भाटपार रानी में खिलेगा कमल या दौड़ेगी साइकिल,आखिर किसकी होगी भाटपार रानी ?
- सपा से लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुके डॉ आशुतोष उपाध्याय इस बार हैट्रिक लगाने की तैयारी में ।
- जातीय समीकरण और विकास के मुद्दे पर भाजपा ने सभा कुंवर कुशवाहा को बनाया उम्मीदवार ।
वेद प्रकाश तिवारी, ब्यूरो देवरिया (यू पी)
देवरिया जिले की भाटपार रानी विधानसभा की सीट पर बीजेपी और सपा में कांटे की टक्कर है। छठे चरण में यहां 3 मार्च को मतदान होना है । भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 2017 का चुनाव केंद्र में भाजपा के कार्यों व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित देवरिया जनपद में 7 विधानसभा सीट है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 7 में से 6 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। भाटपार रानी सीट पर भाजपा हार गई । 2017 में भाटपार रानी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने सलेमपुर के सांसद रविंद्र कुशवाहा के अनुज जयनाथ कुशवाहा गुड्डन को अपना प्रत्याशी बनाया था जिन्हें सपा प्रत्याशी डॉक्टर आशुतोष उपाध्याय ने 11000 मतों से पराजित कर समाजवाद का झंडा बुलंद किया था। भाटपार रानी विधानसभा क्षेत्र समाजवाद को मानने वालों का गढ़ रहा है । यहां से राज मंगल तिवारी, कैलाश कुशवाहा, हरिवंश सहाय के साथ-साथ कामेश्वर उपाध्याय 2007 एवं 2012 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर इस क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके हैं। 2012 में कामेश्वर उपाध्याय के निधन के बाद 2013 में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र डॉक्टर आशुतोष उपाध्याय ने जीत का परचम लहराया था। 2017 में भी आशुतोष उपाध्याय को विजय श्री हासिल हुई थी। एक महत्वपूर्ण बात किया है कि भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड लहर के बावजूद भाटपार रानी विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी नहीं जीत पाई । इसका कारण एक यह भी है कि दिवंगत सपा विधायक कामेश्वर उपाध्याय का व्यक्तित्व ऐसा रहा है की हर जाति, हर कौम, हर समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ रही है । वे निर्दलीय, कांग्रेस या सपा से लड़े , उन्हें पार्टी के आधार पर तो वोट मिला ही, उनके व्यक्तित्व के आधार पर भी उन्हें ज्यादा वोट मिले। उनकी इस छवि को उनके पुत्र डॉ आशुतोष उपाध्याय ने बरकरार रखा है और उनके साथ भी वे सारे लोग जुड़े हैं जो उनके पिताजी के साथ जुड़े थे। यादव, मुस्लिम वोट बैंक के अलावा एक ब्राह्मण चेहरा होने के नाते ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग भी काफी संख्या में जुड़े हुए हैं । इस कारण आज तक भाजपा अपनी जीत नहीं दर्ज कर कर पाई है पर इस बार भाजपा की खास नजर है भाटपार रानी विधानसभा सीट पर । भाजपा का टिकट पाने के लिये भाजपा के पूर्व प्रत्याशी जय नाथ कुशवाहा, सभा कुंवर कुशवाहा और युवा नेता अश्वनी कुमार सिंह, राजकुमार शाही कतार में थे । पिछले चुनाव में भाजपा से प्रत्याशी बने जयनाथ कुशवाहा को 51000 वोट मिले थे । वहीं बहुजन समाज पार्टी से सभा कुंवर 42000 वोटों पर सिमट गए थे । युवा चेहरा अश्वनी कुमार सिंह जो एक क्षत्रिय चेहरा हैं, निर्दलीय प्रत्याशी थे उन्हें 13000 वोट मिले । भारतीय जनता पार्टी सबका साथ सबका विकास के नारों को बुलंद करते हुए अपने विकास कार्यों के आधार पर चुनाव लड़ रही है, साथ ही उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ का चेहरा सबसे पसंदीदा है । यह फैक्टर भी काफी अहम है । कुशवाहा बिरादरी के चेहरे के रूप में अजय कुशवाहा भी अपनी एक पहचान रखते हैं । वह एक युवा चेहरा हैं और जिला पंचायत सदस्य के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है । इस बार वह बीएसपी के प्रत्याशी के रूप में खड़े हैं । ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि राशन, श्रम कार्ड ,जनधन योजना, आवास, गैस रसोई, आदि की सुविधाओं का लाभ पाकर दलित समुदाय के वोटों में से मेजर वोट भाजपा को जा सकता है । जातीय समीकरण के आधार पर अजय कुशवाहा को भी कुशवाहा बिरादरी का वोट प्राप्त होगा, परंतु उनके वोटों का प्रतिशत कम रहने की संभावना है । कांग्रेस के उम्मीदवार केशव चंद्र यादव को अभी संघर्ष करना पड़ सकता है । कांग्रेस का कोई विशेष जनाधार इस विधानसभा में नहीं है । भाटपार रानी विधानसभा सीट पर आप नजर दौड़ाएंगे तो पार्टी के आधार पर या विकास कार्यो के आधार पर वोट मिलता ही है पर इन सबसे इतर व्यक्तित्व का आधार भी बहुत महत्वपूर्ण है। जातीय समीकरण का आधार अगर माने तो कुशवाहा बहुल क्षेत्र होने के नाते उनका वोट प्रतिशत सभा कुंवर कुशवाहा की तरफ जा सकता है । जो भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता हैं चाहे वह किसी भी जाति के हो को भाजपा को वोट करेंगे । अब देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है । फिलहाल भाजपा और सपा प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं ।
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