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शहरी निकाय चुनाव और महिला अधिकार:-विभा सिंह

शहरी निकाय चुनाव और महिला अधिकार:-विभा सिंह

पंचायती राज और शहरी निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण ने सामाजिक ढांचा और राजनीतिक स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया है पंचायती राज में मुखिया ग्राम पंचायत सदस्य पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य तथा शहरी निकाय में नगर निगम नगर परिषद और नगर पंचायतों के वार्ड सदस्यों के चुनाव में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण दिया गया है इतना ही नहीं मुखिया प्रमुख जिला परिषद अध्यक्ष और शहरी निकायों के मुख्य वार्ड सदस्यों के चुनाव में भी 50 फ़ीसदी आरक्षण दिया गया है यह सुखद आश्चर्य है कि महिलाओं ने अनारक्षित सीटों पर भी बड़ी संख्या में कब्जा जमाकर पुरुषों के साथ चुनौती खड़ी कर दी है! बिहार के साथ नगर निगम में से 2 गया और मुजफ्फरपुर में मेयर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित था लेकिन महिलाओं ने 3 सीटों पर कब्जा जमा लिया आरक्षित सीटों के अलावा भागलपुर अनारक्षित सीट पर भी महिला की झोली में चली गई!
उधर चास नगर निगम 42 नगर परिषद और सात नगर पंचायतों की मुख्य पार्षद को कुल 199 सीटों में से 58 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थी लेकिन महिलाओं ने इसे अधिक पदों पर कब्जा कर लिया है शहरी निकाय में मुख्य पार्षद के पद के कुल 119 पदों में से चिप छत्तीसगढ़ी पंथी पुरुषों के हाथ लगे मुख्य पार्षदों की कुर्सियों में 76 पर महिलाओं ने अपना दबदबा कायम कर लिया सबको हैरत में डाल दिया जो महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या से यह 18 अधिक है!
मिलन के अलावा नगर पंचायत और नगर परिषदों में भी अध्यक्ष पद की दौड़ में महिलाओं पुरुषों से आगे वही उनका आंकड़ा 50 सर्जरी के आरक्षण की सीमा लांग सांसद फिर से तक जा पहुंचे गया आ गया उप मुख्य पार्षद के अनारक्षित पदों पर भी महिलाओं ने अपना दबदबा बनाने का भरसक कोशिश की उस पर मुख्य पार्षद के 119 पदों में से 25 सीटों पर महिलाएं चुनकर आए आंकड़ों से हटकर भी स्थानीय निकाय चुनाव को व्यापक असर रहा है आरक्षण के कारण पहली बार महिलाओं के की बड़ी संख्या में चुनाव मैदान में उतरने का मौका मिला इसमें सभी प्रकार के सामाजिक परिवेश वाली महिलाएं शामिल हैं कुछ राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार की थी तो कुछ के लिए राजनीति और चुनाव एकदम नई चीज थी ऐसी स्थिति में उन्हें पहली बार घर से बाहर निकल कर वोट मांगने के लिए घर घर घूमना पड़ा ऐसी स्थिति में उनमें आत्मविश्वास लाया और वे मुखर्जी हुए यही वजह रही कि कई इसी कारण में वार्ड सदस्य के चुनाव में कमजोर दिखने वाली महिलाएं निर्वाचित होने पर मुख्य बाद पार्षद और उप मुख्य वार्ड पार्षद के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कि इनमें से कुछ मेयर नगर परिषद और नगर पंचायत अध्यक्ष भी चुनी गई!
महिलाओं के इस नए चेहरे और भूमिका को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सचिन यादव कहती हैं कि आरक्षण ने महिलाओं को अपने अधिकार के लिए प्रति जागृत किया है और उन्होंने में भी सत्ता की भूख पैदा की है उन्हें भी सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी के लिए प्रेरित किया है यह एक शुभ संकेत है इससे सामाजिक और राजनैतिक परिवेश में व्यापक सुधार होने की उम्मीद की जा सकती है!
जबकि अनीता भरत शर्मा का मानना है कि आरक्षण ने शहरी निकायों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई है और उनकी भूमिका को व्यापर किया है लेकिन अधिकांश मामलों में आज भी महिलाओं के नाम पर पुरुषों की सत्ता भी चल रही है जहां पुरुष खुद चुनाव नहीं लड़ सकता था वहां अपनी पत्नी बहू या बेटी को मैदान में उतार दिया महिलाएं बस मुखौटा भर है हालांकि वे मानती हैं कि आरक्षण से आ रहे परिवर्तन को एकदम नकारा नहीं जा सकता है!
उधर राज्य महिला आयोग की सदस्य आरती सिंह का कहना है कि आरक्षण में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई है राज्य सरकार ने 50 फ़ीसदी आरक्षण देकर एक क्रांतिकारी कदम उठाया है लेकिन परिवार व समाज का भी दायित्व बनता है राजनीति में आगे आ रही महिलाओं की प्रसारित करें उनको मनोबल बढ़ाएं यही समाज पर प्रदेश और देश के हित में आवश्यक है
आजाद भारत में अभिजात्य परिवार की महिलाओं को की राजनीति के क्षेत्र में भागीदारी और यहीं से दाढ़ी पहले से भी मिलती रही है अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी उसी भर के बड़े परिवार की महिलाओं को मौका मिलता रहा है यह पहला मौका है जब सामान एवं मध्यवर्गीय परिवार की महिलाएं बड़ी संख्या चुनाव में उतरी और सफल भी हुई! राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का परिणाम है कि पहली बार देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के चुनाव में एक महिला ने अपनी दावेदारी जताई है उन्हें केंद्र सरकार में शामिल पार्टियों के साथ समर्थन कर रही पार्टियों ने भी सहयोग का आश्वासन दिया है यह सब राजनीति में नए युग की शुरुआत के समान है जब शक्ति का स्वरुप मानी जाने वाली नारी को सामाजिक एवं राजनीतिक सत्ता सौंपने का प्रयास किया जा रहा है! समाज और व्यवस्था में बदलाव के पर्याय सदियों से किए जाते रहे हैं इनका असर भी होता आया है! लेकिन राजनीति की निर्णय प्रक्रिया में व्यापक भागीदारी सुनिश्चित कर राज्य सरकारों ने क्रांतिकारी कदम उठाया है बिहार सरकार ने महिलाओं को स्थानीय निकायों में 50 फ़ीसदी आरक्षण देकर गांव एवं शहरी शहरों के विकास में उनकी हिस्सेदारी बढ़ा दी है पिछले 5 वर्षों का अनुभव रहा है! की महिलाओं ने अपनी भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वाह किया है स्थानीय निकाय में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण बनकर उभरी उम्मीद है कि स्थानीय निकाय में 50 पीवीसी से फ़ीसदी से अधिक भागीदारी महिलाओं की भूमिका को और उत्तरदा यी पूर्ण बनाएगी! इसके साथ ही महिला जनप्रतिनिधि गांव एवं शहरों के विकास में अपनी भूमिका को सार्थक बना सकेगी!
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