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काशी सिंह ऐरी का सियासत से मोहभंग

काशी सिंह ऐरी का सियासत से मोहभंग

  • राजनीतिक मूल्यों में गिरावट से क्षुब्ध
  • कभी थे उत्तराखण्ड के पर्याय

उत्तराखंड बनने से पहले यूपी के दौर से पहाड़ की सियासत में एक नाम जो सबसे अधिक चर्चित रहा, वो है काशी सिंह ऐरी। राज्य की क्षेत्रीय राजनीति में अहमियत रखने वाले उत्तराखंड क्रांति दल के नेता ऐरी को एक दौर में उत्तराखंड का पर्याय समझा जाता था, लेकिन अब ऐरी का चुनावी राजनीति से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। 37 साल के इतिहास में ये पहला मौका है, जब उत्तराखंड के चुनावी रण में ऐरी नहीं दिखाई देंगे। एक दौर था, जब उत्तराखंड से बाहर पहाड़ के जिन गिने-चुने नेताओं को जाना जाता था, उनमें अहम नाम काशी सिंह ऐरी का था। ऐरी ने यूपी के दौर में डीडीहाट विधानसभा से यूकेडी के बैनर तले 1985 में पहली बार विधायक का चुनाव जीता। फिर 1989 और 1993 में भी वह विधायक बने। तब ऐरी की लोकप्रियता ये थी कि अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा से सांसद का चुनाव वह सिर्फ 9000 वोटों से हारे थे जबकि इसी चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता भगत सिंह कोश्यारी को सिर्फ 36,000 वोट मिले थे। अब हालात ये हैं कि ऐरी ने खुद को चुनावी राजनीति से दूर कर लिया है। ऐरी कहते हैं कि वर्तमान राजनीतिक हालात उन जैसे नेताओं के लिए मुफीद नही रह गए। वह कहते हैं, ‘अब चुनावों में पैसों का बोलबाला है और हम पैसों के पीछे कभी नहीं भागे।’ ऐरी के मुताबिक उन जैसे नेताओं ने संघर्ष जरूर किया, लेकिन अब नतीजा ये है कि बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में वह खुद को फिट नहीं पा रहे हैं। उत्तराखंड राज्य बनाने में ऐरी की बड़ी भूमिका रही थी, लेकिन राज्य बनने के बाद ऐरी सिर्फ एक बार ही कनालीछीना सीट से विधायक बन पाए। 2007 में ऐरी की हार का जो सिलसिला शुरू हुआ, उनके चुनावी राजनीति से दूर होने पर ही रुका। 2007 के चुनाव में ऐरी 8438 वोट लेकर रनर-अप रहे जबकि 2012 में धारचूला सीट पर 6685 वोट के साथ तीसरे नंबर पर खिसक गए। बीता चुनाव ऐरी ने फिर डीडीहाट से लड़ा, लेकिन तब उन्हें सिर्फ 2896 वोट मिले। हालात ये रहे जिस सीट पर यूपी के दौर में ऐरी का सिक्का चलता था, वहीं वह चैथे स्थान पर जा पहुंचे।
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