गुम हो गई चौपाल की फागुनी बयार :-विभा सिंह
रेडियो पर प्रसारित होने वाले चौपाल की ताजगी आज भी बरकरार है!लेकिन गांव चौक चौराहे पर लगने वाले चौपाल पर संकट पैदा हो गया है दरअसल आज के सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक परिवेश के बदलावों ने मानव जीवन को प्रभावित किया है होली आने से 20 25 दिन पहले से ही गांव में लगने वाली चौपाल के गीतों की खुशबू लोगों के अंदर रंगों से सराबोर कर जाती थी, होली गीत हमारे मन के भाव में सरसता व ताजगी भर देते थे शहरों की दौड़ती भागती जिंदगी या गांव की थकान भरी जिंदगी ऐसे लोगों को चौपाल में जाने से सुकून मिलता था और ऐसे रंगीन माहौल में होली की मस्ती का असर आ ही जाता था पहले होली गीत में चौपाल के माध्यम से हल्की चुहेलबाजी होती थी परंतु आजकल के होली के मस्ती में कुछ गीत कारों ने ऐसे गीतों की रचना कर डाली जिनसे रिश्तो के सभी मायने ही बदल कर रख दिया है!पहले की होली गीत में गांव की गोरी या उसका अल्हड़पन पर का वर्णन इतनी खूबसूरती से किया जाता था जो कर्णप्रिय होता था! यहां तक लोगों की होलिका दहन आगजा के समय लोगों के घरों में भजन-कीर्तन व होली गीत में मस्त रहते थे, लेकिन आजकल के होली गीत में शरारत और चुहेलबाजी ज्यादा होती है ! होली एक पारंपरिक त्योहार के साथ हमारी संस्कृति की पहचान भी है!होली जैसे पावन त्यौहार में शहर और गांव के बीच में कोई दूरी नहीं रह जाती थी लोग परेशानी या आपसी दुश्मनी को भूल कर होली गीत के चौपाल में अवश्य शामिल होने की कोशिश करते थे बड़ों के साथ बच्चे भी पूरा उत्साह दिखाते थे होली का यह खुमार सभी के सिर चढ़कर बोलता था!आलम यह था कि लोग अपने गांव जाने के ललक और अपने प्रिय जनों से मिलने का आतुर रहते थे!असली मस्ती होली का गांव में ही होती थी! गांव का वह माहौल था कि लोग अपनेपन और प्रतिष्ठा से ऊपर उठकर गांव के ही हो जाते थे कोई व्यक्ति होली के मस्ती में इतना साराबोर हो जाता था कि बड़े छोटे का महत्व को भूल जाता था हर व्यक्ति रिश्तो को समेटकर गांव में लगने वाले चौपाल या होली के रंगों में डूब जाते थे, चौपाल में बैठकर होली गीत या रंग गुलाल को सजीदगी से स्वीकारते थे, होली के बहाने साल में एक बार अपने संबंधों को जिंदा करते थे!बच्चों को भी गांव के परिवेश में घूमने का अच्छा अवसर होता था इसी बहाने बच्चे गांव के रिश्ते व गरिमा को समझते थे! इतना सब कुछ होने के बाद भी लोग आजकल गांव की संस्कृति व मिट्टी की खुशबू भूलते जा रहे हैं! गांव में आज जो होली मनाई जाती है उसका तुलना पिछले कुछ वर्षों से इसमें काफी बदलाव आया है गांव की होली में पारंपरिक रिवाजों को निभाते हुए अध्ययन किया जाता था इसका शाब्दिक अर्थ है समाज की कुरीतियों और बुराइयों और आप आपसी द्वेष को होली की आग में जला दिया जाए इसके बाद लोग समूह में होली गीत गाते बजाते घर-घर घूमकर होली खेलते थे दोपहर बाद नए कपड़े पहन कर बड़े छोटे के बीच गले मिलते हैं! एक दूसरे से आशीर्वाद लेते थे आज गांव की होली ठीक इसके विपरीत दिखती है लोगों में एक दूसरे के प्रति प्यार और अपनत्व की भावना में कमी आ गई है! ज्यादातर लोग अपने परिवार के साथ छोटे क़सवे और शहरों में में बसने लगे हैं!धीरे-धीरे गांव के लोग नशे के गिरफ्त में शिकार होते जा रहे हैं! लोग काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं! अपनी संस्कृति और संस्कार को भूलते जा रहे हैं!गांव में होली कई दिनों तक लोग मनाते थे,जबकि शहरो की होली बहुत ही कम समय में खत्म हो जाती है! होली गोवा में, शिकागो में,हरियाणा में,धुलेड़ी,पंजाब में होली महाहल्ला के रूप में मनाई जाती है!बिहार में होली परंपरागत ढंग से मनाई जाती है!मगर इसमें से इसे मनाने वालों के मन में अब पहले जैसा भाव नहीं रह गया है "!
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