स्वयमेव एवं बोधिसत्व के माध्यम से अमरत्व प्राप्त किया मिथिलेश मधुकर ने
कर्मा रोड के भास्कर नगर स्थित चित्रा समाज कल्याण केंद्र के कार्यालय में एक शोक-सभा आयोजित की गई जिसमें औरंगाबाद के दिनकर के नाम से सुख्यात दिवंगत मिथिलेश मधुकर के असामयिक निधन पर शहर के बुद्धिजीवियों द्वारा गहरी शोक- संवेदना प्रकट की गई। उक्त सभा की अध्यक्षता पंडित राम लखन मिश्र तथा संचालन धनंजय जयपुरी ने किया।
सर्वप्रथम समुपस्थित लोगों द्वारा स्मृतिशेष मधुकर जी के छाया चित्र पर पुष्प अर्पित किया गया, तदुपरांत उक्त व्यक्तियों द्वारा अपनी-अपनी संवेदनाएं व्यक्त की गई। संस्था के सचिव राम नरेश मिश्र ने कहा कि मधुकर जी बड़े ही सहनशील, शांत एवं लगन के पक्के व्यक्ति थे। वे जिस काम को ठान लेते, पूरा करके ही दम लेते थे। निकट भविष्य में उनकी क्षतिपूर्ति होना असंभव सा दिखता है। संचालन के क्रम में धनंजय जयपुरी ने कहा कि दिवंगत आत्मा ने 'स्वयमेव' तथा 'बोधिसत्व' की रचना कर यश: कीर्ति की अमरता प्राप्त कर ली है। उन्होंने शब्द के चितेरे नामक पुस्तक के तीन भागों में जिले के उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी के लगभग साढ़े तीन सौ साहित्यकारों की रचनाएं समाहित कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। 'शब्द तेरे पास है गाली बना या गीत तू, अक्षरों के मेल से दुश्मन बना या मीत तू' नामक मधुकर जी द्वारा रचित पंक्तियों को उद्धृत करते हुए भैरव नाथ पाठक ने कहा कि दिवंगत आत्मा में रचनाशीलता की अद्भुत प्रतिभा थी। उन्होंने अपनी कर्मठता एवं दृढ़ संकल्प के बल पर कुछेक वर्षों में विभिन्न साहित्यकारों द्वारा लगभग ढाई दर्जन पुस्तकों का प्रणयन एवं प्रकाशन करवाया। अध्यक्षीय उद्बोधन में भावुक होते राम लखन मिश्र ने कहा कि मधुकर जी के देहावसान से मैं व्यक्तिगत क्षति का अनुभव कर रहा हूं। साहित्य से संबंधित जो भी शंकाएं मेरे मन में उठती थीं, मैं तत्काल ही उनके माध्यम से समाधान पा लेता था।
उक्त सभा में सुदर्शन पाण्डेय, बालानंद पाठक, रामचंद्र पाठक, अरुण कुमार मिश्र, प्रत्यूष कुमार, दिव्यांशु कुमार, सुनील कुमार मिश्र, सुधीश मिश्र, गोवर्धन पाठक, राजेश कुमार मिशश्र इत्यादि ने भी अपनी- अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।सभा के अंत में उपस्थित लोगों द्वारा दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा के चिरंतन शांति हेतु प्रार्थना की गई।
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