करो मत ऐसे स्वप्न-भंग
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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ओ मेरे कंत!
देखो वन-वागों में-
कैसा छाया है बसंत।।
कह गये की आऊंगा जल्दी,
सजाकर रखना मेहन्दी-हल्दी,
मैं सजी सुहागिन ढूंढ रही-
भरकर मन से मिलो अनंग।।
ये विरह की आग जलाती है,
अब कोयल की राग डराती है,,
डाली है देखो फूली-फली-
इठला रही है पाकर रास-रंग।।
तुम गये गई खुशियां मेरी,
बजा रहा भ्रमर है रणभेरी,
मेरी चुडी,पायल,कंगन-
आतुर है पाने को साथ-संग।।
ये "मिश्र-अणु" समझा दे मन,
है जला रही मुझको यौवन,
पुरा दो अब मन के आश सभी-
करो मत ऐसे स्वप्न-भंग।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२
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