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विरल रचनाओं का निराला कवि

जन्मदिन पर विशेष (फीचर)

विरल रचनाओं का निराला कवि

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
इन पंक्तियों को पढ़ने मात्र से एहसास हो जाता है कि हिंदी साहित्य में छायावाद के आधार स्तंभों में एक सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने साधारणता से वह असाधारण रचनाओं का सृजन किया। सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म उस समय के बंगाल की महिषादल रियासत में 21 फरवरी 1899 में हुआ उस दिन बसंत पंचमी थी। जन्मकुंडली के अनुसार नाम रखा गया सुर्जकुमार। निराला जी के पिता पंडित रामसहाय तिवारी मूलतः उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के अंतर्गत पड़ने वाले गांव गढ़ाकोला के रहने वाले थे, जो महिषादल में सिपाही की नौकरी कर रहे थे। सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’के बालमन ने संघर्ष को करीब से देखा था। पिता की सीमित आय में घर खर्चा कठिनाई से चलता था, लेकिन आत्मसम्मान की रक्षा उन अभावों में भी कैसे हो ये निराला ने घर से ही सीखा था। मात्र तीन वर्ष के थे तो उनकी माता रुक्मणि देवी का देहांत हो गया। विपत्ति यहीं न रुकी बीस बरस का होते- होते पिता भी परलोक गमन कर गए। उन दिनों बाल विवाह भी होते थे फलतः निराला का विवाह 14 वर्ष की आयु में मनोहरा देवी से कर दिया गया। वह नाम के अनुरूप सुंदर एवं विदुषी महिला थीं। कहते हैं हिंदी का बहुत सा ज्ञान निराला को उन्हीं के माध्यम से मिला। सन् 1918 में फैली इन्फ्लूएंजा बीमारी ने पत्नी समेत परिवार के बहुत से सदस्यों को असमय काल का ग्रास बनाया। निराला ने कुछ समय महिषादल के राजा के मातहत नौकरी भी की। बाद में रामकृष्ण मिशन से जुड़ गए, उनकी पत्रिका ‘समन्वय’ का सम्पादन किया। निराला विवेकानंद के विचारों और उनके वेदांत दर्शन से बहुत प्रभावित थे। भारत में विवेकानंद पुस्तक का अनुवाद भी उन्होंने किया।

