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भक्ति और साधना के शिखर पुरुष रामकृष्ण परमहंस

भक्ति और साधना के शिखर पुरुष रामकृष्ण परमहंस

देवरिया ब्यूरो वेद प्रकाश तिवारी, (यू पी) ।
18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में कुमार पुकुर गांव में जन्में रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। विश्व के पटल पर रामकृष्ण परमहंस के जैसा गहरा पुजारी ढूंढना मुश्किल है। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं । अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया।
एक रोचक घटना का जिक्र करना चाहूंगा । रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर में पुजारी के पद पर रखा गया था । उन्हें14 रुपये तनख्वाह मिलती थी । मंदिर ट्रस्टयो के अधीन था एक दिन ट्रस्टीयों को पता चला कि रामकृष्ण भगवती काली को जो भोग लगाते हैं उसे खुद चख लेते हैं उसके बाद भोग लगाते हैं । शिकायत मिलने पर ट्रस्टी यों की अदालत बैठ गई रामकृष्ण को बुलाया गया रामकृष्ण से सवाल किए गए कि हमें पता चला है कि भोग तुम पहले खुद चख लेते हो फिर भगवती काली को लगाते हो । राम कृष्ण ने कहा कि मैं ऐसे ही पूजा करूंगा क्योंकि मुझे पता ही नहीं कि मैं जो चढ़ा रहा हूं वह क्या है ? उसका स्वाद कैसा है? इसलिए मैं जब तक खुद चख नहीं लूंगा काली को भोग नहीं लगा सकता । आप चाहे तो कोई और पुजारी रख सकते हैं। एक दिन की घटना है । रामकृष्ण पूजा में तल्लीन थे। भोग रखा रखा ठंडा हो गया । फूल कुम्हला गए। दीपक जलते- जलते बुझ गया। जो लोग पूजा देखने आए थे कर जाने लगे कहने लगे यह किस माता की पूजा है । रामकृष्ण आंख बंद किए रोए जा रहे थे । सुबह से शाम हो गई, शाम से आधी रात हो गई। रामकृष्ण ने आंखें खोली और काली के सामने लटक रही तलवार को खींचकर निकाल दिया और कहा कि सब कुछ अब तक कुछ हुआ नहीं सब कुछ चढ़ा दिया अब तक कुछ हुआ नहीं आज अपने आप को चढ़ाता हूं एक झटके में तलवार उनके गर्दन के पास आ गई । अचानक रामकृष्ण बेहोश होकर गिर पड़े और जैसे किसी ने उनके हाथों से तलवार छीन लिया । वह बेहोश तो थे लेकिन रामकृष्ण के चेहरे पर जो आभा थी वह एक आध सदियों में किसी महापुरुष के चेहरे पर आती है। सुबह उनकी आँख खुली तो लोगों ने पूछा कि रामकृष्ण क्या हुआ था ? राम कृष्ण ने कहा पूजा हो रही थी पूजा पूरी हो गई। उसके बाद फिर रामकृष्ण दोबारा मंदिर नहीं गए । हां जब पुजारी नहीं होता था तेरे मंदिर में जाते थे और ऐसे बातचीत कर लेते थे जैसे कोई पुत्र अपनी मां से करता है ।
रामकृष्ण संसार को माया के रूप में देखते थे। उनके अनुसार अविद्या माया सृजन के काले शक्तियों को दर्शाती हैं जैसे काम, लोभ ,लालच , क्रूरता , स्वार्थी कर्म आदि , यह मानव को चेतना के निचले स्तर पर रखती हैं। यह शक्तियां मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधने के लिए ज़िम्मेदार हैं। वही विद्या माया सृजन की अच्छी शक्तियों के लिए ज़िम्मेदार हैं जैसे निःस्वार्थ कर्म, आध्यात्मिक गुण, ऊँचे आदर्श, दया, पवित्रता, प्रेम और भक्ति।रामकृष्ण के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है ईश्वर प्राप्ति। रामकृष्ण कहते थे की कामिनी -कंचन ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी के अनुसार, वे तपस्या, सत्संग और स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक साधनों पर विशेष बल देते थे। वे कहा करते थे, "यदि आत्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखते हो, तो पहले अहम्भाव को दूर करो। क्योंकि जब तक अहंकार दूर न होगा, अज्ञान का परदा कदापि न हटेगा। तपस्या, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदि साधनों से अहङ्कार दूर कर आत्म-ज्ञान प्राप्त करो, ब्रह्म को पहचानो।"
उनके शिष्य विवेकानंद ने जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को उनके सामने रखा था जिसका जवाब रामकृष्ण परमहंस ने बड़ी उदारता से दिया था ।
स्वामी विवेकानंद : समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं?
रामकृष्ण परमहंस : अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। अपने भीतर झांको। आखें दृष्टि देती हैं। हृदय राह दिखाता है।
स्वामी विवेकानंद : क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?
रामकृष्ण परमहंस : सफलता वह पैमाना है, जो दूसरे लोग तय करते हैं। संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो।
स्वामी विवेकानंद : कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?
रामकृष्ण परमहंस : हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं।
स्वामी विवेकानंद : लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?
रामकृष्ण परमहंस : जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, 'मैं ही क्यों?' जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, 'मैं ही क्यों?'
स्वामी विवेकानंद : मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?
रामकृष्ण परमहंस : बिना किसी अफसोस के अपने अतीत का सामना करो। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो। निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो।
स्वामी विवेकानंद : एक आखिरी सवाल। कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं?
रामकृष्ण परमहंस : कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है।स्वामी विवेकानंद उनके दिव्य ज्ञान को पाकर ही शिकागो अमेरिका में विश्व गुरु होने का परचम लहराया विवेकानंद का अध्ययन करने के बाद स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है रामकृष्ण मिशन स्थापना करके स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंस के उद्देश्यों को पूरा किया
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