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कर्म,धर्म का मर्म

कर्म,धर्म का मर्म

         ---:भारतका एक ब्राह्मण.
           संजय कुमार मिश्र"अणु"
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जो लोग-
भूल.गये अपने कर्म।
आज वही-
मुझे सीखा रहे हैं धर्म।।
       ठग रहे हैं समाज को,
       धर मेरे रुप साज को,
       कर रहा सब नष्ट-भ्रष्ट-
       पथभ्रष्ट हो हीन मर्म।।
जब खुलता पोल,
है बोलता बकलोल,
मुझे दे रहा सब कष्ट-
भूलाकर लाज शर्म।।
         कर रहा समाज से छल,
         ले शंख,तुलसी,गंगाजल,
         करो छद्मवेशी को नष्ट-
         कर मन मिजाज गर्म।।
है सबसे पुनित कर्म,
बचाना देश और धर्म,
चाहे जो उठाना पडे कष्ट-
दिया दधीचि ने अस्थी-चर्म।।
        बचा है देश बलिदानी से,
        बचा है धर्म स्वाभिमानी से,
        मत होना तुम कभी पस्त-
        यातना पा देख क्रूर-कर्म।।
लाखो यातनाएं सहकर,
बचा रखे सनातन सस्वर,
आज भी हूँ मस्त-समस्त-
निर्वाह रहा निज स्वधर्म।।
                रहेगा ब्राह्मण,
                रहेगा सनातन,
                होगा नहीं अस्त-
                कर्म,धर्म का मर्म।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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