषित करना इतना सरल नहीं है क्योंकी माँ की संवेदनाएं न तो सिमटी होती है और न ही सीमित है।
माँ आज की हो या प्राचीन जमाने की हो माँ तो बस माँ होती है जो हर युग में हर काल में केवल ममता लुटाती है। माँ की प्राथमिकता उसके बच्चे होते है ईष्वर ने उसकी शक्ति और सामथ्र्य को इतना सुदृढ़ बनाया है कि वो घर परिवार देष व समाज में अपनी जिम्मेदारी पूर्णता से निभा रही है।
कवि ने कहा है कि
जिगर के है सभी टूकड़े बड़ा छोटा नहीं होता, सभी नायाब है हीरे खरा खोटा नहीं होता
खुदा ने परवरिष खातिर नियामत इस कदर बक्षी, मां की मोहब्बत में कभी टोटा नहीं होता 
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