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स्वास्तिक बनाम अशोक चक्र

स्वास्तिक बनाम अशोक चक्र

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत की राजनीति में जबर्दस्त द्वन्द्व चल रहा है। इसका नतीजा क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। ये मामले आम जनता में बहस का मुद्दा भी नहीं बन पाएंगे। अभी कुछ दिन पहले ही गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2022) पर जब राष्ट्र ध्वज को ससम्मान उतारा जाता है अर्थात बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम में जो धुन पहले बजायी जाती थी उसको बदल दिया गया। पहले जो धुन बजती थी, वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पसंदीदा थी, उसकी जगह राष्ट्रकवि प्रदीप जी के कालजयी गीत-ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी... की धुन बजायी गयी। जाहिर है कि आम जनता से इसका कोई लेना-देना नहीं है। बौद्धिक वर्ग में भी इस पर कोई खास बहस नहीं हुई। अभी फरवरी 2022 में ही उत्तर प्रदेश के लखनऊ में केजीएमयू के नवागंतुक एमबीबीएस छात्रों को दिलायी जाने वाली शपथ बदल दी गयी। पहले हिंपोक्रेट्स शपथ दिलायी जाती थी, इस बार चरक संहिता की शपथ दिलायी गयी। इसमें कत्र्तव्य पालन की प्रतिबद्धता ज्यादा बतायी जा रही हैं। एक नया मामला बिहार से सामने आया है। वहां नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने स्मृति चिह्न स्तम्भ को लेकर सवाल खड़ा किया है। इस पर अशोक चक्र की जगह स्वास्तिक चिह्न लगाया गया है। तेजस्वी यादव कहते हैं कि इससे देश की धर्मनिपेक्ष छवि ध्वस्त हुई है जबकि बिहार विधानसभाध्यक्ष विजय सिन्हा कहते हैं कि स्वास्तिक चिह्न सनातन काल से चला आ रहा है। यह बिहार के राजकीय चिह्न में भी शामिल है। ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा के सौ साल पूरे होने पर विधानसभा के मेन गेट पर शताब्दी स्मृति स्तम्भ बनाया गया है।

धार्मिक मान्यताओं और चिन्हों को लेकर देश में सियासत गर्म है। कुछ दिन पहले कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहन कर स्कूल आने पर उठे सवाल के बाद देश भर में हिजाब पर बहस छिड़ गई है। मगर अब बिहार में स्वास्तिक चिन्ह को लेकर बवाल खड़ा हो गया है। बिहार विधानसभा के 100 साल पूरे होने पर विधानसभा के मेन गेट पर बनाए जाने वाले शताब्दी स्मृति स्तंभ पर स्वास्तिक चिन्ह होने पर नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया है। तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर स्मृति चिह्न स्तंभ के मॉडल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ तस्वीर डालते हुए कहा कि आजादी के बाद पहला ऐसा स्तंभ होगा जिसमें अशोक चक्र नहीं लगा होगा। उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार ने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को ध्वस्त करते हुए अशोक चक्र की जगह स्वास्तिक चिह्न लगाया है। नेता विपक्ष के उठाए सवाल पर जवाब देते हुए बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा ने तेजस्वी यादव की समझ पर सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव में समझ की कमी है, अगर जानकारी नहीं तो पहले जानकारी लेनी चाहिए थी। स्वास्तिक का चिह्न कोई नया नहीं है, बल्कि यह बिहार के राजकीय चिह्न में भी शामिल है। यही नहीं, तेजस्वी यादव के लेटर पैड और तमाम विधायकों के लेटर पैड पर भी स्वास्तिक का चिह्न शामिल होता है। तेजस्वी के धर्मनिरपेक्षता पर उठाए गए सवाल पर विजय सिन्हा ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब अपने धर्म को भूल जाना नहीं होता। धर्मनिरपेक्षता का मतलब सभी धर्मों को मानेंगे पर अपने धर्म और उसके प्रतीक चिह्नों को भी अगली पीढ़ी के लिए बचा कर रखना जरूरी होता है। ऐसी बातें राष्ट्र गौरव को कमजोर करती हैं। स्वास्तिक चिह्न पर तेजस्वी यादव के उठाए सवालों का जवाब देते हुए जेडीयू ने पूछा क्या तेजस्वी नास्तिक हैं। पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक ने कहा कि बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए तेजस्वी यादव ने दिन-रात पूजा की, लेकिन अब स्वास्तिक चिह्न पर सवाल खड़े कर रहे हैं। विधानसभा का सदस्य होने के बावजूद लगता है कि उन्होंने सदन का मुआयना नहीं किया है, क्योंकि सदन में भी स्वास्तिक चिह्न लगा हुआ है। वहीं, स्वास्तिक चिह्न पर तेजस्वी यादव के उठाए गए सवाल का कांग्रेस ने समर्थन किया है। कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौर ने तेजस्वी की बात का समर्थन करते हुए कहा कि अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी और आरएसएस के पदचिन्हों पर चलने लगे हैं, यही कारण है कि अशोक चक्र की जगह स्वास्तिक को बढ़ावा दे रहे हैं।