उसी समय के दौरान मतवाला पत्रिका कलकत्ता से प्रकाशित होती थी। 1923 में इसी पत्रिका में उनकी कविता जूही की कली उनके पूरे नाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ प्रकाशित हुई और तबसे वह निराला नाम से प्रसिद्ध हो गए। 1923 में उनका पहला काव्य संग्रह अनामिका आया और 1930 में परिमल, फिर गीतिका, अनामिका द्वितीय, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नये पत्ते, गीत गूंज, सांध्य काकली आदि अनेक कविताएं एवं काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। दस उपन्यास, पांच कहानी संग्रह,
निबंध, आलोचना, अनुवाद, बाल साहित्य, पुराण साहित्य सब विधाओं और विषयों पर निराला पैंतीस वर्षों से अधिक समयावधि तक लिखते रहे। राजकमल प्रकाशन से नंदकिशोर नवल के सम्पादन में आठ खंडों में निराला रचनावली भी प्रकाशित हुई है, इसमें निराला की सम्पूर्ण रचनाएं संकलित हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की दृष्टि हमेशा भारतीय संस्कृति, भारतीय जन और मन को अभिव्यक्त करने में ही लगी रही। जब वह ‘वर दे वीणावादिनी वर दे! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-में त्र नव भारत में भर दे! से मां सरस्वती का वंदन करते हैं तो मूल में भारत और उसकी दशा से उसे उबारने की कामना ही है। ‘वो तोड़ती पत्थर’ कविता में श्रम से उपजे सौन्दर्य को वो सबसे पहले महत्व देते हैं। वह यह भी जानते थे कि केवल एक ही विचारधारा के बूते परिवर्तन नहीं आ सकता तो विद्रोह की बात भी अपनी कविताओं के द्वारा करते हैं। यहां भगवान राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी आम व्यक्ति की तरह हताश, निराश होते है- मात, दशभुजा, विश्वज्योति, मैं हूं आश्रितय और तब शक्ति की परिकल्पना निराला करते हैं। उनका आशीर्वाद भी मिलता है- होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन। कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
निराला उन व्यक्तित्वों में थे, जिन्होंने आजीवन संघर्ष ही किया। अनेक कठिनाइयों से लोहा लेते रहे जूझते रहे। अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु पर लिखी कविता उस पिता की मार्मिक अभिव्यक्ति है, जिसने जीवन को दुःख और संघर्ष से ज्यादा जाना है- दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूं आज जो नहीं कही! अपनी पुत्री को दिया पिता का यह तर्पण हिंदी की ही नहीं मानव जीवन की भी मार्मिक अभिव्यक्ति है।
निराला की रचनाओं में भावबोध है, चित्रण कौशल है जिसमें जगत का सजीव रूप है। छायावाद का प्राकृतिक सौन्दर्य है, उस सौन्दर्य के साथ प्रकृति की शक्ति भी है। जहां यथार्थ की बात करते हैं, वहां निडर होकर कबीर की तरह दो टूक शब्दों की सपाटबयानी भी है। भारतीय संस्कृति, आचार-विचार, पौराणिक पात्र, तत्कालीन समस्याएं, किसान जीवन और उसका संघर्ष, मजदूर की बात, स्त्रियों की बात- उनकी शक्तिरूपेण संस्थिता की बात, निजी जीवन का संघर्ष, जीविका का संघर्ष, अनेक तरह की जद्दोजहद के बीच आत्मसम्मान को बचाए रखना, निर्भीकता से अपनी बात कहना ही तो सूर्यकान्त त्रिपाठी को निराला बनाता है।
रहस्य, अध्यात्म और यथार्थ से बनी उनकी लेखनी हिंदी साहित्य की अनुपम उपलब्धि है। आजीवन संघर्षरत व्यक्ति के न टूटने की जिद निराला को विशेष बनाती है। जीवन के उतरार्ध की सांध्य बेला से वह अकेले होकर भी विचलित नहीं होते और मरण का भी स्वागत खुले शब्दों में करते हैं- मरण को जिसने वरा है, उसी का जीवन भरा है, परा भी उसकी, उसी के अंक सत्य यशोधरा हैद्य उनकी यही जीवटता आज भी प्रेरणा है और आगे भी रहेगी। निराला मानव जीवन के विविध पक्षों पर जो भी चिंतन है, उसमें और रचनाओं में मौजूद व्यक्ति जीवन, मन, संघर्ष, पीड़ा, विद्रोह आदि में हमेशा प्रेरणादायक और प्रासंगिक रहेंगे।
निराला ने हिंदी कविता को एक नया प्रतिमान दिया लेकिन उससे ज्यादा मानवता को मजबूत बनाया। उनकी कविता ही नहीं, उनकी जिंदगी भी पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एक सशक्त हस्ताक्षर बनकर उभरी। वो पंडित जवाहरलाल नेहरू के समकालीन थे और उस दौर में नेहरू जैसे प्रभावशाली प्रधानमें त्री की नीतियों पर सवाल उठाने की श्हिमाकतश् बड़े बड़े लोग नहीं कर पाते थे। बल्कि तमाम कवियों को नेहरू में देवत्व की आभा दिखती थी। इसमें बुराई भी नहीं क्योंकि नेहरू का व्यक्तित्व वाकई महान और सत्य-निष्ठा से भरा हुआ था। सत्ता के विषय में कहा जाता है कि वो भ्रष्ट बनाती है और निर्बाध सत्ता निर्बाध रूप से भ्रष्ट बनाती है। इसीलिए साहित्यकारों का यह राष्ट्रीय कर्तव्य होता है कि वो हुकूमत को चेताते रहें कि राज्यसत्ता कभी जनसत्ता का पर्याय नहीं बन सकती। दूसरों ने इस कर्तव्य का निर्वहन किया या नहीं, लेकिन अपने आचरण और लेखनी- दोनों स्तर पर निराला ने अपना साहित्य धर्म निभाया। नेहरू को गुलाब से बहुत लगाव था। उनकी शेरवानी में गुलाब लगा रहता था। गुलाब जीवन में सौंदर्य का प्रतीक है लेकिन जब समाज गरीबी, विपन्नता, बेबसी की चक्की में पिस रहा हो, तब गुलाब से पहले गेहूं की जरूरत पड़ती है। निराला की कविताएं उसी गेहूं के लिए संघर्ष का दूसरा नाम है।
निराला ने महिला अधिकारों की कोई दुहाई नहीं दी। लेकिन इलाहाबाद की सड़कों पर चलते हुए महिलाओं की दुर्दशा को बगैर किसी लागलपेट के जैसे अपनी कविता में पेश किया, वो अद्भुत है। श्वह तोड़ती पत्थर।।।देखा उसको मैंने इलाहाबाद के पथ पर।श् ये सिर्फ एक कविता नहीं है बल्कि हमारी मरी हुई संवेदना के राजपथ पर अपनी वेदना के गीत सुनाती आधी आबादी की मर्मांतक आवाज है। हम सुनना चाहें तो भी, ना सुनना चाहें तो भी ये हमारे दिलोदिमाग पर दस्तक देती रहेगी। निराला ने हिंदी साहित्य को जितना मजबूत किया, उससे ज्यादा हिंदी समाज को बल्कि कहें कि पूरे मानव समाज को सार्थक बनाने का प्रयास किया। अपने लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। वो हिंदी के बड़े कवि और साहित्यकार थे लेकिन लॉयल्टी का पैसा भी उनके पास नहीं रहता था। एक बार महादेवी वर्मा ने उनसे कहा कि आपका सारा रूपया पैसा मैं रखूंगी ताकि कुछ तो बच सके जो आपके लिए भविष्य में काम आएगा। निराला के लिए महादेवी छोटी बहन थीं। निराला अपना सारा पैसा महादेवी को दे देते थे लेकिन जब भी कोई निराला के सामने हाथ पसारता, वो महादेवी के पास जाते और मांगकर ले आते थे। महादेवी वर्मा को समझ में आ गया कि उनका भाई साहित्यकार और कवि से कहीं ज्यादा बड़ा इंसान है। (हिफी)
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