आखिरकार रूसी सेना ने यूक्रेन पर धावा बोल ही दिया। महीनों की धमकी प्रति धमकी और सुलहनामे के बयानों को परे करते हुए रूस की हवाई सेना ने यूक्रेन के बमवर्षक विमानों हवाई पट्टी और महत्वपूर्ण पुलों और इमारतों पर हवाई हमले किये हैं। जबाब में यूक्रेन ने भी रूसी विमानों और आक्रामक हेलीकाप्टर को मार गिराने का दावा किया है। इस हमले ने विश्व के बाजारों में मंदी की लहर उतार दी है कच्चे तेल की कीमत सन 2014 के बाद पहली बार 100 डॉलर प्रति बैरल पार कर गयी है। पूरे विश्व में तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका फैल गयी है। रूस के इस आक्रमण के पीछे आखिर क्या कारण हैं। ज्ञात हो कि यूक्रेन सन 1945 से ही UNO का सदस्य है परन्तु तब इसका नाम यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक हुआ करता था। यह रुस्सियन फेडरेशन के मेंबर था तथा USSR का एक हिस्सा। गोर्बाचेव के समय रूस के विघटन पर 24 अगस्त 1991 को यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बन गया। यूक्रेन के स्वतंत्र होने के बाद से ही नाटो देश उसे अपने साथ मिलाने के लिए हर प्रकार का प्रयास कर रहे हैं। सन 2008 में नाटो देसजों की बैठक में निर्णय हुआ कि यूक्रेन को नाटो देशों में शामिल कर लिया जाय। तब तक बात हल्की फुल्की जोर आजमाइश की थी। रूस इस कदम का हमेशा से विरोधी रहा है। अगर गौर से देखें तो यूक्रेन की स्थिति भी पाकिस्तान सरीखी ही है। जिस रूसी फेडव्रतिओं का वह हमेशा से हिस्सा रहा वहीं पर वह नाटो के लिए दरवाजे खोलना चाहता है। यूक्रेन की कुल आबादी 4 करोड 15 लाख और क्षेत्रफल 6.03 लाख किलोमीटर है। यूक्रेन में विश्व का 2सरा सबसे बाद यूरेनियम का भंडार है। इसके अलावा वहां कोयला, लौह अयस्क, प्राकृतिक गैस, मैगनीज, कच्चा तेल, टाइटेनियम, निकल, लकड़ी और मरकरी के भंडार भरे हुए हैं। यूक्रेन को रेयर मेटल क्षेत्र भी कहा जाता है। इसी कारण से भी इस देश पर अमेरिका समेत सभी पश्चिमी देशों की नज़र हैं। यही वह कारण भी है कि रूस इस क्षेत्र को अपने प्रभाव से निकलने नहीं देना चाहता है और इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। यूक्रेन के निवासी यूँ तो शांत और सहिष्णु हैं पर जब राष्ट्रवाद की बात आती है तो उन्होंने भी अपने सबक पूर्वर्ती USSR से ही सीखें हैं। यूक्रेन अपने पूर्वी हिस्से में जिसे डोनबास क्षेत्र भी कहा जाता है हो रहे स्वतंत्रता आंदोलनों से परेशान है। इस आंदोलन को रूस का सीधा समर्थन प्राप्त है। ये अलगाववादी मुख्यतया दोनेत्स्क और लुहानतस्क में अपनी हुकूमत चलाते हैं इसी क्षेत्र को डोनबास कहा जाता है। रूस का आक्रमण इसी क्षेत्र की सुरक्षा के नाम पर किया गया है। पर मुख्य कारण यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की चर्चा है। रूस नहीं चाहता कि उसकी सीमा पर नाटो का अड्डा बन जाये। वैसे भी नाटो संधि के आर्टिकल 5 के अनुसार किसी भी नाटो देश पर हमला सभो देशों पर सामूहिक हमला माना जायेगा और सभी मिलकर शत्रु का सामना करेंगे। इसीलिए रूस का कहना है कि यूक्रेन के यह कदम उसकी सीमाओं के लिए खतरा है। वैसे रूस जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है, जनता है कि यूएन चार्टर के आर्टिकल 51 पार्ट 7 में आक्रमणकारी देशों पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रावधान है अतः रूस की चिंता को समझा जा सकता है। इसके पहले रूस ने अपने रुख को लचीला करते हुए 3 मांगे रखीं थीं-
1. क्रीमिया के ऊपर रूस की प्रभुसत्ता को यूक्रेन माने।
2. नाटो में शामिल होने से यूक्रेन मना करे।
3. यूक्रेन अपनी सैन्य शक्ति कम करे।
जाहिर सी बात है जिनमे से कोई भी मांग यूक्रेन मानने को तैयार नहीं होगा। रूस जानता है की अमेरिका जरूर अपनी टांग इस फटे में अड़ायेगा, यही समय है जब अमेरिका को विश्व पटल पर एक मजबूत नहीं मजबूर राष्ट्र के रूप में दिखाया जा सकता है। अपने अथाह कच्चे तेल मिनरल और नाभिकीय हथियारों के दम पर रूस इस समय किसी की परवाह नहीं करने वाला। अमेरिका ने भी एक तरह से इस मामले में अभी तकक खाना पूर्ति ही की है। उसका कहना है कि यूक्रेन की सीमा पर रूसी सेना का जमावड़ा यूक्रेन की सीमा का उल्लंघन माना जायेगा। ब्रिटेन और जर्मनी ने भी बातों से अपना काम चला लिया है। पर इस तनाव ने विकासशील देशों की नींद उड़ा दी है। कच्चे तेल की कीमतें विदेशी निवेशकों का अपना निवेश निकाल कर सुरक्षित जगहों पर लगाना। पूरी दुनिया के अव्यवस्थित होने का खतरा है। भारत को भी स्थिति सम्हालने में दिक्कतें आ सकती हैं । मजे की बात यह है कि इमरान खान पुतिन सरकार के मेहमान के तौर पर अभी रूस में हैं पर पुतिन ने पिछले चार दिनों से मिलने का समय ही नहीं दिया है। इस बीच यूक्रेन के भारत में राजदूत ने मोदीजी से गुहार लगाई है और विश्वास जताया हैं कि इस संकट में मोदी जैसा वैश्विक नेता ही इस संकट का हल निकाल सकता है। आने वाले दिनों में मोदी सरकार की असली परीक्षा होगी।
-मनोज मिश्र
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