भारत का प्रतीक अशोक चक्र जिसे कर्तव्य का पहिया भी कहा जाता है। इसमें कुल 24 तीलियाँ है जो मनुष्य के 24 गुणों को दर्शातीं हैं। साथ ही इन्हें मनुष्य के लिए बनाये गए 24 धर्म मार्ग भी कहा जाता है। 22 जुलाई 1947 के दिन संविधान सभा ने तिरंगे को, देश के झंडे के रूप में स्वीकार किया था और हमारे रष्ट्र ध्वज के निर्माताओं ने जब इसका अंतिम रूप फाइनल किया तो झंडे के बीच में चरखे को हटाकर इस अशोक चक्र को स्थापित किया था । अशोक चक्र में दी गयी 24 तीलियाँ देश और समाज के चहुमुखी विकास के प्रति देशवासियों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में बतातीं हैं। पहली तीली-संयमित जीवन जीने की प्रेरणा देती है तो दूसरी तीली-आरोग्य, तीसरी तीली-शांति, चैथी तीली-त्याग, पांचवीं तीली- शील, छठवीं तीली-सेवा, सातवीं तीली-क्षमा, आठवीं तीली-प्रेम, नौवीं तीली-मैत्री, दसवीं तीली-बन्धुत्व, ग्यारहवीं तीली-संगठन, बारहवीं तीली-कल्याण, तेरहवीं तीली-समृद्धि, चैदहवीं तीली-उद्योग, पंद्रहवीं तीली-सुरक्षा, सौलहवीं तीली-नियम, सत्रहवीं तीली-समता, अठारहवी तीली-अर्थ, उन्नीसवीं तीली-नीति, बीसवीं तीली-न्याय, इक्कीसवीं तीली-सहकार्य, बाईसवीं तीली-कर्तव्य, तेईसवी तीली-अधिकार और चैबीसवीं तीली- बुद्धिमत्ता अर्थात् देश की समृद्धि के लिए स्वयं का बौद्धिक विकास करने की सीख देती है। उपरोक्त सभी 24 तीलियाँ सम्मिलित रूप से देश और समाज के चहुमुखी विकास की बात करती हैं एवं उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में स्पष्ट सन्देश देती हैं। इसी प्रकार स्वास्तिक को अत्यंत प्राचीन समय से बहुत ही मंगल प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु़अस़क शब्दों से मिलकर बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा या शुभ, अस का अर्थ सत्ता या अस्तित्व और ‘क’ का अर्थ कर्ता या करने वाले से है। इस तरह से स्वास्तिक शब्द का अर्थ मंगल करने वाला माना गया है। स्वास्तिक को भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। गणेश जी शुभता के देवता है और प्रथम पूजनीय हैं इसलिए भी हर कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह बनाना बहुत ही शुभ रहता है। खासतौर पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा में स्वास्तिक का चिह्न अवश्य बनाया जाता है। ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य माना गया है और उसकी चारों भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। इसके अलावा स्वास्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी निरूपित किया जाता है। अन्य ग्रंथो में स्वास्तिक को चार युग, चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक भी माना गया है। यह मांगलिक विलक्षण चिह्न अनादि काल से ही संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। इसलिए स्वास्तिक और अशोक चक्र पर विवाद नहीं करना चाहिए। हां, इसके पीछे राजनीतिक भावना भी नहीं होनी चाहिए। (हिफी)
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